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भारत-सोवियत संघ एवं पश्चिमी शक्तियां

स्वतंत्रता के बाद 1947 से 1950 तक भारतीय प्रवृत्ति अंतर्राष्ट्रीय मामलों में पश्चिमी गुट की ओर झुकी हुई थी, किन्तु 1953 में स्टालिन ( सोवियत नेता ) की मृत्यु के बाद भारत के प्रति सोवियत संघ का दृष्टिकोण काफी उदार होने लगा।

1953 से 1957 के दौरान भारत का सोवियत संघ की ओर झुकाव बढने लगा। इस दौरान देशों के नेताओं ने एक दूसरे देशों की सद्भावना यात्राएं की। दोनों देशों के बीच व्यापार बढा, और सोवियत संघ ने भारत को पर्याप्त आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्रदान की। ( जैसे-भिलाई इस्पात कारखाने के लिए)

1961 में गोवा के प्रश्न पर अमेरिका ने पुर्तगाल का समर्थन किया और भारत द्वारा की गयी सैनिक कार्रवाई को उचित ठहराया।

यूरोपीय वाणिज्यिक कंपनी पुर्तगाली।

भारत-चीन युद्ध (1962) के समय जहाँ पश्चिम-शक्तियों ने भारत का समर्थन किया और उसे पर्याप्त सैनिक सहायता दी। वहीं सोवियत संघ ने भी चीन का पक्ष नहीं लिया।

1963 में सोवियत संघ द्वारा भारत-चीन विवाद के प्रश्न पर भारत का स्पष्ट रूप से खुला समर्थन किया गया।

यद्यपि भारत और अमेरिका के बीच समय-2 पर संबंधों में कटुता उत्पन्न हुई, किन्तु सामान्यतया नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के समय तक दोनों देशों के बीच संबंध ठीक थे।

भारत और अमेरिका के बीच कटुता के कारण इस प्रकार हैं-

  • चीन की साम्यवादी सरकार को भारत द्वारा मान्यता दिया जाना,
  • उत्तरी एवं दक्षिणी कोरिया युद्ध के दौरान सुरक्षा परिषद् में अमेरिका द्वारा उत्तरी कोरिया को आक्रांत देश घोषित किये जाने के प्रस्ताव का समर्थन न करना,
  • जापानी संधि में भारत द्वारा शामिल न होना
  • गोवा के प्रश्न पर भारतीय सैनिक कार्रवाई को अमेरिका द्वारा आक्रमण की संज्ञा देना
  • मई 1965 में अमेरिका द्वारा पाकिस्तान के साथ सैनिक समझौता करना तथा बङी मात्रा में सैन्य-सामग्री देना आदि अनेक कारण रहे हैं।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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