एशियाटिक सोसायटी (Asiatic Society)
एशियाटिक सोसायटी ( Asiatic Society) की स्थापना 15 जनवरी 1784 को विलियम जोन्स ने कोलकाता स्थित फोर्ट विलियम में की थी। इसका उद्देश्य प्राच्य-अध्ययन को बढ़ावा देना था। इसके अलावा एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल ने भारतीय इतिहास को भी प्रभावित किया है। इसने प्राचीन भारत के इतिहास और संस्कृति के अध्ययन का कार्य किया।
विलियम जोन्स ने 1789 में अभिज्ञान शाकुंतलम का अंग्रेजी में अनुवाद किया था जो कि एशियाटिक सोसायटी द्वारा किसी भी यूरोपीय भाषा में अनुदित प्रथम ग्रंथ था।
एशियाटिक सोसायटी ने भारतीय पुनर्जागरण में बहुत सहायता पहुँचायी। इस सोसायटी के तत्वाधान में प्राचीन भारतीय ग्रंथों तथा यूरोपीय साहित्य का भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ। विलियम जोन्स, मैक्समूलर, मोनियर, विल्सन जैसे अनेक विदेशी विद्वानों ने प्राचीन ग्रंथों का गहरा अध्ययन किया, अंग्रेजी में उनका अनुवाद किया और यह बताया कि ये ग्रंथ संसार की सभ्यता की अमूल्य निधियाँ हैं।
पश्चिम के विद्वानों ने भारत की अनेक कलाकृतियों और सभ्यता के केन्द्रों की खोज की। तुलनात्मक अध्ययन के फलस्वरूप यूरोपीय ज्ञान-विज्ञान से भारतीय परिचित हुए तथा उन्हें अपने प्राचीन गौरव का पता चला।
कुछ यूरोपीय विद्वानों ने भारतीय सभ्यता से प्रभावित होकर इसकी बहुत प्रशंसा की, जिससे भारतीयों को आत्मबल मिला। अब वे अपने पतन के कारण समझने लगे तथा उन्हें अनुभव हुआ कि वे अपने मूल धर्म और सामाजिक रीतियों से बहुत दूर चले गए हैं और जब तक इन बुराइयों को दूर नहीं करेंगे, तब तक देश उन्नति नहीं कर सकेगा।
