इतिहासराष्ट्रसंघविश्व का इतिहास

राष्ट्रसंघ के प्रमुख अंग

राष्ट्रसंघ के प्रमुख अंग

राष्ट्रसंघ के प्रमुख अंग थे – असेम्बली, कौंसिल और सचिवालय। इसके दो स्वायत्त अंग थे – अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय और अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन।

राष्ट्र संघ के प्रमुख अंग

असेम्बली

असेम्बली या साधारण सभा राष्ट्रसंघ की प्रतिक्रियाध्यात्मक एवं व्यापक अंग थी। इसमें संघ के सभी सदस्य राष्ट्र सम्मिलित थे और प्रत्येक राष्ट्र को समान रूप से एक मत देने का अधिकार था, यद्यपि प्रत्येक सदस्य राष्ट्र अपने तीन प्रतिनिधि भेज सकता था। असेम्बली का अधिवेशन प्रतिवर्ष सितंबर मास में जेनेवा नगर में होता था।

वार्षिक अधिवेशन के अलावा असाधारण अधिवेशन बुलाने की भी व्यवस्था थी। राष्ट्रसंघ के प्रतिश्रव के अनुसार असेम्बली की सहायता के विशिष्ट समस्याओं के समाधान हेतु समितियाँ बनाने के लिये भी असेम्बली स्वतंत्र थी। असेम्बली में मतदान की चार पद्धतियाँ थी। कुछ विषयों के लिये दो तिहाई बहुमत की और कुछ के लिये पूर्ण आवश्यक था।

वर्साय की संधि

असेम्बली का कार्यक्षेत्र काफी विस्तृत था। राष्ट्रसंघ के क्षेत्राधिकार में आने वाले किसी भी विषय पर अथवा अन्तर्राष्ट्रीय शांति को प्रभावित करने वाले किसी भी विषय पर असेम्बली विचार कर सकती थी।

मोटे तौर पर असेम्बली के तीन कार्यक्षेत्र थे –

  1. निर्वाचन संबंधी,
  2. अंगीभूत संबंधी
  3. परामर्श संबंधी।
निर्वाचन संबंधी कार्यक्षेत्र के अन्तर्गत असेम्बली का काम
  • दो-तिहाई मतों से संघ के नए सदस्यों का चुनाव,
  • साधारण बहुमत द्वारा कौंसिल के अस्थायी सदस्यों का निर्वाचन,
  • अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के 15 न्यायाधीशों का निर्वाचन
  • कौंसिल द्वारा नियुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव की नियुक्ति की पुष्टि करना था।

अंगीभूत संबंधी कार्यक्षेत्र के अन्तर्गत असेम्बली का काम

असेम्बली संविदा के नियमों में संशोधन कर सकती थी, परंतु ऐसे संशोधन कौंसिल तथा प्रभावित देशों द्वारा स्वीकार्य होने जरूरी थे। परामर्श संबंधी कार्यक्षेत्र के अन्तरग्त असेम्बली अन्तर्राष्ट्रीय हितों से संबंधित किसी भी सामान्य प्रश्न पर विचार कर सकती थी और कौंसिल को अपना परामर्श भेज सकती थी, परंतु असेम्बली स्वयं कोई कार्य नहीं कर सकती थी, केवल परामर्श दे सकती थी।

प्रथम असेम्बली को विल्सन ने आहूत किया था और15 नवम्बर, 1920 को इसका प्रथम अधिवेशन हुआ। असेम्बली का अंतिम अधिवेशन 18 अप्रैल, 1946 को हुआ था। इस अधिवेशन में उपस्थित 34 सदस्यों ने सर्वसम्मति से राष्ट्रसंघ को विघटित करने का प्रस्ताव पारित किया था।

पेरिस की संधि

कौंसिल

कौंसिल अथवा परिषद राष्ट्रसंघ की एक लघु समिति के समान थी। इसे प्रायः संघ की कार्यकारिणी भी कहा जाता है। कौंसिल में दो प्रकार के सदस्य थे – स्थायी और अस्थायी। प्रारंभ में स्थायी सदस्यों की संख्या 5 और अस्थायी सदस्यों की संख्या 4 रखी गई थी, परंतु बाद में अस्थायी सदस्यों की संख्या बढाकर 9 कर दी गयी।

अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस, इटली और जापान को स्थायी सदस्यता प्रदान की गयी थी, परंतु अमेरिका द्वारा शांति समझौतों का अनुसमर्थन न किए जाने से अमेरिका राष्ट्रसंघ का सदस्य नहीं बन पाया। असेम्बली प्रतिवर्ष तीन वर्ष की अवधि के लिये तीन अस्थायी सदस्यों को निर्वाचन करती थी।

