व्यास की साहित्यिक विरासत की विवेचना
व्यास की साहित्यिक विरासत (Interpretation of Vyasa’s literary legacy)
साहित्यिक विरासत का अर्थ
भारतीय साहित्यिक परंपरा में ऐसे मनीषी हुए हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं को अपने परवर्ती साहित्यकारों के लिये प्रेरणा का स्रोत बना दिया है। साहित्यिक विरासत का अर्थ है – साहित्यिकार के द्वारा रचित ग्रंथ, उसकी भाषा – शैली, उसका जीवन दर्शन, उसके द्वारा प्रतिपादित आदर्श आदि।

व्यास की साहित्यिक विरासत
भारतीय साहित्य को महाभारत व्यास की महानतम देन है। इसे भारतीय ज्ञान का विश्वकोष भी कहा जाता है।
महाभारत भारतीय ज्ञान का विश्वकोश
वर्तमान रूप में महाभारत धार्मिक एवं लौकिक भारतीय ज्ञान का विश्वकोष है। इस ग्रंथ की समग्रता के संबंध में कहा गया है – इस ग्रंथ में जो कुछ है, वह अन्यत्र भी है, परंतु जो कुछ इसमें नहीं है वह अन्यत्र कहीं भी नहीं है। महाभारत केवल प्राचीन भारतीय सभ्यता का इतिहास ही नहीं है, वह भारतीयों का श्रेष्ठ ग्रंथ भी है। इसे पंचम वेद भी कहा गया है।
आदि पर्व में महाभारत को केवल इतिहास ही नहीं, बल्कि धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र तथा मोक्षशास्त्र भी कहा गया है। कौरवों और पाण्डवों के बीच युद्ध के मूल कथानक के अलावा इस ग्रंथ में अनेक प्राचीन आख्यान (इतिहास गाथाएँ) जुङे हुए हैं। इनमें शकुन्तला उपाख्यान, सावित्री उपाख्यान (जिनमें सावित्री एवं सत्यवान की कथा है) व नलोपाख्यान (जिनमें नल और दमयंती की कथा है), मत्स्योपाख्यान (मत्स्यावतार की कथा), रामोपाख्यान (राम कथा), शिव उपाख्यान प्रमुख हैं। इन आख्यानों के अलावा बहुत सी नीति विषयक सामग्री महाभारत के विभिन्न पर्वों में विशेष रूप से वन पर्व, शांति पर्व और अनुशासन पर्व में संकलित हैं। यह सामग्री धर्म, कर्म, नीतिशास्त्र, राजनीति, कूटनीति, तत्वज्ञान, दर्शन आदि विषयों से संबंधित है।
महाभारत एक श्रेष्ठ धर्मशास्त्र भी है, जिसमें पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन के नियमों तथा धर्म की विस्तृत व्याख्यान दी गयी है। शांति पर्व में राजधर्म, आपद धर्म तथा मोक्ष धर्म का विवेचन है। अनुशासन पर्व में दान धर्म का प्रतिपादन है। इसमें श्रीमदभगवदगीता, सनत्सुजातीय, अनुगीता, पाराशरगीता, मोक्ष धर्म आदि महत्त्वपूर्ण अंश संकलित हैं। महाभारत नीतिशास्त्र का भी महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। लोक शिक्षा के लिए इसमें अनेक शिक्षाप्रद कथाओं तथा नीति सिद्धांतों का उल्लेख हुआ है। संजयनीति, भीष्मनीति, विदुरनीति आदि का महाभारत में समावेश है। इस विषय-विविधता को देखते हुए भारत को ऋग्वेद के बाद संस्कृत साहित्य का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ कह सकते हैं।
महाभारत में नीतिबोध
महाभारत में जगह-जगह नीति का उपदेश भीष्म का राजनीति तथा धर्म के विभिन्न पक्षों पर शांति पर्व में लंबा प्रवचन है। सभापर्व में नारद का राजनीति विषय पर प्रवचन है। नीतिकारों में विदुर का महत्त्वपूर्ण स्थान है। विदुर-नीति महाभारत का महत्त्वपूर्ण अंग है।
जीवन के मूल्यों के संबंध में महाभारत का संदेश
वैदिक काल में आर्य सांसारिक सुख तथा भोगों को अधिक महत्त्व देते थे। उपनिषदों में इसके विरुद्ध विद्रोह हुआ और मोक्ष के आदर्श की प्रतिष्ठा हुई, परंतु महाभारत में सांसारिक सुख तथा मोक्ष के आदर्शों के बीच समन्वय किया गया। फलस्वरूप धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष चार पुरुषार्थों की मानव जीवन के ध्येय के रूप में प्रतिष्ठा हुई। परंतु धर्म को नियामक तत्व या प्रधान पुरुषार्थ माना गया। महाभारत के अनुसार, धर्म की मर्यादा में रहकर ही आर्थात् धर्म का उल्लंघन किये बिना अर्थ तथा काम का सेवन करना चाहिए। इस विषय में महाभारत की यह घोषणा उल्लेखनीय है, मैं बाँह उठाकर उच्च स्वर में कह रहा हूँ किन्तु कोई सुनता नहीं। धर्म से अर्थ और काम की प्राप्ति होती है। उस धर्म का सेवन क्यों नहीं करते?
महाभारत में जीवन संबंधी दृष्टिकोण भी पूर्णरूप से है। महाभारत के आदर्श पात्र युधिष्ठिर, भीम, श्रीकृष्ण, अर्जुन, द्रौपदी, भीष्म आदि जीवन के स्वाभाविक मूल काम एवं अर्थ के महत्त्व से भली प्रकार परिचित हैं। महाभारत का रचयिता अर्थ, तथा काम की स्वाभाविक इच्छाओं को तब तक बुरा नहीं मानता, जब तक वे धर्म की मर्यादा का उल्लंघन न करें। इस प्रकार वह धर्म की सर्वोच्चता का आदर्श प्रस्तुत करता है।
महाभारत में जीवन विवेक का संदेश
महाभारत में धर्म संबंधी चेतना बङी तीव्र है। शांति पर्व में मोक्ष, धर्म, पर्व तथा वन पर्व में जगह-जगह धर्म तत्व का विवेचन मिलता है। प्रवृत्ति, निवृत्ति, कर्म और संन्यास के विचारों का सुन्दर ढंग से प्रतिपादन किया गया है। स्वधर्म अर्थात् अपने कर्त्तव्य के पालन पर अत्यधिक जोर दिया गया है। महाभारत में शांति पर्व तथा गीता में जीवन विवेक का प्रतिपादन है। महाभारत की शिक्षा का सार यह है कि मनुष्य स्वार्थ से ऊपर उठकर लोक कल्याण के लिए धर्म सम्मत लोक कल्याण का पालन करता है।
महाभारत में वर्णित समाज
महाभारत में वर्णित समाज अत्यन्त जटिल एवं संघर्षपूर्ण है। महाभारत में जिस युग तथा जीवन का चित्रण है, वह विभिन्न प्रकार के अन्तर्विरोधों तथा बाहरी व भीतरी संघर्षों से पूर्ण है। उसमें रामायण की तरह दो संस्कृतियों का संघर्ष नहीं, बल्कि दो जीवन आदर्शों का संघर्ष दिखाया गया है। यह संघर्ष आर्यों के दो भिन्न जीवन आदर्शों के बीच था। युधिष्ठिर तथा दुर्योधन इन दो भिन्न आदर्शों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
