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जर्मनी में नाजीवाद की स्थापना के कारण

जर्मनी में नाजीवाद की स्थापना के कारण

जर्मनी में नाजीवाद की स्थापना के कारण

जर्मनी में नाजीवाद की स्थापना (causes-of-the-establishment-of-nazism-in-germany) के कारण निम्नलिखित हैं-

वर्साय की अपमानजनक संधिवर्साय की संधि जर्मनी के लिए आत्महत्या के समान थी। मित्रराष्ट्रों द्वारा युद्ध की धमकी के कारण जर्मनी ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। लेकिन जर्मन जनता ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया था। हिटलर इस संधि का घोर विरोधी था। उसने जर्मन जनता को वर्साय के अपमान का बदला लेने का वचन दिया था।

जर्मनी में नाजीवाद की स्थापना के कारण

विश्व व्यापी आर्थिक मंदी – 1929-33 ई. में विश्व व्यापी आर्थिक मंदी ने हिटलर के उदय में सहयोग दिया। जर्मनी का प्रत्येक वर्ग इस मंदी से त्रस्त था। किसान ऋण ग्रस्त थे। हिटलर ने उनके कर्ज माफ करने का आश्वासन दिया। बङे व्यापारी तथा उद्योगपति साम्यवाद से भयभीत थे। हिटलर ने उन्हें साम्यवादियों से रक्षा का भरोसा दिलाकर अपना समर्थक बना लिया। उसने आर्थिक संकट का सारा दो यहूदी जाति पर मढ दिया। हिटलर ने बेरोजगारों को रोजगार देने का वचन दिया। उसने मित्रराष्ट्रों को दिया जाने वाला युद्ध हर्जाना तत्काल बंद किए जाने की मांग की। इन्हीं कारणों से हिटलर की लोकप्रियता तेजी से बढी।

वाइमर गणतंत्र की असफलता – जर्मनी में अनेक दल थे। इसका परिणाम अल्पमत वाली निर्बल सरकारें थी। यह सरकार डेजिंग बंदरगाह, पोलिश गलियार, साइलेशिया तथा छीने गए उपनिवेश वापस नहीं ले पायी थी। जबकि हिटलर जनता को यह सभी वापस दिलवाने का वचन दे रहा था। इसी कारण जनता का समर्थन उसके प्रति बढता ही गयी।

यहूदी विरोध – जर्मनी में यहूदी सम्पन्न जाति थी। व्यापार उद्योग तथा बङे पदों पर इनका अधिकार था। जर्मन जनता इनके प्रति ईर्ष्याभाव रखती थी। हिटलर ने इसका लाभ उठाया। उसने 1918 ई. की पराजय के लिए यहूदियों को उत्तरदायी बताया। इसका नाजी पार्टी को पूरा लाभ मिला।

साम्यवादियों का भय – जर्मनी में साम्यवादियों का प्रभाव बढ रहा था। हिटलर ने साम्यवाद का भय दिखाकर उद्योगपति एवं व्यापारी वर्ग को अपने पक्ष में कर लिया। यही नहीं उसने देश भक्तों को यह कहकर पक्ष में कर लिया कि साम्यवादी यदि सत्ता में आ गए तो जर्मनी रूस के इशारे पर चलेगा। हिटलर द्वारा साम्यवादियों से संघर्ष की घोषणा से पूंजीवादी राज्यों से भी उसे समर्थन एवं सहायता मिलनी प्रारंभ हो गयी।

जर्मन जनता की मनोवृत्ति – जर्मन जाति अनुशासन प्रिय वीर तथा सैनिक मनोवृत्ति की थी। उसमें नायकों तथा वीरों की पूजा की परंपरा थी। उसे गणतंत्रीय परंपराऐं प्रिय नहीं थी। वह स्वभाव से ही एकतंत्रीय शासन की अभ्यस्त थी। उसे हिटलर के भीतर जर्मनी के खोए हुए गौरव की पुर्नस्थापना दिखाई देने लगी।

हिटलर का आकर्षक व्यक्तित्व एवं प्रचार तंत्र – था। हिटलर का व्यक्तित्व आकर्षक था। वह कुशल वक्ता था। वह जर्मनवासियों की आहत भावनाओं को उभारना जानता था। उसके पास प्रचारतंत्र गोयबल्स के नेतृत्व में झूठ को भी सत्य में बदल देने की क्षमता रखता था। यही कारण है कि हिटलर जन समर्थन पाने में सफल हुआ।

इन्हीं सब कारणों से 30 जनवरी, 1933 ई. को हिटलर जर्मनी के चांसलर पद पर अधिकार करने में सफल हुआ। इसके साथ ही जर्मनी में गणतंत्र की समाप्ति तथा अधिनायकवाद की स्थापना हो गयी। हिटलर के नेतृत्व में जर्मनी धमकी, छल, संधि भंग तथा युद्ध के माध्यम से विश्व पर वर्चस्व स्थापित करने के लिए व्यग्र हो उठा।

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