औरंगजेब की धार्मिक नीति

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औरंगजेब एक कट्टर रूढिवादी सुन्नी मुसलमान था उसने इस्लाम के महत्त्व को समझते हुए कुरान (शरियत)को अपने शासन का आधार बनाया।
1559ई. में औरंगजेब ने कुरान के नियमों के अनुरूप इस्लामी आचरण संहिता के नियमों की पुर्नस्थापना के लिए अनेक अध्यादेश प्रसारित किया।
औरंगजेब का प्रमुख लक्ष्य इस देश (भारत) को दार-उल-हर्ब (काफिरों का देश) के स्थान पर दार-उल-इस्लाम(इस्लाम का देश) देश बनाया था।
औरंगजेब इस्लामी कानूनों को अक्षरशः मानने के कारण अपनी कट्टर सुन्नी प्रजा के लिए जिन्दा-पीर तथा अपने सादे रहन-सहन रोजे और नमाज का नियमित रूप से पालन करने तथा जीवन भर शराब न पीने के कारण शाही दरवेश के रूप में भी जाना जाता था।
औरंगजेब ने प्रारंभ से ही अपनी कट्टरता का परिचय देते हुए अपने सिक्कों पर कलमा(कुरान की आयतें) खुदवाना, पारसी नववर्ष नौरोज का आयोजन, सार्वजनिक संगीत समारोहों, भांग उत्पादन,शराब पीने तथा जुआ खेलने आदि पर प्रतिबंध लगा दिया।
औरंगजेब 1663ई. में सती-प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया तथा हिन्दुओं पर तीर्थयात्रा – कर लगाया। यद्यपि इससे पूर्व अकबर ने सती प्रथा को बंद कराने का प्रयास किया, किन्तु औरंगजेब ने इसे पूर्ण रूप से बंद करवाया।
औरंगजेब ने 1665ई. में एक राज्यादेश द्वारा बिक्री योग्य माल पर मुस्लिम व्यापारियों से 2.50 प्रतिशत, जबकि हिन्दू व्यापारियों से वस्तु का 5 प्रतिशत की दर से सीमा शुल्क निर्धारित किया। उसने 1667ई. में मुस्लिम व्यापारियों को इस शुल्क से पूर्णतः मुक्त कर दिया।
औरंगजेब ने 1668ई. में हिन्दू-त्यौंहारों और उत्सवों को मनाये जाने पर रोक लगा दी।
1669ई. में औरंगजेब ने सभी सूबेदारों और मुहतसिबों को हिन्दू मंदिरों और पाठशालाओं को तोङ देने की आज्ञा दी, जिससे हिन्दू अपने धर्म और शिक्षा का प्रचार न कर सके।
औरंगजेब के आदेश के फलस्वरूप 1669ई. बनारस का विश्वनाथ मंदिर, मथुरा में वीरसिंह बंदेला द्वारा निर्मित केशवराय मंदिर तथा गुजरात का सोमनाथ मंदिर तोङा गया।
अपने शासन के 11वें वर्ष झरोखा-दर्शन एवं 12वें वर्ष तुलादान प्रथा ( बादशाह को सोने चाँदी से तौलना) को समाप्त कर दिया।
औरंगजेब ने 1679ई. में पुनः जजिया कर लगा दिया यद्यपि उसे 1704ई. में दक्कन से यह कर उठा लेना पङा।
औरंगजेब के जजिया कर लगाने का उद्देश्य सम्भवतःधार्मिक न होकर शुद्ध राजनीतिक था क्योंकि वह मराठों और राजपूतों के खिलाफ मुसलमानों को संगठित करना चाहता था।
औरंगजेब ने गुरूवार (जुमेरात) की रात को पीरों की मजार एवं अन्य कब्रों पर दिये जलाने की प्रथा को बंद करवा दिया।
जनता पवित्र कानून(शरियत) या धर्म के अनुसार जिन्दगी बसर कर रही हा या नहीं। इसकी देखभाल करने के लिए औरंगजेब ने मुहतसिब (सार्वजनिक सदाचार निरीक्षक या धर्म अधिकारी) नामक एक अधिकारी की नियुक्ति की।
Reference : https://www.indiaolddays.com/