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द्वितीय विश्व युद्ध की घटनाएं

द्वितीय विश्व युद्ध की घटनाएं

द्वितीय विश्व युद्ध की घटनाएं (World War II events)

सुविधा की दृष्टि से विश्वयुद्ध की घटनाओं को चार अवस्थाओं में बाँट सकते हैं-

प्रथम अवस्था – 1 सितंबर, 1939 से 21 जून 1941 तक जिसमें जर्मनी ने पौलेण्ड, डेनमार्क, नीदरलैण्ड, बेल्जियम, लेक्जेम्वर्ग, फ्रांस, ब्रिटेन तथा यूनान पर आक्रमण किए।

दूसरी अवस्था – 22 जून, 1941 से 6 दिसंबर 1941 तक धुरी राष्ट्रों द्वारा अफ्रीका पर आक्रमण तथा जर्मनी का रूस पर आक्रमण।

द्वितीय विश्व युद्ध की घटनाएं

तीसरी अवस्था – 7 दिसंबर, 1941 से 7 नवम्बर, 1942 तक जापान का पर्ल हार्बर पर आक्रमण तथा मित्र राष्ट्रों के सैन्य बल का नीदरलैण्ड, ईस्टइन्डीज तथा कोकेशस पर अधिकार।

चौथी अवस्था – 8 नवम्बर, 1942 से 14 अगस्त, 1945 तक जिसमें फ्रेंच उत्तरी अफ्रीका पर अमेरिका का आक्रमण, तथा जर्मनी का आत्मसमर्पण, 7 मई, 1945 से 14 अगस्त, 1945 तक जापान का आत्मसमर्पण।

पौलेण्ड पर आक्रमण

1 सितंबर 1939 को प्रातः चार बजे जब सारा यूरोप सोया हुआ था, हिटलर की सेना पौलैण्ड पार कर गई। हवाई हमलों द्वारा यातायात के साधानों व कल-कारखानों को नष्ट कर दिया। पोलिश सेना को मुकाबला करने का मौका ही नहीं मिला, दो सप्ताह के भीतर पौलैण्ड के पश्चिमी प्रदेश पर अधिकार कर राजधानी वारसा को घेर लिया। हवाई हमलों के कारण मित्र राष्ट्र वायु मार्ग से पौलैण्ड को सैनिक सहायता नहीं भेज सके।

17 सितंबर, 1939 को रूस ने भी पौलैण्ड के पूर्वी भाग पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया। जिससे रूस की सीमा जर्मनी की सीमा से नहीं मिल सके। 27 सितंबर को संपूर्ण पौलैण्ड पर विदेशी अधिकार हो गया। एक समझौते के तहत पौलैण्ड का पूर्वी भाग रूस को प्राप्त हुआ व पश्चिमी भाग जर्मनी के अधिकार में रहा।

रूस का वाल्टिक राज्यों पर अधिकार व फिनलैण्ड पर रूस का आक्रमण

रूस के साथ संधि होने के बाद जर्मनी पश्चिमी मोर्चे पर फ्रांस व इंग्लैण्ड के साथ युद्ध में व्यस्त हो गया। इसका लाभ उठाकर रूस ने वाल्टिक सागर में स्टोनिया, लेटविया व लिथुवानिया से संधि कर अपने सैनिक अड्डे स्थापित कर दिये। रूस लेनिनग्राड की रक्षा के लिये फिनलैण्ड में भी नौ सैनिक अड्डा स्थापित करना चाहता था। फिनलैण्ड के सामने वार्ता के दौरान अपनी मांग रखी। नौ सैनिक अड्डे की स्थापना को छोङ सभी शर्तें स्वीकार कर ली इस पर नाराज होकर रूस ने 29 नवम्बर, 1939 को फिनलैण्ड पर आक्रमण कर दिया।

प्रारंभ में फिनलैण्ड ने जमकर मुकाबला किया, किन्तु फरवरी 1940 में रूस ने फिनलैण्ड पर जोरदार आक्रमण किया। फलस्वरूप 12 मार्च, 1940 को फिनलैण्ड को आत्मसमर्पण करना पङा।

