दांडी मार्च क्या था
दांडी मार्च – दिसंबर, 1929 ई. को कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य का झंडा फहराया गया। गांधी द्वारा उद्घोषणा हुई कि शैतान ब्रिटिश शासन समक्ष समर्पण ईश्वर तथा मानव के निरुद्ध अपराध (गाँधी के शब्द)। इस घोषणा के साथ ही 26 जनवरी, 1930 ई. में पूरे देश में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।
नमक कानून तोङकर गाँधी द्वारा अपने अभियान की शुरुआत की गई। 12 मार्च को गांधी तथा उनके 78 या 79 स्वयंसेवकों द्वारा साबरमती आश्रम से गुजरात के तट दांडी तक की यात्रा शुरू कर दी गयी। इसमें पूरे देश से आए हुए सत्याग्रहियों में से दो मुस्लिम, एक ईसाई तथा शेष सभी हिन्दू थे।
दांडी मार्च को नमक मार्च, दांडी सत्याग्रह के रूप में भी जाना जाता है जो सन् 1930 में महात्मा गांधी के द्वारा अंग्रेज सरकार के नमक के ऊपर कर लगाने के कानून के विरुद्ध किया गया सविनय कानून भंग कार्यक्रम था। गाँधी तथा उनके सेवकों द्वारा दांडी तक पैदल यात्रा करके 06 अप्रैल1930ई. को नमक हाथ में लेकर नमक विरोधी कानून का भंग किया गया था।
भारत में अंग्रेजों के शासनकाल के समय नमक उत्पादन और विक्रय के ऊपर बड़ी मात्रा में कर लगा दिया था और नमक जीवन के लिए जरूरी चीज होने के कारण भारतवासियों को इस कानून से मुक्त करने और अपना अधिकार दिलवाने हेतु ये सविनय अवज्ञा का कार्यक्रम आयोजित किया गया था।

कानून भंग करने के बाद सत्याग्रहियों ने अंग्रेजों की लाठियाँ खाई थी परंतु पीछे नहीं मुड़े थे। 1930 को गाँधी जी ने इस आंदोलन का चालू किया। इस आंदोलन में लोगों ने गाँधी के साथ पैदल यात्रा की और जो नमक पर कर लगाया था। उसका विरोध किया गया। इस आंदोलन में कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। जैसे-सी राजगोपालचारी,पंडित नहेरू, आदि।
ये आंदोलन पूरे एक साल तक चला और 1931 को गांधी-इर्विन के बीच हुए समझौते से खत्म हो गया। इसी आन्दोलन से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई थी। इस आन्दोलन नें संपूर्ण देश में अंग्रेजो के खिलाफ व्यापक जनसंघर्ष को जन्म दिया था।गांधीजी के साथ सरोजनी नायडू ने नमक सत्याग्रह का नेतृत्व किया
References : 1. पुस्तक- भारत का इतिहास, लेखक- के.कृष्ण रेड्डी

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