चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) कौन था
समुद्रगुप्त के बाद उसकी प्रधान महिषी दत्तदेवी से उत्पन्न पुत्र चंद्रगुप्त द्वितीय गुप्त राजवंश का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं शक्तिशाली शासक बना। गुप्तवंशी लेखों में उसे तत्परिगृहीत अर्थात् उसके (समुद्रगुप्त) द्वारा चुना गया, कहा गया है।
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चंद्रगुप्त के बारे में जानकारी प्रदान करने वाले साधन निम्नलिखित हैं-
साहित्य–
कालिदास के ग्रंथ।
विदेशी विवरण –
चीनी यात्री फाहियान का यात्रा-वृत्तांत ।
सिक्के–
स्वर्ण, रजत एवं ताम्र के विविध प्रकार के सिक्के।
चंद्रगुप्त द्वितीय का शासनकाल
चंद्रगुप्त की प्रथम ज्ञात तिथि गुप्त संवत् 61 अर्थात् 380 ईस्वी है,जो उसके मथुरा स्तंभलेख से प्राप्त होती है। यह लेख उसके शासनकाल के 5 वें वर्ष का है। इससे ऐसा ज्ञात होता है,कि चंद्रगुप्त ने 375 ईस्वी में अपना शासन प्रारंभ किया था। उसकी अंतिम तिथि गुप्त संवत् 93 अर्थात् 412 ईस्वी लेख में उत्कीर्ण मिलती है, जिससे स्पष्ट है कि वह इस समय शासन कर रहा था।
चंद्रगुप्त के पुत्र कुमारगुप्त प्रथम के राज्यकाल की पहली तिथि गुप्त-संवत् 96 अर्थात् 415 ईस्वी उसके बिलसद लेख में अंकित है, जो इस बात की सूचक है कि इस तिथि तक चंद्रगुप्त का शासन समाप्त हो चुका था।
अतः हम इन साक्ष्यों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं, कि चंद्रगुप्त ने 375 ईस्वी से 415 ईस्वी के लगभग अर्थात् कुल 40 वर्षों तक शासन किया।
चंद्रगुप्त द्वितीय का शासनकाल अभूतपूर्व उन्नति का काल था-
इस दीर्घकालीन शासन में गुप्तवंश ने राजनीतिक एवं सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से अभूतपूर्व प्रगति की तथा उन्नति की चोटी पर जा पहुँचा। वस्तुतः उसका शासन काल गुप्त इतिहास के सर्वाधिक गौरवशाली युग का प्रतिनिधित्व करता है।
चंद्रगुप्त द्वितीय का एक अन्य नाम देव भी था और उसे देवगुप्त, देवराज, दवश्री आदि कहा गया है। विक्रमांक, विक्रमादित्य, परमभागवत आदि उसकी सुप्रसिद्ध उपाधियाँ थी। इन उपाधियों से जहाँ एक ओर उसका अतुल पराक्रम सूचित होता है, वहीं दूसरी ओर धर्मनिष्ठ वैष्णव होना भी सिद्ध होता है।
Reference : http://www.indiaolddays.com