डेनमार्क और नार्वे का पतन

पौलैण्ड पर अधिकार के बाद हिटलर ने इंग्लैण्ड व फ्रांस के सम्मुख युद्ध बंद करने की बात रखी और कहा कि उसे अन्य प्रदेश को प्राप्त करने की आकांक्षा नहीं है। परंतु मित्र राष्ट्रों ने अविश्वास करके मांग को ठुकरा दिया। अतः जर्मनी ने अप्रेल 1940 में नार्वे तथा डेनमार्क पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया। इस पराजय से चेम्बरलेन की सरकार बदनाम हो गयी उसे त्यागपत्र देना पङा तथा चर्चिल को प्रधानमंत्री बनाया गया।

हालैण्ड और बेल्जियम पर जर्मनी का आक्रमण

10 मई, 1940 को जर्मनी ने लेक्जेम्बर्ग बेल्जियम व हालैण्ड पर आक्रमण कर दिया और उसका लेक्जेम्बर्ग पर उसी दिन और हालैण्ड पर पाँच दिन में अधिकार हो गया। 28 मई, 1940 को बेल्जियम ने आत्मसमर्पण कर दिया। बेल्जियम की सहायता के लिए आई ब्रिटिश सेना स्वयं जर्मन घेरे में घिर गई जिससे सहयोग प्राप्त नहीं हो सका।

फ्रांस का आत्मसमर्पण

बेल्जियम पर आक्रमण करने का अर्थ ही यह था कि जर्मनी अब फ्रांस पर विद्युत प्रहार करने की तैयारी कर रहा है। अतः फ्रांस ने भी अपने बचाव की तैयारी आरंभ कर दी, 10 मई, 1940 को हिटलर ने अपने पुराने शत्रु फ्रांस पर आक्रमण कर दिया। 17 मई को जर्मनी सेनाओं ने फ्रांसीसी रक्षा पंक्ति को भेदकर 60 मील के विस्तृत क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।

मित्र राष्ट्रों व फ्रांस की स्थिति अत्यंन्त कमजोर हो गयी थी। 19 मई को फ्रांस ने फेरबदल करते हुए मार्शल पेता को उप-प्रधानमंत्री, स्वयं प्रधानमंत्री ने युद्ध मंत्री व जनरल गोमली के स्थान पर जनरल बेंगांद को प्रधान सेनापति का दायित्व दिया गया। परंतु 75 वर्षीय बेगांद फ्रांस की रक्षा करने में असमर्थ था।

27 मई को जर्मनी की सेना डंकर्क बंदरगाह के करीब पहुँच गयी। 28 मई, को वेल्जियम के शासक लियोपोल्ड ने आत्मसमर्पण कर युद्ध बंद कर दिया। इससे जर्मनी के लिए आक्रमण का रास्ता खुल गया। जर्मन टेंकों और हवाई जहाजों के हमलों के सामने फ्रांस की सेना अधिक समय तक टिक नहीं सकी तथा पेरिस पर जर्मनी का अधिकार हो गया।

इटली का युद्ध में प्रवेश

मई, 1940 के अंत तक इटली की सैनिक तैयारी पूरी हो चुकी थी। 10 जून, 1940 को मुसोलिनी ने मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। घोषणा से फ्रांस का मनोबल टूट गया। अब इटली की सीमा से सेना हटाकर पेरिस की रक्षा के लिये भेजना संभव नहीं था। अतः 14 जून को हिटलर की सेना शांतिपूर्वक पेरिस पहुँच गयी। 16 जून को फ्रांसीसी प्रधानमंत्री रैना ने त्यागपत्र दे दिया। मार्शल पेता प्रधानमंत्री बना।

22 जून को फ्रांस व जर्मनी के बीच युद्ध विराम संधि हुई जिसके तहत फ्रांस को आधे से अधिक भूभाग जिसमें औद्योगिक क्षेत्र व अटलांटिक सागर तटीय बंदरगाह सम्मिलित हैं, जर्मनी को सौंपने पङे। इटली के साथ भी 23 जून, 1940 को युद्ध विराम संधि हुई जिसके तहत जीता हुआ क्षेत्र देने तथा साथ में लगे 31 मील लंबे में, तुलो, टयूनीशिया, कार्शिका, अल्जिरिया में प्रमुख ठिकानों को भी सैन्यीकरण करने की स्वीकृति दे दी। कुछ देसभक्तों ने आजाद फ्रांसीसी सरकार का इंग्लैण्ड में गठन कर जर्मनी के विरुद्ध युद्ध जारी रखा।

