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द्वितीय महायुद्ध की गतिविधियाँ

द्वितीय महायुद्ध की गतिविधियाँ

द्वितीय महायुद्ध की गतिविधियाँ – 1 सितंबर, 1939 को जर्मनी ने पोलैण्ड पर आक्रमण कर दिया। ब्रिटेन और फ्रांस ने आक्रमण समाप्त करने की चेतावनी दी जिसका कोई परिणाम नहीं निकला। अतः 3 सितंबर, 1939 को दोनों ने ही जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।

जर्मनी काफी समय से युद्ध की तैयारी कर रहा था तथा युद्ध के नए तरीरों का सफल प्रयोग भी स्पेन के गृह युद्ध में कर चुका था, अतः जर्मन सेनाओं ने प्रबल आक्रमण करते हुये 5 सितंबर को संपूर्ण साइलेशिया पर अधिकार कर लिया। दो सप्ताह की भीषण लङाई के बाद जर्मन सेनाओं ने पोलैण्ड की राजधानी वार्सा पर अधिकार कर लिया।

द्वितीय महायुद्ध की गतिविधियाँ

रूस यूक्रेनिया को अपने राज्य में मिलाना चाहता था, अतः 17 सितंबर को पीछे हटती हुई पोलैण्ड की सेना पर रूस की सेना ने अचानक हमला बोल दिया। पाँच दिन की लङाई के बाद रूस ने यूक्रेनिया पर अधिकार कर लिया।

एक चरफ जर्मनी का आक्रमण और दूसरी ओर रूस का आक्रमण होने से पोलैण्ड पस्त हो गया और विवश होकर उसने आत्मसमर्पण कर दिया। 29 सितंबर को जर्मनी और रूस ने पोलैण्ड का बँटवारा कर लिया। पोलैण्ड का पश्चिमी भाग जर्मनी को तथा पूर्वी भाग रूस को प्राप्त हुआ।

फ्रांस ने पोलैण्ड की सरकार का पुनर्गठन किया गया और युद्ध चलता रहा। अक्टूबर, 1939 में रूस ने इस्टोनिया, लेटविया और लिथुआनिया से पृथक संधियाँ की, जिसके अनुसार इन तीनों राज्यों ने अपने सामुद्रिक एवं हवाई अड्डे रूस को सौंप दिए किन्तु फिनलैण्ड पर आक्रमण संधि के लिये तैयार नहीं हुआ।

फलतः 30 नवम्बर, 1939 को रूस ने फिनलैण्ड पर आक्रमण कर एक महीने में फिनलैण्ड के एक बङे भू-भाग पर अधिकार कर लिया। 12 मार्च, 1940 को दोनों के बीच संधि हो गयी। रूस ने फिनलैण्ड के सभी सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र अपने अधीन कर लिए।

द्वितीय महायुद्ध की गतिविधियाँ

पोलैण्ड पर अधिकार करने के बाद हिटलर ने एक कूटनीतिक चाल चली और ऐसी चाल वह हमेशा से खेलता आया था। उसने ब्रिटेन और फ्रांस से कहा कि युद्ध बंद कर दिया जाय, क्योंकि अब उसे अन्य किसी प्रदेश प्राप्ति की आकांक्षा नहीं है।

ब्रिटेन और फ्रांस हिटलर की चाल से अनभिज्ञ नहीं थे और फिर वे इस शर्त पर शांति स्थापित करने को तैयार नहीं थे कि हिटलर की विजयों को मान्यता प्रदान कर दी जाय। पोलैण्ड विजय के बाद लगभग आठ महीने तक हिटलर ने कोई सैनिक कार्यवाही नहीं की।

इस काल में एक ओर तो वह शांति स्थापित करने की अपीलें करता रहा और दूसरी ओर युद्ध की घोर तैयारी करता रहा। 9 अप्रैल, 1940 को उसने डेनमार्क और नार्वे पर धावा बोल दिया। दोनों ने पराजित होकर जर्मनी का संरक्षण स्वीकार कर लिया। हिटलर की बढती हुई शक्ति से मित्र राष्ट्रों में खलबली मच गई।

