इतिहासदक्षिण भारतप्राचीन भारतवेंगी के चालुक्य

वेंगी के चालुक्य शासक विजयादित्य सप्तम का इतिहास

विजयादित्य सप्तम राजराज नरेन्द्र का छोटा भाई था। राजराज के बाद यह वेंगी के चालुक्य वंश का अंतिम शासक बना। उसे कल्याणी के चालुक्यों का समर्थन प्राप्त था। राजराज से हारने के बाद उसने कल्याणी में शरण ली थी तथा उसे नोलम्बवाडि का सामंत बनाया गया था। सिंहासन ग्रहण करने के बाद वह अपने पुत्र शक्तिवर्मा द्वितीय के पक्ष में उसे छोङकर पुनः नोल्मबवाडि चला गया। मात्र एक वर्ष के शासन के बाद शक्तिवर्मा चोलों के विरुद्ध लङता हुया मारा गया। इसके बाद विजयादित्य ने वेंगी की गद्दी पुनः प्राप्त कर ली। वह पहले चालुक्य नरेश सोमेश्वर प्रथम के अधीन था। सोमेश्वर ने उसके नेतृत्व में एक सेना दक्षिण की ओर चोलों से युद्ध करने के लिये भेजी। इसी बीच सोमेश्वर की मृत्यु हो गयी। विजयादित्य को चोलों की अधीनता स्वीकार करनी पङी।

कल्याणी का चालुक्य शासक सोमेश्वर प्रथम

कल्याणी का चालुक्य शासक सोमेश्वर द्वितीय

कल्याणी का चालुक्य शासक सोमेश्वर तृतीय

1068 ई. तक वह चोलों के सामंत के रूप में शासन करता रहा। चोल शासक वीर राजेन्द्र ने उसे वेंगी का राजा बना दिया। विजयादित्य के भतीजे राजेन्द्र ने उसका विरोध किया, किन्तु कलिंग के गंगशासक देवेन्द्रवर्मा की मदद पाकर उसने वेंगी का राज्य पुनः पा लिया। उसने 1072-73 ई. तक वेंगी में किसी न किसी प्रकार शासन किया। उसके बाद उसके राज्य पर चेदियों तथा कलिंग के गंगों ने अधिकार कर लिया। विजयादित्य वेंगी छोङकर कल्याणी नरेश सोमेश्वर द्वितीय के दरबार में चला गया। उसके साथ ही वेंगी के पूर्वी चालुक्य वंश का अंत हुआ।

1011 तथा 1063 ई. के बीच वेंगी में कई छोटे-छोटे राजाओं ने शासन किया, जिसके शासन काल का कोई महत्त्व नहीं था। अंत में वेंगी का चालुक्य राज्य चोल-राज्य में मिला लिया गया।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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