कल्याणी का चालुक्य शासक सोमेश्वर तृतीय
विक्रमादित्य षष्ठ के बाद कल्याणी के चालुक्य वंश की अवनति प्रारंभ हुई। उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र सोमेश्वर तृतीय चालुक्य राजवंश का शासक बना। उसने भूलोकमल्ल तथा त्रिभुवनमल्ल जैसी उपाधियाँ ग्रहण की। कुछ लेखों में उसकी एक उपाधि सर्वज्ञ चक्रवर्ती की भी मिलती है। उसने भी अपने पिता के समान एक संवत् का प्रवर्त्तवन किया, जिसे भूलोकमल्लवर्ष नाम दिया गया है। किन्तु उसने अपने लेकों में विक्रमसंवत् का प्रयोग जारी रखा। किन्तु वह एक निर्बल शासक था, जिसके समय में चालुक्य साम्राज्य की अवनति प्रारंभ हो गयी। चोल शासक विक्रम ने वेंगी पर पुनः अधिकार कर लिया। 1133 ई. में गोदावरी नदी के तट पर चोलों ने सोमेश्वर की सेना को बुरी तरह परास्त किया। द्राक्षाराम से प्राप्त एक लेख से पता चलता है, कि वेलेनाटि चोड गोंक द्वितीय ने चालुक्यों की सेना को भगा दिया। इस युद्ध में सोमेश्वर के दो प्रसिद्ध सेनापतियों – गोविन्द तथा लक्ष्मण भी पराजित किये गये तथा गोंक ने उसके घोङे, ऊँट तथा भारी मात्रा में स्वर्ण पर अपना अधिकार कर लिया था। इसी समय होयसल भी स्वतंत्र हो गये। उनका शासक विष्णुवर्धन प्रारंभ में तो सोमेश्वर की अधीनता स्वीकार करता था। सिन्दिगेर लेख (1137ई.) में विष्णुवर्धन को चालुक्यमणि मंडलिक चूङामणि कहा गया है। किन्तु सोमेश्वर के शासन के अंत में उसने गंगवाडी, नोलंबवाडी तथा बनवासी को चालुक्यों से छीन लिया। 1137 ई.तक हम उसे पूर्ण राजकीय उपाधियों के साथ शासन करते हुये पाते हैं। किन्तु अब भी वह नाम मात्र के लिये चालुक्यों की अधीनता स्वीकार करता था।
सोमेश्वर तृतीय द्वितीय का इतिहास
सोमेश्वर तृतीय ने 1126 ई. से 1138 ई.तक शासन किया। विजयों की अपेक्षा उसकी रुचि शांति के कार्यों में अधिक थी। वह स्वयं एक बङा विद्वान था, जिसने मानसोल्लास नामक शिल्पशास्त्र के प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की थी। धार्मिक कार्यों में भी उसकी गहरी रुचि थी। उसने ब्राह्मणों तथा मंदिरों को दान दिया था।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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