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राष्ट्रसंघ का संगठन एवं उद्देश्य

राष्ट्रसंघ का संगठन एवं उद्देश्य

राष्ट्रसंघ का संगठन (Organization of the League of Nations)

प्रस्तावना

प्रथम विश्वयुद्ध मानवता के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ था। अमेरिकी राष्ट्रपति विल्सन विश्व में स्थायी शांति स्थापित करना चाहता था। उसने अपने प्रसिद्ध 14 सूत्रों में से अंतिम सूत्र में राष्ट्रसंघ की योजना रखी थी। पेरिस शांति सम्मेलन में इसका प्रारूप तैयार करने के लिए विल्सन की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई। समिति द्वारा तैयार प्रारूप को सर्वसम्मति से 28 अप्रेल 1919 ई. को स्वीकार कर लिया गया। इसका कार्यालय स्विटजरलैण्ड के जेनेवा नगर में रखा गया।

राष्ट्रसंघ का संगठन (Organization of the League of Nations)

राष्ट्रसंघ का संगठन एवं उद्देश्य

समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले 16 देश इसके प्रारंभिक सदस्य थे। राष्ट्रसंघ की साधारण सभा 2/3 बहुमत से किसी भी देश को सदस्यता प्रदान कर सकती थी। परिषद सर्वसम्मति से किसी भी देश को इसकी सदस्यता से वंचित कर सकती थी। सदस्यता त्यागने के लिए दो वर्ष पूर्व सूचित करना आवश्यक था। रूस तथा जर्मनी प्रारंभ में इसके सदस्य नहीं थे। अमेरीका ने भी इसकी सदस्यता ग्रहण नहीं की थी। इस प्रकार प्रारंभ में ही इस संगठन को सभी महाशक्तियों का सहयोग प्राप्त नहीं हुआ।

राष्ट्रसंघ के प्रमुख अंग

साधारण सभा

यह राष्ट्रसंघ का प्रमुख अंग था। इसमें प्रत्येक सदस्य देश तीन प्रतिनिधि भेज सकता था। परंतु सदस्य देश को एक ही मत देने का अधिकार था। निर्णय सर्वसम्मति से होता था। इसका अधिवेशन वर्ष में एक बार होता था।

साधारण सभा नये सदस्य बनाती थी। इसके अलावा राष्ट्र संघ का बजट भी साधारण सभा पारित करती थी। अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा परिषद के अस्थायी सदस्यों का चुनाव भी साधारण सभा का कार्य था।

परिषद

यह कार्यकारी अंग था। इसके वर्ष में तीन अधिवेशन होते थे। इसमें पांच स्थायी सदस्य थे। अस्थायी सदस्यों की संख्या प्रारंभ में चार तथा बाद में 11 कर दी गयी। परिषद को राष्ट्रसंघ का आदेश न मानने पर संबंधित देश की सदस्यता समाप्त करने का अधिकार था। अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का समाधान परिषद का कार्य था। आवश्यता पङने पर परिषद आर्थिक परिषद लगाने अथवा सैनिक कार्यवाही का निर्णय ले सकती थी। मेण्डेट व्यवस्था से संबंधित देशों की शासन संबंधी रिपोर्ट इसके समक्ष प्रस्तुत होती थी।

सचिवालय

इसका अध्यक्ष महासचिव कहलाता था। इसकी नियुक्ति परिषद द्वारा होती थी। इसमें 750 कर्मचारी कार्य करते थे। यह परिषद तथा साधारण सभा की बैठकों की विषय सूची तैयार करता था। सदस्य देशों द्वारा की गयी संधियों को इस कार्यालय में लिपिबद्ध किया जाता था। राष्ट्रसंघ का प्रबंध, पत्र व्यवहार, तथा आवश्यक जानकारी का संग्रह एवं प्रकाशन इसके प्रमुख कार्य थे।

अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघ

इसका कार्यालय जेनेवा में था। विश्व के मजदूरों के कल्याण हेतु प्रयास करना इसका कार्य था। इसके तीन भाग थे – साधारण सभा, प्रशासनिक विभाग तथा अन्तर्राष्ट्रीय श्रम कार्यालय।

