आधुनिक भारतइतिहास

इतिहास के प्रमुख व्यक्तियों का संक्षिप्त व्यक्तित्व

संक्षिप्त व्यक्तित्व

अब्दुल गफ्फार खान

सीमांत गांधी के नाम से लोकप्रिय, ये उत्तर – पश्चिम सीमांत प्रांत के प्रमख राष्ट्रवादी थे। इन्होंने खुदाई खिदमतगार (ईश्वर के सेवक) नामक राष्ट्रवादी संस्था की स्थापना की जो लाल कमीज के नाम से लोकप्रिय थी। इन्होंने स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान में पख्तूनिस्तान के लिये आंदोलन प्रारंभ किया जिसके लिये इन्हें पाकिस्तान सरकार ने बंदी बना लिया। भारत सरकार ने मरणोंपरांत इन्हें भारत रत्न की उपाधि प्रदान की।

 व्यक्तित्व

अब्दुल हामिद लाहौरी

शाहजहां का आधिकारिक इतिहासकार तथा पादशाहनामा का लेखक।

अब्दुल्लाह बर्हा सईद

ये प्रसिद्ध सईद बंधुओं में बङा भाई था, छोटा हुसैन था। इन्होंने मुगल शासन में 1773 से 1722 के बीच राजा बनाने की भूमिका निभाई थी।

अब्दुर रहीम खान-ए-खाना

बैरम खान का पुत्र जो बाद में अकबर का सेनापति बना। इसने बाबर की स्मृतियों का फारसी में अनुवाद किया तथा साहित्य में अन्य योगदान किए।

अब्दुर रज्जाक लारी

गोलकुंडा के अंतिम कुतुबशाही शासक (अबुल हसन) का सेनापति जिसने औरंगजेब के आक्रमणके समय अत्यंत बहादुरी के साथ किले की सुरक्षा की। बाद में औरंगजेब ने इसे अपने अधीन नियुक्त कर लिया।

अबुल फजल

शेख मुबारक का पुत्र तथा फैजी (कवि) का भाई, अबुल फजल अकबर का आधिकारिक इतिहासकार तथा निकट सहायक था। इसने आइने अकबर (अकबर के साम्राज्य का सांख्यिकीय विवरण) तथा अकबर नामा (अकबर के शासन काल का इतिहास) का लेखन किया। शहजादा सलीम (जहांगीर) के उकसाए जाने पर बीर सिंह बुंदेला ने 1602 में अबुल फजल की हत्या कर दी।

आदम खान

माहम अनगा (अकबर की विमाता) का पुत्र, जो बैरम खान के पतन के बाद दो वर्षों (1560-62) के लिये अत्यंत शक्तिशाली हो गया था। तत्कालीन वजीर, शमसुद्दीन अतगा खान (1562) की हत्या के कारण अकबर ने उसे मृत्युदंड दे दिया।

अफजल खान

बीजापुर का सेनापति जिसे शिवाजी के दमन के लिये भेजा गया था, जब दोनों बातचीत के लिये मिले (1659)तो शिवाजी ने बाघ नख से उसकी हत्या कर दी।

आगा खान

भारत में रहने वाले बोरा इस्लामिया मुस्लिम संप्रदाय के धार्मिक प्रमुख की उपाधि । यह उपाधि सर्वप्रथम हसन अलीशाह को प्रदान की गयी जो कि पैगंबर के वंश का होने का दावा करते थे।

अहल्या बाई

इंदौर के मल्हार राव होल्कर की विधवा बहू जिसने इंदौर पर 1764 से 1795 के बीच शासन किया। यह बनारस के अन्नपूर्णा मंदिर तथा गया के विष्णु मंदिर तथा कलकत्ता से बनारस के बीच ग्रांड ट्रंक रोड के निर्माण के लिये प्रसिद्ध है। उसके उत्तराधिकारी तुकाजी होल्कर थे।

अहमद शाह अब्दाली

यह अफगानिस्तान के दुर्रानी वंश का था तथा शुरू में इसने नादिर शाह के अधीन काम किया था। अफगानिस्तान के अपने स्वतंत्र शासन के दौरान (1747-1773) इसने भारत पर आठ बार आक्रमण किया तथा पानीपत के तृतीय युद्ध (1761) में इसने मराठों को पराजित किया।