ब्रिटेन पर जर्मनी का आक्रमण

फ्रांस की पराजय से ब्रिटेन की स्थिति कमजोर हो गयी। उसके सैनिक हथियार व जहाजी बेङे जर्मनी को प्राप्त हो चुके थे। नार्वे से दक्षिणी स्पेन तक समुद्र पर जर्मनी का अधिकार था, इससे प्रोत्साहित होकर 18 जून, 1940 को इंग्लैण्ड पर भीषण आक्रमण कर दिया। 5 माह तक जर्मन हवाई जहाज इंग्लैण्ड पर बम वर्षा करते रहे। परंतु चर्चिल की सरकार ने बङे साहस के साथ जर्मनी का मुकाबला किया।

जर्मनी के 3 हजार से अधिक बमवर्षक विमानों को मार गिराया। 4 जून 1940 को चर्चिल ने हाउस कामन्स ने बोलते हुए कहा था यद्यपि यूरोप के विस्तृत क्षेत्र और अनेक प्राचीन एवं प्रतिष्ठित राज्य नात्सी, शासनतंत्र के अधीन चले गए हैं। परंतु हम न तो झुकेंगे और न ही असफल होंगे, हम अंत तक संघर्ष करेंगे, हम फ्रांस में लङेंगे, समुद्रों एवं महासागरों पर लङेंगे, हम बढते हुए आत्मविश्वास एवं बढती हुई शक्ति से हवाई युद्ध करेंगे, अपनी द्वीप की रक्षा अवश्य करेंगे। चाहे उसके लिए कितनी ही कीमत चुकानी पङे। हम कभी भी आत्मसमर्पण नहीं करेंगें।

चर्चिल के इस जोशीले भाषण ने नई ऊर्जा का संचार किया। इंग्लैण्ड को एक बार शक्ति के साथ खङा कर दिया। इसी से वह जर्मनी का सामना कर सका। दूसरी ओर इटली ने सोमालीलैण्ड, केनिया और सूडान पर अधिकार कर लिया। इटली ने उत्तरी मिश्र पर पर आक्रमण कर दिया।

उसके बाद यूनान पर चढाई कर दी परंतु यूनान ने अन्य देशों की सहायता से इटालियन सेना को बाहर निकाल दिया। इटली ने जर्मनी के सहयोग से अप्रैल, 1941 को यूनान पर पुनः अधिकार कर लिया। रूस भी बाल्टिक सागर में अधिकार करता जा रहा था। इधर जापान सुदूरपूर्व में वृहत्तर पूर्वी एशिया का निर्माण करना चाहता था।

इसलिए जर्मनी व इटली के सात समझौता कर सितंबर, 1941 में धुरी राष्ट्रों के समर्थन में युद्ध में प्रवेश किया । हंगरी, रूमानिया और स्लोवाकिया भी धुरी राष्ट्रों के साथ मिल गए। फरवरी, 1941 में जर्मनी सेना ने लीबिया से ब्रिटेन फौज को खदेङ दिया। 1 अप्रेल 1941 को यूगोस्लाविया को जीत लिया। ईरान, इराक और सीरिया पर भी जर्मनी सेना ने आक्रमण कर दिया, परंतु ब्रिटिश शक्ति के सामने सफलता नहीं मिली।

जर्मनी का रूस पर आक्रमण

रूस व जर्मनी के बीच अगस्त 1939 में अनाक्रमण समझौता हो चुका था, किन्तु हिटलर की महत्वाकांक्षा के सम्मुख इसका कोई औचित्य नहीं रहा। वह रूस को समाप्त करना चाहता था। बाल्कन क्षेत्र में प्रभाव बढाने की चेष्टा को लेकर दोनों देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता आरंभ हो गयी। अतः 22 जून 1941 को जर्मनी सेना ने रूस पर आक्रमण कर यूक्रेन, एस्टोनिया, लेटीविया, लिथुआनिया, फिनलैण्ड व पूर्वी पौलेण्ड पर अधिकार कर लिया।

जर्मन सेना लेनिन ग्राड के निकट पहुँच गई वह परंतु रूसी सेना का विनाश करने में असफल रही। मास्को पर अधिकार की मंशा पूरी नहीं हो सकी। रूस के प्रत्येक नागरिक ने जर्मनी के विरुद्ध संघर्ष में भाग लिया था। छः माह तक आक्रमण जारी रखा। इसी दौरान शीत ऋतु आरंभ होने से आगे बढना कठिन हो रहा था। रुसियों ने आक्रमण कर जर्मन सेना को पीछे हटाने में सफलता प्राप्त की। जर्मन सेना ने एक बङे भूभाग पर अधिकार कर लिया, लेकिन पूर्ण सफलता तीन प्रमुख स्थानों लेनिनग्राड, मास्को व स्टालिनग्रांड पर अधिकार हो जाने पर निर्भर थी।