10 मई को ब्रिटिश प्रधानमंत्री चेम्बरलेन को त्याग-पत्र देना पङा तथा चर्चिल के नेतृत्व में संयुक्त सरकार बनाई गई। इसी दिन जर्मनी ने लेक्समबर्ग, पाँच दिन बाद हालैण्ड पर अधिकार हो गया तथा 28 मई को बेल्जियम ने आत्मसमर्पण कर दिया। यद्यपि बेल्जियम की सहायता के लिये लाखों की संख्या में ब्रिटिश सेना आई हुई थी, किन्तु वह स्वयं जर्मन सेनाओं से घिर गई।

ब्रिटिश सैनिक अधिकारियों ने अपने कुशल रणकौशल का परिचय देते हुये अपनी अधिकांश सेना को बचा लिया। 10 मई को ही हिटलर ने अपने पुराने शत्रु फ्रांस पर हमला कर जिया। फ्रांस की सेनाएं इस प्रबल आक्रमण के समक्ष टिक नहीं सकी। 11 जून को इटली ने भी युद्ध की घोषणा करते हुये फ्रांस पर आक्रमण कर दिया।

14 जून को पेरिस नगर पर जर्मन सेनाओं का अधिकार हो गया। 22 जून, 1940 को फ्रांस ने हथियार डाल दिए। फ्रांस व जर्मनी के बीच संधि हुई, जिसके अनुसार उत्तरी फ्रांस जर्मनी के अधिकार में रहा तथा दक्षिणी फ्रांस को स्वतंत्र मान लिया गया, किन्तु बहुत से फ्रांसीसी जर्मनी के विरुद्ध युद्ध जारी रखना चाहते थे, अतः जनरल डिगॉल के नेतृत्व में कुछ फ्रांसीसी देशभक्त इंग्लैण्ड पहुँचे तथा वहाँ आजाद फ्रांसीसी सेना और आजाद फ्रांसीसी सरकार गठित की।

इस आजाद फ्रांसीसी सरकार ने जर्मनी के विरुद्ध अपना युद्ध जारी रखा।

अब नार्वे से लेकर दक्षिण स्पेन तक समस्त समुद्री तट पर जर्मनी का अधिकार हो गया। इससे प्रोत्साहित होकर 18 जून, 1940 को जर्मनी ने इंग्लैण्ड पर भीषण हवाई हमला कर दिया।

पाँच महीने तक जर्मन हवाई जहाज इंग्लैण्ड पर बम वर्षा करते रहे। अकेले लंदन पर पचास हजार बम गिराए गए, किन्तु चर्चिल के नेतृत्व में इंग्लैण्ड की सरकार ने बङे साहस से जर्मनी का मुकाबला किया तथा जर्मनी के तीस हजार से भी अधिक बमवर्षक विमानों को मार गिराया।

ब्रिटेन ने हिटलर को बता दिया कि ब्रिटेन से टक्कर लेना आसान नहीं है, अतः धीरे-धीरे हिटलर ने अपने आक्रमणों को धीमा कर दिया। इधर इटली ने सोमालीलैण्ड, केनिया और सूडान पर अधिकार कर लिया।

इटली ने उत्तरी मिस्र पर भी आक्रमण किया और उसके बाद यूनान पर चढाई की। यूनान ने अन्य राष्ट्रों की सहायता से इटालियन सेना को यूनान से बाहर निकाल दिया। इस पर जर्मनी ने इटली की सहायता की, जिससे अप्रैल, 1941 में यूनान पर जर्मन का अधिकार हो गया। रूस भी निरंतर बाल्टिक क्षेत्रों पर कब्जा करता जा रहा था।

जापान भी पीछे रहने वाला नहीं था। वह सुदूर पूर्व में वृहत्तर पूर्वी एशिया का निर्माण करना चाहता था। इसीलिए वह जर्मनी और इटली से मैत्री करके सितंबर, 1940 में धुरी राष्ट्रों में शामिल हो गया और दो महीने बाद हंगरी, रूमानिया और स्लोवाकिया भी इस गुट में सम्मिलित हो गए। फरवरी, 1941 को यूगोस्लाविया पर हमला करके उसे भी रौंद डाला।

जर्मनी ने ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करने के लिये इराक, ईरान और सीरिया पर भी आक्रमण किया, किन्तु जर्मनी को ब्रिटिश शक्ति के समक्ष पराजित होना पङा। इससे अब जर्मनी के लिये पूर्वी रास्ता एकदम बंद कर दिया गया।

यद्यपि रूस और जर्मनी के बीच अनाक्रमण समझौता हो चुका था, किन्तु हिटलर की महत्त्वाकांक्षा के समक्ष सभी संधियाँ और समझौते महत्त्वहीन थे।