परिषद के निर्णय प्रायः निर्विरोध होते थे। केवल रीति विषयक मामलों, अल्पसंख्यकों से संबंधित धाराओं के संशोधन, संघ के सदस्य राष्ट्रों के आपसी विवादों के संबंध में सिफारिश संबंधी मामलों में कौंसिल बहुमत से निर्णय ले सकती थी। संयुक्त राष्ट्रसंघ की भाँति राष्ट्रसंघ के स्थायी सदस्यों को निषेधाधिकार (वीटो) प्राप्त नहीं था।

कौंसिल की अध्यक्षता, कौंसिल के सदस्यों में से, प्रति सम्मेलन पर सदस्यों की फ्रेंच नामावली के क्रमानुसार बदलती रहती थी। कौंसिल में जब कोई ऐसा वाद-विवाद चल रहा हो, जिसमें किसी राष्ट्र का स्वार्थ प्रभावित होता हो, तो उसके प्रतिनिधि को भी कौंसिल की बैठक में भाग लेने के लिये आमंत्रित किया जा सकता था। कौंसिल एक वर्ष में तीन – चार बार अपनी बैठक करती थी, परंतु विशेष समस्या उपस्थित होने पर किसी भी समय अपनी बैठक कर सकती थी।

असेम्बली की भाँति कौंसिल का कार्यक्षेत्र भी असीमित था। उसके मुख्य कार्य इस प्रकार थे-
  • महासचिव द्वारा की गई विभागीय नियुक्तियों को स्थायी करना
  • निः-शस्त्रीकरण के लिये योजनाएँ बनाना तथा युद्ध के खतरों को टोलना तथा उन देशों को सहयोग देना जो युद्ध सामग्री का निर्माण करने में असमर्थ हों
  • आक्रामक कार्यवाही के समय संबंधित देशों को कर्त्तव्य पालन करने का सुझाव देना
  • प्रतिश्रव की सुरक्षा के लिये यदि सैनिक कार्यवाही की आवश्यकता आ पङे, तो कौन देश कितनी सैनिक सहायता देगा इसका निर्णय करना
  • प्रतिश्रव के नियमों का उल्लंघन करने वाले सदस्य को सदस्यता से पृथक करना।

मंडेट पद्धति के अन्तर्गत बङे राज्यों के संरक्षण में रखे गये देशों के बारे में वार्षिक रिपोर्ट मँगवाना तथा उस पर विचार करना। इसके अलावा कौंसिल का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य झगङों को निपटाना था। कौंसिल को इन झगङों को असेम्बली के पास भी भेजना पङता था। इसके अलावा, अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय, सारघाटी, डेन्जिग और मिश्रित आयोगों की नियुक्ति के संबंध में भी अनेक काम करने पङते थे।

असेम्बली के साथ मिलकर कौंसिल को निम्नलिखित कार्य करने पङते थे-

  • कौंसिल के अलावा स्थायी सदस्यों की नियुक्ति
  • अतिरिक्त अस्थायी सदस्यों की संख्या निर्धारित करना
  • राष्ट्रसंघ के महासचिव की नियुक्ति
  • शांति संधियों में संशोधन
  • अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के सदस्यों का निर्वाचन
  • न्यायालय के अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति। इन सभी के लिये असेम्बली और कौंसिल का मिला-जुला क्षेत्राधिकार था। इस प्रकार, कौंसिल वास्तव में राष्ट्रसंघ का सर्वाधिकार महत्त्वपूर्ण एवं शक्तिशाली अंग था।

सचिवालय

सिचवालय राष्ट्रसंघ का स्थायी प्रशासनिक अंग था। इसका केन्द्र जेनेवा में था। इसे राष्ट्रसंघ का सर्वाधिक उपयोगिता और सबसे कम विवादस्पद अंग कहकर पुकारा गया । इसमें लगभग 60 अधिकारी, कर्मचारी और विशेषज्ञ काम करते थे। इन सभी की नियुक्तियाँ अन्तर्राष्ट्रीय नागरिक सेवा के आधार पर की जाती थी।

सचिवालय का प्रधान अधिकारी महासचिव कहलाता था। इसकी नियुक्ति असेम्बली की स्वीकृति के साथ कौंसिल करती थी। इंग्लैण्ड के सुयोग्य राजनीतिज्ञ सर ड्यूमण्ड ने 1920 से लेकर 1933 तक इस पद पर कार्य किया था। महासचिव की सहायता के लिये दो उपसचिव और दो सहायक सचिव होते थे। सचिवालय के 11 विभाग थे। प्रत्येक विभागद एक निदेशक के अधिकार में रहता था।