परंतु रूसी नागरिक प्राणप्रण से रक्षा करने में लगे हुए थे। स्टालिन ने नागरिकों में नया उत्साह भर दिया, 1942 में चर्चिल ने स्टालिन को अपने साथ मिला लिया व भावी योजना बताई। 19 नवम्बर, 1942 को रूसी सेना ने जर्मनी के विरुद्ध प्रबल प्रत्याक्रमण आरंभ कर दिया तथा 22 जर्मन डिविजनों को घेर लिया। इससे जर्मनी की सैनिक शक्ति को व हिटलर की प्रतिष्ठा को गंभीर आघात पहुँचा। इसके बाद रूस पर जर्मन अधिकार की आशा सदा के लिये समाप्त हो गयी।

जापान का सैनिक अभियान (दिसंबर, 1941-मई, 1942)

जापान का सैनिक अभियान – जापान तैयारी के साथ युद्ध में उतरा था। अतः जर्मनी की तरह आरंभ में बङी सफलता प्राप्त की। पर्ल हार्बर पर आक्रमण करने के बाद वह दक्षिणी पूर्वी एशिया तथा प्रशांतमहासागर में यूरोपीय साम्राज्य व अमेरिकी द्वीपों की ओर तीव्र गति से बढा। 1941 के अंत तक थाईलैण्ड पर अधिकार कर लिया। अंग्रेजों से हांगकांग तथा अमेरिका से श्याम तथा वेक आइलैण्ड नामक द्वीप एवं अड्डे छीन लिये।

जनवरी, 1942 में फिलीपीन द्वीप समूह के अधिकांश क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। फरवरी, 1942 के मध्य तक मलाया प्रायद्वीप में स्थित इंग्लैण्ड का नाविक अड्डा, सिंगापुर भी जापान के अधिकार में चला गया। मार्च के अंत तक बर्मा विजय करके चीन को युद्ध सामग्री भेजने वाले मार्ग को बंद कर दिया।

मार्च में ही हालैण्ड, अमेरिका, इंग्लैण्ड तथा आष्ट्रेलिया के सम्मिलित बेङे को परास्त कर जावा में अपनी सेना भेजकर समस्त डच-ईस्ट इंडीज पर अधिकार करके आस्ट्रेलिया तक बढ गया। इस प्रकार 6 माह के भीतर पूर्वी एशिया व प्रशांत महासागर में यूरोप व अमेरिका के साम्राज्य को नष्ट कर दिया।

अफ्रीका व यूरोप में धुरी राष्ट्रों की पराजय

1942 के पूर्वार्द्ध तक यूरोप, अफ्रीका व पूर्वी एशिया में धुरी राष्ट्रों की विजय पताका फहराती रही। ब्रिटेन, अमेरिका व रूस को सभी स्थानों पर पीछे हटना पङा, किन्तु 1942 के उत्तरार्द्ध में धुरी राष्ट्रों की प्रगति रुक गयी। नवम्बर, 1942 में ब्रिटेन व अमेरिका की सेनाओं ने संयुक्त रूप से उत्तरी अफ्रीका में जर्मनी व इटली की सेनाओं को खदेङना आरंभ कर दिया। अंत में उत्तरी अफ्रीका पर मित्र राष्ट्रों का अधिकार हो गया।

इटली की पराजय

1943 में मित्र राष्ट्रों की स्थिति में सुधार हुआ। 10 जुलाई, 1943 को मित्र राष्ट्रों ने सिसली पर आक्रमण कर इटली को पराजित किया। मुसोलिनी ने हिटलर से सहायता माँगी परंतु जर्मनी भी रूस के हाथों पराजित हो रहा था। 18 जुलाई 1943 को मित्र राष्ट्रों की सेनाओं ने इटली पर आक्रमण कर दिया। भयंकर संघर्ष के बाद 23 जुलाई को मुसोलिनी को गिरफ्तार कर लिया गया। फासिस्टवाद गैर कानूनी घोषित कर नई सरकार का गठन किया।

3 दिसंबर, 1943 को इटली ने आत्मसमर्पण कर दिया। इस बीच जर्मनी के छाताधारी सैनिकों ने मुसोलिनी को कैद से छुङा लिया। मुसोलिनी ने एक असफल प्रयास किया। अंततः 4 जून 1944 को रोम पर मित्र राष्ट्रों का अधिकार हो गया।