वह रूस को पराजित कर पूर्वी सीमा के खतरे को समाप्त करना चाहता था, अतः 22 जून, 1941को जर्मन सेना ने रूस पर आक्रमण कर यूक्रेनिया, एस्थोनिया, लेटविया, लिथुआनिया, फिनलैण्ड और पूर्वी पोलैण्ड पर से रूसी आधिपत्य समाप्त कर दिया तथा जर्मन फौजें लेनिनग्राद के निकट आ पहुँची ।

लेनिनग्राद और मास्को को रूसी सेनाओं ने घोर युद्ध किया। रूस की गली-गली और घर-घर में शत्रु के विरुद्ध मोर्चाबंदी की गई और अंत में रूसी सेनाओं ने जर्मन फौजों को खदेङना आरंभ कर दिया। विजय पथ पर निरंतर अग्रसर होने वाला जर्मनी रूस से पछाङ खा गया। पर्ल हार्बर अमेरिकन जस सेना का प्रधान केन्द्र था।

जापान ने बिना युद्ध घोषित किए ही इस पर आक्रमण कर दिया (7 दिसंबर, 1940ई.)। इस पर अब अमेरिका भी युद्ध में कूद पङा। इंग्लैण्ड, नीदरलैण्ड, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, कनाडा आदि के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इस प्रकार युद्ध की लपटों ने सारे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया। जापान बङी ही तीव्र गति से आगे बढता गया।

जापान हांगकांग, ग्वाम, फिलिपाइन, स्याम, मलाया, सिंगापुर आदि को रौंदता हुआ आगे बढता ही गया। भारत पर भी जापानियों ने भारी हमले किए। पूर्वी एशिया में जापान का प्राधान्य स्थापित हो गया।

इस प्रकार धुरी राष्ट्रों को निरंतर विजय मिलती जा रही थी और मित्र राष्ट्रों की विजय के कोई चिह्न दिखाई नहीं दे रहे थे, किन्तु 1942 के अंत में धुरी राष्ट्रों की प्रगति रुक गई और वे हारने लगे। नवम्बर, 1942 में ब्रिटिश व अमेरिकन फौजों ने संयुक्त रूप से उत्तरी अफ्रीका से जर्मन व इटालियन फौजों को खदेङना आरंभ कर दिया और अंत में उत्तरी अफ्रीका पर मित्र राष्ट्रों का अधिकार हो गया।

10 जुलाई, 1943 को मित्र राष्ट्रों ने सिसली पर आक्रमण किया और अब इटली की बारी थी। मुसोलिनी ने हिटलर से सहायता माँगी, किन्तु इस समय जर्मन सेना रूस में बुरी तरह उलझी हुई थी, अतः हिटलर कोई सहायता नहीं भेज सका। 19 जुलाई को मित्र राष्ट्रों ने संयुक्त रूप से इटली पर आक्रमण किया।

इस समय इटली का जनमत मुसोलिनी के विरुद्ध हो रहा था, अतः 23 जुलाई को इटली के सम्राट ने उसे पद से हटाकर गिरफ्तार कर लिया तथा युद्ध को जारी रखा। 3 दिसंबर, 1943 को इटली ने आत्मसमर्पण कर दिया। इसी बीच जर्मनी के कुछ छतरीबाज सैनिक उस स्थान पर उतरे जहाँ मुसोलिनी नजरबंद था और मुसोलिनी को छुङा ले गए। मुसोलिनी की सहायता से पुनः इटली को अपने प्रभाव में लाने का विफल प्रयत्न किया।

4 जून, 1944 को मित्र राष्ट्रों का अधिकार हो गया। इटली में छुटपुट स्थानों पर जर्मन सेना युद्ध करती रही, किन्तु 2 मई, 1945 को उन्होंने भी हथियार डाल दिए। रूस में भी जर्मन सेनाओं की पराजय करती रही, किन्तु 2 मई, 1945 को उन्होंने भी हथियार डाल दिए। रूस में भी जर्मन सेनाओं की पराजय होती गई।

