इतिहासप्राचीन भारतवाकाटक वंश

वाकाटक शासक प्रवरसेन द्वितीय

प्रवरसेन द्वितीय जब सिंहासन पर बैठा तब उसकी आयु 20 वर्ष थी। कुछ समय तक उसने अपने नाना चंद्रगुप्त द्वितीय की सहायता प्राप्त की, किन्तु उसकी मृत्यु के बाद उसने शासन का स्वतंत्र भार ग्रहण कर लिया।

प्रवरसेन द्वितीय के अनेक ताम्रपत्र मिले हैं, परंतु किसी से भी उसकी सैनिक विजयों की सूचना नहीं मिलती। अतः ऐसा लगता है, कि उसने अपने साम्राज्य को बढाने का प्रयास नहीं किया। वह साहित्यिक अभिरुचि का शासक था। जिसने सेतुबंध नामक प्राकृत काव्य-ग्रंथ की रचना की थी।

इसमें राम की लंका-विजय का विवरण सुरक्षित है। वह वैष्णव धर्मानुयायी था। अपने शासन के अंत में प्रवरसेन ने प्रवरपुर नामक एक नई राजधानी स्थापित की, जहाँ उसने अपनी राजधानी नंदिवर्धन, जो पहले उसकी राजधानी थी, से स्थानांतरित कर दी।

उसके पुत्र नरेन्द्रसेन का विवाह कदंबवंश की राजकुमारी अजितभट्टारिका के साथ संपन्न हुआ था। यह संभवतः कदंबनरेश काकुत्सवर्मन की कन्या थी। उसकी प्रतिष्ठा में बृद्धि हुई। प्रवरसेन द्वितीय ने लगभग 440 ईस्वी तक राज्य किया।

Reference : https://www.indiaolddays.com

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