अहमदशाह वली

बहमनी राज्य का नौवां सुल्तान जो अपने भाई फिरोज शाह बहमनी की हत्या कर सुल्तान बना। यह अपनी राजधानी गुलबर्गा से बीदर ले गया।

अहमद शाह

गुजरात सल्तनत का महानतम शासक (1411-41) जिसने प्राचीन हिन्दू नगर आसवाल के निकट अहमदाबाद का शहर बसाया तथा इसे अपनी राजधानी बनाया।

अहमद निजाम शाह बाहरी

निजामशाही वंश का संस्थापक जिसने अहमदनगर शहर को बसाया तथा इसे अपनी राजधानी बनाया।

अहसान शाह, जलालुद्दीन

मुहम्मद बिन तुगलक के सेनापतियों में से एक था जिसने विद्रोह कर 1335 में मदुरै सल्तनत की स्थापना की, हालांकि 1377 में विजयनगर के शासक ने इसे विजयनगर में मिला लिया।

अजातशत्रु

बिम्बिसार का पुत्र, वह मगध के हर्यंक वंश का दूसरा शासक (516-480 ई.पू.) था। उसने लिच्छवी राज्य को जीता, कोशल के राजा (प्रसेनजित) को पराजित किया तथा उसकी पुत्री से विवाह किया। उसके शासन काल में राजगृह में प्रथम बौद्ध परिषद का आयोजन हुआ।

अजीत सिंह

मारवाङ के शासक राजा जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद पैदा होने वाला पुत्र जिसे औरंगजेब ने कैद कर लिया था लेकिन बाद में दुर्गादास के अधीन राठौरों ने उसे दिल्ली से छुङा लिया। मेवाङ के राणाओं की सहायता से राठौरों ने अजीत सिंह के लिये मुगलों से 1709 तक युद्ध किया जब बहादुर शाह प्रथम ने अंततः उन्हें मेवाङ का शासक स्वीकार किया।

अकबर (शहजादा)

दिलरास बानो बेगम से उत्पन्न औरंगजेब का तृतीय पुत्र जिसने 1681 में अपने पिता के विरुद्ध विद्रोह कर दिया, पर उसे पराजित कर दिया गया तथा उसे संभाजी के द्वारा शरण प्रधान की गयी। दक्कन में बादशाह की निजी उपस्थिति के कारण इसे कुछ भी प्राप्त करने में असफलता मिली तथा अंततः फारस चला गया।

अलाउद्दीन हसन बहमन शाह

बहमनी राज्य का संस्थापक जिसने गुलबर्गा को अपनी राजधानी बनाया। मूलतः वह दक्कन में मुहम्मद बिन तुगलक का एक अधिकारी था। अपने शासन काल (1347-58) के दौरान उसने अपना अधिकार उत्तर में वैन गंगा से दक्षिण में कृष्णा तक स्थापित किया उसका राज्य चार तरफ (प्रांतों) में विभाजित था – गुलबर्गा, दौलताबाद, बेरार तथा बीदर। इसके शासन काल की जानकारी हमें समकालीन ग्रंथ बुरहान-ए-माशीर से प्राप्त होती है।

अलाउद्दीन हुसैन शाह

बंगाल के हुसैन शाही वंश का संस्थापक जिसने गौङ को अपनी राजधानी बनाया। इसने 24 वर्षों (1493-1518ई.) तक शासन किया।

आलम खान

बहलोल लोदी का तृतीय पुत्र तथा इब्राहीम लोदी का चाचा जिसने दौलत खान लोदी से मिलकर भारत पर आक्रमण करने के लिये बाबर को आमंत्रित किया।

आलमगीर द्वितीय

जहांदर शाह (8वां मुगल बादशाह) का पुत्र जिसे शक्तिशाली वजीर गाजीउद्दीन इमादुलमुल्क ने सोलहवां मुगल बादशाह (1754-59) बनाया।

