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द्वितीय विश्व युद्ध के कारण

द्वितीय विश्व युद्ध के कारण (Due to World War II)

11 नवम्बर, 1918 को प्रथम महायुद्ध समाप्त हुआ। उसके 20 वर्ष के बाद दूसरा विनाशकारी युद्ध हुआ। जर्मनी द्वारा डेजिंग एवं पोलिश गलियारे की मांग के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ संकट द्वितीय विश्वयुद्ध का तात्कालिक कारण था। किन्तु इसकी पृष्ठभूमि प्रथम विश्वयुद्ध के समय से ही तैयार हो चुकी थी।

द्वितीय विश्व युद्ध के पूर्व की राजनैतिक घटनाएं

द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण निम्नलिखित थे-

वर्साय संधि की कठोर व अपमानजनक शर्तें

प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी की पराजय हुई। उसे वर्साय की अपमानजनक संधि पर हस्ताक्षर करने पङे। संधि को लेकर जर्मनी के प्रतिनिधियों व जनता में भारी असंतोष तथा रोष था। क्लीमेंशों एवं उसके सहयोगी राजनेताओं ने प्रतिशोध, स्वार्थ एवं भविष्य की सुरक्षा की चिन्ता से अभिभूत होकर ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया, जिससे जर्मनी कभी सिर न उठा सके।

लैंगसम ने लिखा है – संधि से जर्मनी प्रदेश का आठवाँ भाग और 70 लाख व्यक्ति कम हो गए, उसके सारे उपनिवेश, 15 प्रतिशत कृषि भूमि, 12 प्रतिशत पशु, 10 प्रतिशत कारखाने छीन लिये गए, व्यापारिक जहाज की सत्तावन लाख टन क्षमता को घटाकर 5 लाख टन तक सीमित कर दिया गया। नौ सैनिक शक्ति को नष्ट कर दिया, स्थल सेना 1 लाख निश्चित कर दी, कोयले के 2/3 भाग से, लोहे के 2/3 भाग से, जस्ते के 7/10 भाग से तथा शीशे के आधे से अधिक क्षेत्र से हाथ धोने पङे।

क्षतिपूर्ति के नाम पर उसे कोरे चेक पर हस्ताक्षर करने को बाध्य किया गया। जर्मनी के संशोधन के प्रस्ताव को ठुकराकर, आक्रमण का भय दिखाकर, हस्ताक्षर के लिए मजबूर किया गया। जर्मनी जैसा स्वाभिमानी राष्ट्र ऐसी दमनात्मक व अपमान की शर्तों को दीर्घकाल तक बर्दाश्त नहीं कर सकता था। अवसर मिलते ही अपमान का प्रतिशोध लेने के लिये जर्मनी ने पुनः मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध हथियार उठा लिये। फाल्स महोदय ने द्वितीय महायुद्ध को प्रतिशोधात्मक युद्ध की संज्ञा दी है।

तानाशाहों का उत्कर्ष

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद पराजित राष्ट्रों में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था ने निराश किया। जर्मनी में वाइमर गणराज्य कमजोर साबित हुआ। वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर से जनता में असंतोष पनपने लगा। जनता के असंतोष व राष्ट्रीय भावना का लाभ उठाकर हिटलर सत्ता तक पहुँच गया। शीघ्र ही हिटलर ने आक्रामक रुख अपनाते हुए 1935 में राष्ट्रसंघ की सदस्यता त्यागकर पुनः शस्त्रीकरण की घोषणा कर ली। 1938 में आस्ट्रिया को अधिग्रहण किया और चेकोस्लोवाकिया का अंग भंग किया। इस तानाशाही रवैये से चारों ओर युद्ध के बादल मंडराने लगे।

इटली में भी मुसोलिनी ने लोकतांत्रिक व्यवस्था का अंत कर अधिनायकवादी सत्ता स्थापित कर ली। वर्साय संधि का विरोध किया। अबिसीनिया पर आक्रमण कर अपनी साम्राज्यवादी भावना को प्रदर्शित किया। जर्मनी व जापान के साथ संधि कर तानाशाही जङों को मजबूत करने का प्रयास किया।

जापान में भी तानाशाही एवं साम्राज्यवादी भावना उत्पन्न हो चुकी थी। जापान ने राष्ट्रसंघ की उपेक्षाकर मंचूरिया पर अधिकार कर लिया। 1936 में रूस विरोधी एन्टीकामिन्टर्न संधि जर्मनी के साथ कर अपने इरादों को मजबूत किया। 1937 में इटली भी सम्मिलित हो गया। 6 नवम्बर, 1937 को रोम बर्लिन टोकियो धुरी का निर्माण हुआ। इस प्रकार तीनों तानाशाहों के धुरीकरण ने विश्व को युद्ध की सीमा तक पहुँचा दिया।