जर्मनी की पराजय

जर्मनी की पराजय स्टालिनग्राड से आरंभ हुई। रूसी सेना ने जर्मन सेना को चारों ओर से घेर लिया फरवरी 1943 तक 1 लाख से अधिक जर्मन सैनिक मारे गए। ग्रीष्मकाल में रूस ने जर्मन सेना को परास्त किया। यह रूस के इतिहास में एक बङी घटना मानी जाती है। रूस ने इस युद्ध को इतिहास का महान युद्ध कहा है। लगभग दो माह के संघर्ष में 1 लाख 80 हजार सैनिक मारे गए।

3500 हवाई जहाज नष्ट हो गए। 20 हजार सैनिक वाहन एवं अन्य शस्त्रास्त्र नष्ट हो गए। 1300 टेंक नष्ट हो गए। रूसी सेना ने पौलेण्ड, रूमानिया, फिनलेण्ड, बल्गेरिया को जीत लिया। अंत में 8 मार्च 1944 को दो हजार अमेरिकन बमवर्षकों ने बर्लिन पर बमबारी की। दिसंबर, 1944 तक मित्र राष्ट्रों की 3 लाख सेना फ्रांस पहुँचकर जर्मनी के द्वारा की गयी किलेबंदी को ध्वंस्त कर दिया गया। 25 अगस्त, 1944 को पेरिस पर पुनः मित्र राष्ट्रों की सेना का अधिकार हो गया, जर्मन सेनाओं ने आत्मसमर्पण कर दिया। फ्रांस को मुक्त कराने के बाद मध्य यूरोप के जर्मनी अधीन अन्य राज्यों को मुक्त कराया। रूस के विजित क्षेत्र पुनः रूस के अधिकार में आ गए।

बाल्कन द्वीप के सभी राज्य मित्र राष्ट्रों के पक्ष में हो गए। नवम्बर, 1944 को मित्र राष्ट्रों की सेना ने हॉलैण्ड की ओर से जर्मनी में प्रवेश कर राइन नदी पार की तो जर्मनी को अपना अंतिम समय दिखाई देने लगा। 22 अप्रेल, 1945 को रूस ने बर्लिन पर आक्रमण कर दिया। अन्ततः 2 मई, 1945 को बर्लिन का पतन हुआ।

4 मई को जर्मन फौजों ने आत्मसमर्पण कर दिया। हिटलर ने पत्नी के साथ आत्महत्या कर ली। इटली के देशभक्तों ने मुसोलिनी और उसकी पत्नी को गोली से उङा दिया। 7 मई, 1945 को संधि पर हस्ताक्षर होने के बाद 8 मई, को यूरोप में युद्ध की चिनगारी बुझ गयी।

जापान की पराजय और विश्वयुद्ध का अंत

अब केवल जापान ही बचा था जिसने आत्मसमर्पण नहीं किया था। अब मित्र राष्ट्रों ने जापान की ओर रुख किया हालांकि मित्र राष्ट्र यूरोप में युद्धरत रहते प्रशांत महासागर में जापान अधिकृत क्षेत्रों को पुनः अधिकार में लेने का प्रयत्न करते रहे। ब्रिटिश फौजों ने सुदूर पूर्वी क्षेत्रों में तेजी से बढते हुए वर्मा, मलाया, फिलिपीन, सिंगापुर को मुक्त करवा दिया। अंत में जापान पर भीषण आक्रमण हुआ।

26 जुलाई, 1945 को मित्र राष्ट्रों ने एक सम्मेलन में जापान को बिना शर्त आत्मसमर्पण करने की मांग की। किन्तु जापान ने उसे स्वीकार नहीं किया। फलतः 6 अगस्त, 1945 को जापान के समृद्ध शहर हिरोशिमा पर अमेरिका द्वारा पहला अणु बम गिराया गया तथा 9 अगस्त को नागासाकी पर दूसरा अणु बम गिराया गया।

अणुबमों के प्रलयकारी विनाश से भयभीत होकर जापान ने 10 अगस्त को पोट्सडम घोषणा की शर्तों के आधार पर आत्मसमर्पण करने का प्रस्ताव भेजा। 14 अगस्त को युद्ध बंद हो गया। 6 वर्ष के बाद भयंकर व विनाशकारी द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत हुआ।

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