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अधिनायकवाद क्या था

अधिनायकवाद क्या था (What was Totalitarianism)

अधिनायकवाद – अधिनायकवाद (जिसे तानाशाही या अन्य शासन भी कहा जाता है) एक प्रकार की सरकार होती है जो एक मजबूत केंद्रीय शासन की विशेषता रखती है। इस प्रणाली में, राज्य के अध्यक्ष द्वारा गैर-कानूनी शक्ति प्राप्त की जाती है और व्यक्तिगत जीवन के सभी पहलुओं को जबरदस्ती और दमन के माध्यम से नियंत्रित और निर्देशित करने का प्रयास किया जाता है।

इतिहास में प्रथम विश्वयुद्ध के बाद अधिनायकवाद तेजी से बढ़ा। इटली में मुसोलिनी और जर्मनी में हिटलर ने भयंकर तानाशाही की स्थापना की। सोवियत संघ में भी तानाशाही चली। लेनिन और स्टालिन भी तानाशाह बने।

इसी प्रकार से आर्थिक मंदी के कारण अधिनायकवाद को प्रोत्साहन मिला। जर्मनी में नाजीवाद तथा इटली में फासिस्टवाद की स्थापना हुई।

इटली में फासिस्टवाद की स्थापना

प्रथम विश्वयुद्ध में सम्मिलित होते समय अमेरिकी राष्ट्रपति विल्सन ने कहा था कि हम विश्व को लोकतंत्र के लिए सुरक्षित बनाने के लिए युद्ध में सम्मिलित हो रहे हैं। लेकिन इसके परिणाम विपरीत ही हुए। महायुद्ध के बाद इटली, जर्मनी तथा स्पेन में अधिनायक तंत्रों की स्थापना हो गयी। इटली में 1860 ई. से ही जनतंत्र था। प्रथम विश्वयुद्ध से उत्पन्न परिस्थितियों का इटली जनतंत्र सामना नहीं कर सका तथा उसका अंत हो गया।

1870 ई. में एकीकरण के बाद इटली की विदेश नीति के तीन प्रमुख लक्ष्य थे – 1.) इटालियन देशों को इटली में सम्मिलित करना। 2.) अफ्रीका में विशाल साम्राज्य स्थापित करना, 3.) भूमध्य सागर में इटली का वर्चस्व स्थापित करके उसे रोमन झील बना देना।

अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु इटली ने सदैव श्रगाल नीति का अनुसरण किया। इटली 1882 ई. में त्रिगुट संधि में सम्मिलित हो गया, किन्तु वह प्रथम विश्वयुद्ध में धुरी राष्ट्रों की ओर से सम्मिलित नहीं हुआ। 1915 ई. की लंदन संधि द्वारा मित्रराष्ट्रों ने इटली को ब्रेनर दर्रे तक क्षेत्र, टारोल, ट्रीस्ट, ट्रेन्टिनो, गोर्जिया, इरीट्रिया, डालमेशिया तथा टर्की के कुछ प्रदेश देने का वचन दिया। यद्यपि जर्मनी तथा आस्ट्रिया ने भी इटली तो फ्रांस के अफ्रीकी उपनिवेश देने का आश्वासन दिया था परंतु इटली मित्र राष्ट्रों की ओर से युद्ध में सम्मिलित हुआ, क्योंकि उसे इस ओर अधिक लाभ दिखाई दिया।

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