राष्ट्रसंघ की असफलता

राष्ट्रसंघ की स्थापना अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग को बढाने तथा शांति एवं सुरक्षा की व्यवस्था के लिए की गयी थी, परंतु वह अपने इन उद्देश्यों को पूरा करने में असफल रहा। राष्ट्रसंघ बदनाम माँ की कमजोर बेटी की तरह था। मित्र राष्ट्रों ने इसका प्रयोग अपने स्वार्थ सिद्धि के लिये किया। इंग्लैण्ड इसके माध्यम से रूस की साम्यवादी प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखना चाहता था तो फ्रांस शांति सम्मेलन की शर्तों का पालन राष्ट्र संघ के माध्यम से करवाना चाहता था जिससे जर्मनी उसके लिये खतरा खङा न कर सके। तानाशाहों के विरुद्ध मित्र राष्ट्रों द्वारा अपने हित – अहित के आधार पर कार्यवाही करने से राष्ट्र संघ अन्तर्राष्ट्रीय संकटों के समय कारगर कदम नहीं उठा सका। इससे छोटे छोटे राज्यों का राष्ट्रसंघ से विश्वास उठ गया तथा सुरक्षा के लिये तानाशाहों की शरण में चले गए जिसका परिणाम युद्ध के रूप में घटित हुआ।

स्पेन के गृहयुद्ध में हस्तक्षेप

1931 में स्पेन के सम्राट अलफोन्जो तेरहवें के सिंहासन त्यागते ही गृह युद्ध प्रारंभ हो गया। यह युद्ध प्रारंभ में दक्षिण पंथी व वामपंथियों के मध्य था। 17 जुलाई, 1936 को स्पेनिश गृहयुद्ध आरंभ हुआ। स्पेनी सेना के जनरल फ्रेंको का समर्थन इटली व जर्मनी ने किया। दूसरी ओर वामपंथियों का समर्थन रूस ने किया। जनवरी, 1939 तक फ्रेंको ने संपूर्ण स्पेन पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। इससे तानाशाही ताकतें ओर बढ गयी।

अबीसीनिया पर आक्रमण

मुसोलिनी ने 2 अक्टूबर, 1935 को अबीसिनिया पर आक्रमण कर दिया। इथोपिया की अपील पर राष्ट्र संघ ने 7 अक्टूबर, 1935 को इटली को आक्रांता घोषित कर दिया तथा सेना हटाने को कहा। मुसोलिनी ने कहा अंगर पूरा इथोपिया ही मुझे चाँदी की थाली में परोसकर दिया जाये तो मैं उसे स्वीकार नहीं करूँगा, मैं उसे तलवार के बल पर ही विजय करूँगा । 18 नवम्बर, 1935 को इटली पर राष्ट्रसंघ ने आर्थिक प्रतिबंध लगाए।

5 मई, 1936 को मुसोलिनी ने अबीसीनिया की राजधानी अदिस-अबाबा पर अधिकार कर लिया। 9 मई को इटली में मिलाने की घोषणा की। 4 जुलाई को सम्राट हेल सलासी ने भागकर इंग्लैण्ड में शरण ली। राष्ट्रसंघ नपुंसक की तरह देखता ही रहा।

निःशस्त्रीकरण के प्रयासों की असफलता

विश्व राजनीतिज्ञों का यह मानना था कि शांति के लिये शस्त्रास्त्रों की होङ को समाप्त करना आवश्यक था। वर्साय की संधि के द्वारा जर्मनी को शक्तिहीन करने के लिये योजना प्रस्तुत की गयी। जर्मनी का कहना था कि यदि जर्मनी को शस्त्रहीन किया जाता है तो निःस्त्रीकरण का सिद्धांत दूसरे राज्यों पर भी लागू किया जाए। परंतु मित्र राष्ट्रों ने इसे अस्वीकार कर अपनी अपनी नौ सैनिक शक्ति व स्थल सैनिक शक्ति को प्रत्यक्ष, परोक्ष रूप से बढाने की कूटनीति में लिप्त रहे तथा छोटे व पराजित राष्ट्रों को राष्ट्रसंघ के गलियारों में भटकाकर भ्रमित करते रहे जिसे धुरी राष्ट्र समझ चुके थे। अतः जर्मनी ने 1935 में पुनः शस्त्रीकरण की घोषणा कर अन्य राष्ट्रों को भी प्रेरित किया इस प्रकार हथियारों की होङ आरंभ की गयी। जिससे पुनः युद्ध की परिस्थितियां खङी हो गयी।

पश्चिमी राष्ट्रों की नीति में अन्तर्विरोध

मित्र राष्ट्र परस्पर सहयोगी राष्ट्र थे। राष्ट्रसंघ की स्थापना में सामूहिक योगदान था, परंतु मित्र राष्ट्रों की नीतियों में समानता का अभाव था। उनमें आपस में अन्तर्विरोध था, जिससे संकटों के समय एकमत होकर कार्यवाही नहीं कर सकने के कारण जर्मनी व इटली की शक्ति व साहस में वृद्धि होती गयी जो आगे जाकर विश्वशांति के लिये खतरा बन गयी।

