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सोवियत विदेश नीति क्या थी?

सोवियत विदेश नीति (Soviet foreign policy)

सोवियत विदेश नीति – 1917 ई. में बोल्शेविक क्रांति द्वारा रूस में विश्व इतिहास की प्रथम साम्यवादी सरकार स्थापित हुई। लेनिन के नेतृत्व में सोवियत संघ ने आंतरिक तथा बाह्य क्षेत्रों में उल्लेखनीय सफलताएं प्राप्त की। विदेश नीति के क्षेत्र में सोवियत संघ ने पश्चिमी देशों से संघर्ष की नीति अपनायी।

सोवियत विदेश नीति के निम्नलिखित कारण थे

  • सोवियत रूस क्रांति का प्रसार कर अन्य देशों में भी साम्यवादी सरकार स्थापित करना चाहता था।
  • रूस ने संघर्षरत मित्र राष्ट्रों से अलग होकर जर्मनी से संधि कर ली थी।
  • सोवियत सरकार ने मित्र राष्ट्रों से लिये गए ऋणों का भुगतान न करने का निर्णय कर लिया था।
  • मित्रराष्ट्रों ने बोल्शेविक क्रांति समाप्त करने हेतु रूस में अपनी सेनाऐं भेज दी थी।

लेकिन टॉटस्की के नेतृत्व में लाल सेना ने क्रांति विरोधी श्वेत सेनाओं को बुरी तरह हराया। 1921 ई. तक लाल सेना ने संपूर्ण रूस को मुक्त करा लिया। लेकिन पश्चिमी राष्ट्रों ने अनेक वर्षों तक सोवियत सरकार को मान्यता नहीं प्रदान की।

कामिन्टर्न की स्थापना

संपूर्ण विश्व में साम्यवादी शासन तथा सर्वहारा क्रांति के लिए 1919 ई. में तृतीय अन्तर्राष्ट्रीय या कामिन्टर्न की स्थापना की गयी। इसका उद्देश्य साम्यवाद का प्रसार करना था।

विभिन्न देशों से मैत्री संबंध

सोवियत संघ तथा फिनलैण्ड के बीच 1920 ई. में हो चुकी थी। 1921 ई. में सोवियत संघ को भी आमंत्रित किया गया। इसी वर्ष जर्मनी ने भी रूस के साथ रैपेलो की संधि द्वारा उसे मान्यता प्रदान कर दी। व्यापारिक लाभ पाने के लिये ब्रिटेन ने भी 1 फरवरी 1924 ई. को सोवियत संघ को मान्यता दे दी। इसके तुरंत बाद इटली तथा फ्रांस ने भी सोवियत सरकार को मान्यता प्रदान कर दी। 1924 ई. के अंत तक 24 यूरोपीय राज्यों ने सोवियत संघ को मान्यता दे दी।

पौलेण्ड से युद्ध

1920 ई. में पोलैण्ड ने रूस पर आक्रमण कर दिया। प्रारंभ में पौलेण्ड की सेनाओं को सफलता मिली। लेकिन बाद में लाल सेना पौलेण्ड की सेनाओं को हराते हुए वारसा तक आ गई। रीगा की संधि (1921 ई.) द्वारा दोनों देशों ने कर्जन रेखा को सीमा स्वीकार कर लिया।

स्टालिन युग में सोवियत विदेश नीति

स्टालिन ने सुरक्षा के लिये पङोसी देशों के साथ अनाक्रमण संधियों की नीति अपनायी। लेकिन हिटलर के उदय के बाद सोवियत संघ ने अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की नीति का अनुसरण किया।

अनाक्रमण संधियाँ सोवियत संघ ने अपने पङोसी देशों टर्की (1925 ई.) जर्मनी, अफगानिस्तान, लिथुआनिया(1926 ई.), ईरान (1927 ई.) फिनलैण्ड, इस्टोनिया, पौलेण्ड (1931 ई.) लेटविया, चेकोस्लोवाकिया, यूगोस्लाविया तथा इटली (1933 ई.) से अनाक्रमण संधियाँ कर ली। उसने फ्रांस के साथ भी 1932 ई. में तटस्थता की संधि कर ली।

अमेरिका से मैत्री

अमरीकी व्यापारी व्यापारिक लाभ हेतु सोवियत रूस से मैत्री संबंध स्थापित करने पर जोर दे रहे थे। दूसरी ओर जापान अमेरिका के प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभर रहा था। इन सभी कारणों से 1932 ई. में अमेरिका ने सोवियत संघ से कूटनीतिक संबंध स्थापित कर लिए।

राष्ट्रसंघ का सहयोग

1934 ई. में सोवियत संघ को राष्ट्रसंघ का सदस्य बना लिया गया। सोवियत संघ ने राष्ट्रसंघ को सफल बनाने के लिए प्रत्येक विवाद में पूर्ण सहयोग दिया। 1940 ई. में फिनलैण्ड पर आक्रमण करने पर सोवियत संघ को राष्ट्रसंघ से निकाल दिया गया।

फ्रांस से संधि

हिटलर के उदय से चिंतित फ्रांस तथा सोवियत संघ ने 2 मई, 1935 में पारस्परिक सैनिक सहयोग की संधि कर ली। इसी वर्ष सोवियत संघ चेकोस्लोवाकिया तथा मंगोलिया से भी संधि कर ली।

सोवियत जर्मनी अनाक्रमण संधि

फ्रांस तथा ब्रिटेन की धारणा थी कि नाजी जर्मनी साम्यवाद को समाप्त करने के लिये ही शक्ति संग्रह कर रहा है। इसीलिए इन्होंने म्यूनिख संधि द्वारा चोकोस्लोवाकिया का अंग भंग स्वीकार कर लिया। फ्रांस तथा ब्रिटेन ने इस संबंध में सोवियत संघ को सूचित करना भी आवश्यक नहीं समझा। सोवियत सरकार पूंजीवादी राज्यों की इस नीयत को समझ चुकी थी। इस समय सोवियत संघ का कोई मित्र नहीं था।

23 अगस्त 1939 को सोवियत संघ ने जर्मनी से अनाक्रमण संधि कर ली। इस संधि की गुप्त धारा द्वारा जर्मनी ने पूर्वी पौलेण्ड, फिनलैण्ड, एंस्टोनिया, लेटविया तथा बसेरेबिया को सोवियत संघ का प्रभावक्षेत्र स्वीकार कर लिया।

द्वितीय महायुद्ध आरंभ होने पर सोवियत संघ तटस्थ बना रहा, लेकिन जर्मनी से संघर्ष निश्चित मानकर वह अपनी शक्ति बढाता रहा। 22 जून, 1940 ई. में जर्मनी ने रूस पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में प्रारंभ में जर्मनी को सफलता मिली। लेकिन बाद में रूसी सेनाओं ने जर्मनी को बुरी तरह पराजित किया। रूसी सेनाएं 30 अप्रैल 1945 ई. को बर्लिन आ पहुँची तथा जर्मनी का पतन हो गया।

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