प्राचीन भारतइतिहासवैदिक काल
अथर्ववेद संहिता

अथर्ववेद संहिता हिन्दू धर्म के पवित्रतम और सर्वोच्च धर्म ग्रंथ वेदों में से एक है।
यह वेद सबसे बाद में लिखा गया। अथर्ववेद में देवताओं की स्तुति के साथ-2 चमत्कार चिकित्सा विज्ञान और दर्शन के भी मंत्र हैं। इसके रचयिता श्री ऋषि अथर्व हैं।
- यह वेद आर्य संस्कृति के साथ-2 अनार्य संस्कृति से भी संबंधित है। अतः इस वेद को पूर्व के तीन वेदों के समान महत्त्व , प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं है और इसे वेदत्रयी (ऋग्वेद , सामवेद , यजुर्वेद) में शामिल नहीं किया गया ।
- इसमें 20 मंडल , 731 सूक्त, 5497 मंत्र मिलते हैं, जिसमें से 200 मंत्र ऋग्वेद से लिये हैं।
- अथर्ववेद में तंत्र-मंत्र , जादू-टोना, शल्य चिकित्सा, औषधि विज्ञान की जानकारी भी मिलती है। (अनार्य संस्कृति के तत्व)
- इस वेद को भारतीय चिकित्सा शास्त्र का प्राचीनतम ग्रंथ कहा जाता है।
- मगध, अंग जैसे क्षेत्रों , हस्तिनापुर के राजा परीक्षित का उल्लेख भी अथर्ववेद में मिलता है। मगध के लोगों को अथर्ववेद में व्रात्य कहा गया है।
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अथर्ववेद के 2 भाग (शाखाऐं)-
- शोनक शाखा
- पिप्पलाद शाखा
अथर्ववेद के पुरोहित-ब्रह्मा(जो यज्ञ का निरीक्षण करता है।)
अथर्ववेद के उपवेद- शिल्पवेद ।
अथर्ववेद के ब्राह्मण ग्रंथ- गोपथ।
अथर्ववेद के उपनिषद- मूण्डक, माण्डूक्य, प्रश्न।
- मूण्डक -सत्यमेव जयते (यज्ञ की तुलना फुटी हुई नाव से की गई है।)