1944 की ग्रीष्म ऋतु तक रूस ने सभी क्षेत्रों से जर्मन सेनाओं को खदेङ दिया। जर्मनी की पराजय का लाभ उठाते हुये मित्र राष्ट्रों की फौजें उतारी गई। दिसंबर, 1944 तक तीन लाख सेना फ्रांस पहुँच गई। फ्रांस की सीमा पर जर्मन किलेबंदी को ध्वस्त कर दिया गया। 15 अगस्त, 1944 को फ्रांस के पूर्व भूमध्यसागरीय तट पर मित्र राष्ट्रों की सेना उतारी गयी, जिसने तूलो और मारसेली के बंदरगाहों पर अधिकार कर लिया।

25 अगस्त को जर्मन अधिकृत पेरिस का भी पतन हो गया और जर्मन सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया। फ्रांस को मुक्त कराने के बाद मित्र राष्ट्रों की फौजों ने मध्य यूरोप में जर्मनी के अधीन राज्यों को मुक्त करवाया। रूस ने जिन क्षेत्रों पर विजय प्राप्त कर ली थी और बाद में जिन पर जर्मनी का अधिकार हो गया था, अब रूस ने पुनः उन पर अधिकार कर लिया। बाल्कन प्रायद्वीप के लगभग सभी राष्ट्र मित्र-राष्ट्रों के पक्ष में हो गये।

नवंबपस 1944 में मित्र राष्ट्रों की फौजों ने हालैण्ड की ओर से जर्मनी में प्रवेश किया। जब मित्र राष्ट्रों की सेना राइन नदी पार कर गई तब तो जर्मनी की अंतिम घङी दिखाई देने लगी। जर्मनी की जनता हिटलर के विरुद्ध हो गयी तथा उसकी हत्या करने के षड्यंत्र आरंभ हो गए।

इसी बीच रूसी सेना पूर्वी क्षेत्र में जर्मनी के अधीन राज्यों को मुक्त करवाती बर्लिन की ओर तेजी से बढने लगी। 22 अप्रैल, 1945 को रूस ने बर्लिन का पतन हो गया तथा 4 मई को जर्मन सेनाओं ने आत्मसमर्पण कर दिया। हिटलर ने अपनी पत्नी इवाब्रान सहित आत्महत्या कर ली और इटली के देशभक्तों ने मुसोलिनी और उसकी पत्नी को गोली से उङा दिया। 7 मई को जर्मनी ने आत्मसमर्पण दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए तथा 8 मई को यूरोप में युद्ध बंद हो गया।

अब केवल जापान ही ऐसा राष्ट्र बचा था, जिसने आत्मसमर्पण नहीं किया था तथा युद्ध को जारी रखे हुए था, अतः मित्र राष्ट्रों का ध्यान जापान को पराजित करने की ओर गया।

ब्रिटिश फौजें सुदूरपूर्व में तेजी से बढने लगी और उन्होंने बर्मा को मुक्त करवा लिया। उसके बाद मलाया, फिलीपाइन व सिंगापुर मुक्त करवाए गए। अंत में जापान पर भीषण आक्रमण हुआ। 26 जुलाई, 1945 को पोट्सडम सम्मेलन में मित्र राष्ट्रों ने जापान से बिना शर्त आत्मसमर्पण की माँग की, किन्तु जापान ने इस माँग को ठुकरा दिया।

फलतः 6 अगस्त, 1945 को जापान के अत्यन्त ही समृद्ध नगर हिरोशिमा पर अमेरिका द्वारा पहला अणु बम डाला गया। हिरोशिमा जलकर भस्म हो गया, फिर भी जापान ने आत्मसमर्पण नहीं किया। उधर रूस ने भी जापान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी, फिर भी जापान अभी झुकने को तैयार नहीं 9 अगस्त, 1945 को अमेरिका ने जापान के एक अन्य नगर नागासाकी पर दूसरा अणु बम डाला।

बस, जापान के प्रतिरोध का यहीं अंत हो गया। 14 अगस्त, 1945 को जापान ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया। जापान ने केवल सम्राट के विशेषाधिकारों को सुरक्षित रखने की शर्त लगाई। मित्र राष्ट्रों ने इस शर्त को स्वीकार करते हुये जापान को मित्र राष्ट्रों के सर्वोच्च सेनाध्यक्ष जनरल मैकार्थर के नियंत्रण में रखने की माँग की, जिसे स्वीकार करने के अलावा जापान के पास कोई अन्य चारा नहीं था। जापान की इस पराजय के बाद द्वितीय महासमर की विभीषिका की इतिश्री हो गई।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
wikipedia :द्वितीय महायुद्ध की गतिविधियाँ

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