इंग्लैण्ड की तुष्टिकरण की नीति

इंग्लैण्ड यूरोप में शांति संतुलन बनाए रखने का पक्षधर था। वह प्रथम विश्वयुद्ध के बाद फ्रांस की बढती शक्ति को नियंत्रित रखना चाहता था। मध्य यूरोप में साम्यवाद के प्रसार की रोकथाम इंग्लैण्ड की सबसे बङी चिंता थी। साथ ही अपने व्यापार की वृद्धि दर को भी बढाना चाहता था। इसके लिये जर्मनी का शक्तिशाली एवं उद्योग सम्पन्न बने रहना आवश्यक था। अतः ब्रिटेन ने जर्मनी के साथ हमेशा सहानुभूति का व्यवहार किया तथा 1938 में आस्ट्रिया के अपहरण, चेकोस्लोवाकिया के अंग भंग, राइलैण्ड में सैन्यकरण कर व्यवस्थाओं के उल्लंघन के विरुद्ध तुष्टिकरण की नीति अपनाते हुए कोई कदम नहीं उठाया। इससे मित्र राष्ट्रों का मोर्चा कमजोर पङता गया व तानाशाहों का आत्मविश्वास बढता गया।

इसी कारण चर्चिल ने कहा था – हमारी तुष्टिकरण की नीति का एक दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम यह रहा कि हिटलर को विश्वास हो गया कि इंग्लैण्ड व फ्रांस उसके विरुद्ध युद्ध करने में सक्षम नहीं है।

शूँमा ने ठीक ही लिखा है कि यह नीति आरंभ से ही आत्मघाती मूर्खता के अलावा कुछ और नहीं थी। इसने द्वितीय विश्वयुद्ध को अवश्यंभावी बना दिया।

उग्र राष्ट्रवाद की भावना

प्रथम विश्वयुद्ध की भांति दूसरे विश्वयुद्ध में भी उग्र राष्ट्रवाद संघर्ष का महत्त्वपूर्ण कारण था। औद्योगिक क्रांति ने प्रतिस्पर्धा बढाकर आर्थिक राष्ट्रवाद की भावना विकसित की। आर्थिक मंदी (1930) ने भी राष्ट्रवाद की भावना को उत्तेजित किया और मित्र राष्ट्रों ने भी अपने राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर नीति अपनाई। इटली, जर्मनी व जापान में उग्र राष्ट्रवाद प्रबल हुआ। उनका उद्देश्य शक्ति व गौरव में वृद्धि व आर्थिक साधनों पर पूर्ण नियंत्रण करना था। यह सोच यूरोप के सभी छोटे बङे देशों में पनपने लगी। इस उग्र राष्ट्रवाद का राष्ट्रसंघ भी नियंत्रण करने में असफल रहा जिसका परिणाम मानव जाति को एकबार फिर विनाश की ओर ले जाने वाला रहा।

दो प्रतिद्वन्द्वी गुटों का उदय

प्रथम विश्वयुद्ध की तरह द्वितीय विश्वयुद्ध में भी संपूर्ण विशअव दो परस्पर शत्रु सैनिक खेमों में बंट गया। एक तरफ जर्मनी इटली और जापान कभी संतुष्ट न होने वाले राष्ट्रों ने मिलकर रोम-बर्लिन-टोकियो धुरी का निर्माण किया था, तो दूसरी तरफ इंग्लैण्ड, फ्रांस, सोवियत रूस और अमेरिका जैसे मित्र राष्ट्रों ने मिलकर एक सुदृढ संधि संगठन स्थापित कर लिया। जर्मनी के पौलेण्ड पर आक्रमण के साथ ही दोनों गुट एक बार फिर युद्धभूमि में आमने सामने हो गए।

अल्पसंख्यक जातियों का असंतोष

पेरिस की संधियों द्वारा आस्ट्रिया को जर्मनी से अलग किया गया, चोकोस्लोवाकिया को स्वतंत्र राज्य मान लिया गया, बाल्कन प्रायःद्वीप व मध्य यूरोप में सीमाओं में परिवर्तन करने से राज्यों की विभिन्न जातियाँ भी विभाजित हो गयी जिससे उनमें असंतोष व्याप्त हो गया तथा अपने को विदेशी राज्य में मानने लगे। इस असंतोष का लाभ हिटलर ने उठाया। आस्ट्रिया का अपहरण कर स्लाव सुडेटन लैण्ड को चेकोस्लोवाकिया से छीन लिया।

युद्ध का तात्कालिक कारण (जर्मनी का पौलेण्ड पर आक्रमण)

इन सभी कारणों से अन्तर्राष्ट्रीय रंगमंच पर बारूद का महल खङा कर चुका था। अब एक चिनगारी लगाने की देरी थी। यह कार्य हिटलर ने पौलेण्ड पर आक्रमण करके सम्पन्न किया। 1 सितंबर, 1939 को पौलेण्ड पर हिटलर ने अचानक आक्रमण कर दिया। 3 सितंबर को ब्रिटेन व फ्रांस द्वारा चेतावनी देने पर भी युद्ध बंद नहीं किया तो ब्रिटेन व फ्रांस ने भी जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।

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