राष्ट्रसंघ की सफलताएँ

मेण्डेट अथवा संरक्षण व्यवस्था – पेरिस शांति सम्मेलन में धुरी राष्ट्रों के उपनिवेशों को उनसे छीनकर राष्ट्रसंघ को दे दिये गए थे। राष्ट्रसंघ ने इन्हें मैण्डेट व्यवस्था के अन्तर्गत इंग्लैण्ड, फ्रांस, बेल्जियम, जापान आदि देशों के संरक्षण में शासने हेतु दे दिए। संरक्षक देश प्रतिवर्ष इनके शासन की रिपोर्ट राष्ट्रसंघ को प्रस्तुत करते थे। राष्ट्रसंघ इस पर विचार के बाद आवश्यक निर्देश भी देता था।

राजनीतिक उपलब्धियाँ – राष्ट्रसंघ छोटे देशों के विवादों को हल करने में सफल रहा। आलैण्ड द्वीप विवाद, अल्बानिया सीमा विवाद, मेमल समस्या (1923 ई.) बल्गेरिया यूनान सीमा विवाद (1925 ई.) अपर साइलेशिया सीमा विवाद (1921 ई.) आदि समस्याओं को हल करना राष्ट्रसंघ की महत्त्वपूर्ण समफलता थी।

आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्र में उपलब्धियाँ – राष्ट्रसंघ ने सामाजिक आर्थिक तथा स्वास्थ्य संबंधी महत्त्वपूर्ण कार्य किए। राष्ट्रसंघ ने संकटग्रस्त देशों को वित्तीय सहायता दी। शिक्षा तथा संस्कृति के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किए। स्मारको, कलाकृतियों की सुरक्षा, प्रशिक्षण आदि की व्यवस्था की अन्तर्राष्ट्रीय परिवहन के क्षेत्र में नियमों का निर्माण किया। इसके द्वारा चिकित्सा के क्षेत्र में भयानक रोगों की रोकथाम तथा निदान के प्रयास किए गए।दास प्रथा समाप्ति, नारी एवं बाल कल्याण के लिए कार्य किया गया। राष्ट्रसंघ ने युद्धबंदियों तथा शरणार्थियों के पुनर्वास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

राष्ट्रसंघ की असफलताएँ

राष्ट्रसंघ शक्तिशाली राज्यों के विवाद हल करने में असफल रहा। राष्ट्रसंघ जर्मनी को राइनलैण्ड के सैन्यीकरण, शस्त्रीकरण तथा आस्ट्रिया एवं चेकोस्लोवाकिया को हङपने से नहीं रोक पाया। जापान द्वारा मंचूरिया पर आक्रमण (1931-32 ई.) तथा इटली अबीसीनिया संघर्ष (1934-37 ई.) राष्ट्रसंघ की घोर असफलता थी। इसी प्रकार राष्ट्रसंघ स्पेन में इटली तथा जर्मनी के सहयोग से जनरल फ्रैंकों द्वारा गणतांत्रिक सरकार को अपदस्थ करने से रोकने में असफल रहा।

राष्ट्रसंघ की असफलता के कारण

  • राष्ट्रसंघ को सभी निर्णय सर्वसम्मति से लेने पङते थे। यही नहीं राष्ट्रसंघ के संविधान में युद्ध का पूर्णनिषेध नहीं था। रक्षात्मक युद्ध को वैध माना गया था। आक्रमणकारी राज्यों ने इसका लाभ उठाया।
  • अन्तर्राष्ट्रीय सेना का अभाव।
  • राष्ट्रसंघ का वर्साय संधि का अंग होना।
  • नि:शस्त्रीकरण में असफलता।
  • विश्वव्यापी आर्थिक मंदी।
  • अमेरीका का सहयोग, बाद में जर्मनी, इटली तथा जापान ने भी राष्ट्रसंघ की सदस्यता का परित्याग कर दिया। इस प्रकार राष्ट्रसंघ को शक्तिशाली देशों का सहयोग नहीं मिलना असफलता का प्रमुख कारण था।
  • अधिनायकवाद का उदय।

    असफलताओं के बावजूद राष्ट्रसंघ विश्व शांति तथा अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के क्षेत्र में प्रथम प्रयोग था। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद राष्ट्रसंघ के अनुभवों के आधार पर ही संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना की गयी।

राष्ट्र संघ के उद्देश्य

राष्ट्रसंघ की स्थापना के उद्देश्य निम्नलिखित थे

  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की वृद्धि करना।
  • विश्व में शांति तथा सुरक्षा की स्थापना करना।
  • युद्ध को रोकना तथा विवादों का शांतिपूर्ण हल निकालना।
  • निशस्त्रीकरण।
  • पेरिस शांति सम्मेलन की संधियों का पालन करवाना।

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