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जापानी सभ्यता का इतिहास

जापानी सभ्यता

19 वीं शताब्दी के मध्य तक जापान एक मध्यकालीन और पिछङा हुआ राष्ट्र था। इस समय तक जापान बाहरी विश्व के संपर्क में बिल्कुल अलग-थलग था। सर्वप्रथम 17 वीं शताब्दी में यूरोपीय व्यापारियों एवं धर्म प्रचारकों ने जापान में प्रवेश करने का निष्फल प्रयत्न किया था।

समुराई

समुराई जापान के परंपरागत योद्धा वर्ग हैं। ये बुशीदो नामक आचार संहिता का पालन करते हैं। बेहद स्वामिभक्त होते हैं। अपमान के बजाय मृत्यु को पहला विकल्प देते है।

प्राचीन काल में जापान के सैनिक जागीरदार थे।

इकेबाना

इकेबाना फूलों को सजाने की एक जापानी कला है।

इस कला में आकाश, पृथ्वी और मानवजाति इन तीन तत्वों का एक संतुलित ढंग से प्रतिनिधित्व किया जाता है। इकेबाना कला चीन से जापान आई। कहते हैं कि छठी शताब्दी में ओनो नो इमोको ने चीन के राज दरबार का तीन बार दौरा किया था और वहीं फूल सजाने की कला सीखी थी।

जब वो जापान लौटे तो उन्हें क्योतो के बौद्ध मंदिर का संरक्षक नियुक्त किया गया था। वो एक छोटे से घर में रहा करते थे जिसे इकेनोबो कहा जाता था, जिसका अर्थ है, तालाब के किनारे बनी झोंपड़ी। वहाँ उन्होंने इस कला को और परिष्कृत किया। और फिर पीढ़ी दर पीढ़ी जापानी गुरुओं ने इसमें महारत हासिल की।
ऐसा माना जाता है कि जापानियों को प्रकृति से बहुत लगाव होता है। वह हमेशा से ही अपने घरों को सजाने के लिए किसी अन्य सामान को खरीदने की जगह इकेबाना का ही इस्तेमाल करना पसंद करते हैं। इकेबाना आपको हर जापानी घर में देखने को मिल जाएगा।

जापान का संगीत

पारंपरिक जापानी संगीत को बैंगल कहा जाता है, जिसमें येल, कथन, कगुरा और गीत शामिल हैं ।

काबुली –

काबुकी एक शास्त्रीय जापानी नृत्य-नाटक है। यह अपनी अनोखी शैली, नृत्य और कलाकारों द्वारा किए गए मेकअप के लिए जाना जाता है।

1894-95 ई. में चीन और जापान के बीच युद्ध हुआ, जिसमें जापान ने चीन को पराजित किया। जापान में चीन, कोरिया, मंचूरिया इत्यादि देशों में आये प्रवासियों के बसने से पूर्व एनू जाति के लोग रहा करते थे, जिनकी बङी गोल आँखें तथा प्रकृति पूजा इस बात को प्रकट करती है, कि उनका संबंध काकेशियाई जाति से था।

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