सचिवालय असेम्बली और कौंसिल दोनों के लिये काम करता था। उसका कार्य अपनी विविध सेवाओं के द्वारा संघ के सभी अंगों की सहायता करना था। सचिवलाय असेम्बली तथा कौंसिल के विचारणीय विषयों की सूची तैयार करना था, बैठकों की कार्यवाही का विवरण रखता था, बैठकों की व्यवस्था करता था, विविध विषयों के मसौदे तैयार करता था, संधियों को पंजीबद्ध करता था और इसी प्रकार के अन्य अनेक प्रशासनिक कार्य करता था।

अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय

प्रारंभ में अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के लिये असेम्बली और कौंसिल द्वारा 9 वर्ष की अवधि के लिये नियुक्त 11 न्यायाधीशों की व्यवस्था की गई थी, परंतु कुछ समय बाद न्यायाधीशों की संख्या बढाकर 15 कर दी गयी। न्यायालय के अध्यक्ष का चुनाव स्वयं न्यायाधीशों द्वारा किया जाता था। अध्यक्ष की अवधि तीन वर्ष होती थी। हेग नगर को अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का केन्द्र चुना गया। न्यायालय का क्षेत्राधिकार दो प्रकार का था – ऐच्छिक और अनिवार्य।

जब कोई राज्य विशिष्ट समझौते के अन्तर्गत किसी झगङे को इस न्यायालय के निर्णयार्थ प्रस्तुत करता था, तो यह न्यायालय के ऐच्छिक अधिकार में आता था। इसका अधिकार अनिवार्य तब होता था, जब संधि के द्वारा राज्यों के बीच यह समझौता होता कि संधि संबंधी झगङों को इसी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए और संधि करने वाले राज्यों ने साफ तौर से इस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को अपने ऊपर अनिवार्य मान लिया हो।

न्यायालय का अधिकार क्षेत्र तो ऐसे मामलो में था जो कानूनी प्रकृति के हों। इसके अन्तर्गत संधियों, अन्तर्राष्ट्रीय कानून संबंधी किसी भी प्रश्न, अन्तर्राष्ट्रीय दायित्व का उल्लंघन, उल्लंघन के लिये क्षतिपूर्ति का रूप एवं उसकी सीमा की व्याख्या करना शामिल था। न्यायालय में अभियोग के वादी-प्रतिवादी के रूप में केवल राज्य ही (जिसमें स्वतंत्र उपनिवेश भी सम्मिलित थे) उपस्थित हो सकते थे।

मूलतः न्यायालय का कार्य तो केवल उन्हीं मामलों के विचार तक सीमित कर दिया गया था जो राष्ट्रसंघ के सदस्यों के बीच होते थे, परंतु बाद में गैर सदस्य राष्ट्रों के लिये भी इस न्यायालय का द्वार खोल दिया गया। न्यायालय को कौंसिल तथा असेम्बली को माँगने पर सलाह देने का भी अधिकार था। यद्यपि न्यायालय के सुझाव अनिवार्य नहीं थे, परंतु उन्हें स्वीकार कर लिया जाता था।

अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन (ILO)अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन यद्यपि एक स्वायत्त संस्था थी, फिर भी यह राष्ट्रसंघ का एक अंग थी। इसका केन्द्र जेनेवा में था और इसका संगठन राष्ट्रसंघ के संगठन से मिलता-जुलता था।इसी एक साधारण सभा, एक शासकीय परिषद, और एक अंतर्राष्ट्रीय कार्यालय था।

इसका निर्माण पेरिस शांति सम्मेलन द्वारा, संगठित मजदूरों की माँगों को संतुष्ट करने तथा अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक समस्याओं को हल करने के लिये एक समान प्रयास का परिणाम था। इस संगठन का प्रमुख उद्देश्य संपूर्ण संसार में श्रमिक संबंधी कानूनों के निर्माण में एकरूपता लाने का प्रयत्न करना था।

निः संदेह संगठन ने समय-समय पर सहस्य राष्ट्रों को सुझाव भेजे, परंतु इसके कार्यों को केवल सुझाव मान लिया गया और उन सुझावों को कार्यान्वित करने की दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया। संगठन के कार्यों को जो समय और परिश्रम लगा, उसको देखते हुए उसकी उपलब्धि नगण्य कही जा सकती है।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
wikipedia : राष्ट्रसंघ 

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