अलबरूनी

मूलतः मध्य एशिया में खींवा का निवासी, यह गजनी आया तथा महमूद के आक्रमण के साथ भारत आया। इसका वास्तविक नाम अबु रिहान मुहम्मद था लेकिन बाद में अलबरूनी के नाम से लोकप्रिय हो गया जिसका अर्थ होता है मालिक। यह स्वयं एक बङा विद्वान था तथा इसने संस्कृत सीखकर भारतीय विज्ञान तथा दर्शन का गहन अध्ययन किया। इसकी प्रसिद्ध पुस्तक तारीखे हिन्द अथवा किताबे हिन्द में भारत पर तुर्की आक्रमण से पूर्व की स्थिति का वास्तविक विवरण मिलता है।

अल-हज्जाज

वालिद के खलीफा के काल में ईराक का अरब गवर्नर जिसने सिंध जीतने के लिये तीन अभियान दल भेजे। लेकिन इनमें से अंतिम, जोकि इसके अधीनस्थ तथा दामाद मुहम्मद बिन कासिम के द्वारा हुआ था, राओर के युद्ध (712ई.) में राजा दाहिर को पराजित कर सिंध में अरब शासन स्थापित करने में सफल हुआ।

अल-मसूदी

प्रतिहार शासक महीपाल प्रथम के शासन काल में प्रतिहार राज्य में 915 ई. में आने वाला अरब यात्री जिसने प्रतिहार घुङसवार सेना की योग्यता की प्रशंसा की।

एपिरस का एलेक्जेंडर

अशोक के वृहत शिलालेख XIII में इसका अलिकसुद्दर के नाम से उल्लेख मिलता है।

अली आदल शाह प्रथम

बीजापुर का पांचवां शासक जिसने विजयनगर के शासक राम से मिलकर अहमदनगर पर आक्रमण (1558) किया लेकिन बाद में विजयनगर पर आक्रमण के समय अन्य मुस्लिम शासकों से मिल गया तथा उन्हें बन्नीहट्टी अथवा तालीकोटा के युद्ध (1565) में पराजित किया। उसका विवाह अहमदनगर की चांद बीबी से हुआ था।

अली बारिद

बीदर (बहमनी राज्य से उत्पन्न )के बारिदशाही वंश का संस्थापक।

अली, मुहम्मद

प्रमुख राष्ट्रवादी नेता तथा शौकत अली के भाई। ये खिलाफत तथा असहयोग आंदोलन के नेता थे। ये 1923 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने।

अली, मुहम्मद रुहेला

अवध से उत्तर पश्चिम, हिमालय के नीचे, रोहिलखंड में रोहिल्ला और रुहेला शक्ति के संस्थापक इन्हें 1774 में पराजित कर दिया गया तथा इनके अंतिम नवाब, हाफिज रहमत खान की हत्या अवध के नवाब ने अंग्रेजों की सहायता से की।

अमर सिंह

मेवाङ के राणा प्रताप के पुत्र एवं उत्तराधिकारी। इन्होंने अकबर तथा बाद में जहांगीर के काल में मुगलों के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा। लेकिन बाद में शाही दरबार में इनकी व्यक्तिगत उपस्थिति की जिद छोङ देने के बाद 1614 में इन्होंने मुगलों के साथ शांति स्थापित कर ली।

अंबर, मलिक

एक अबीसीनियायी दास जो अहमदनगर में बसा तथा निजमाशाही शासकों का प्रधानमंत्री बना। इसने कई कर सुधार लागू किए, निजामशाही सेना को गुरिल्ला युद्ध कला में प्रशिक्षित किया, सेना में कई मराठों को भर्ती किया तथा निजामशाही राज्य को मुगल साम्राज्य में मिलाने के जहांगीर के प्रयत्न को विफल कर दिया। लेकिन 1616 में शहजादा खुर्रम (शाहजहां) ने उसे अहमदनगर का किला मुगलों को सौंप दिने पर मजबूर कर दिया।

आंबी

सिकंदर के आक्रमण के समय तक्षशिला का शासक जिसने स्वेच्छा से सिकंदर के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया तथा बाद में पोरस अथवा पुरोषत्तम के विरुद्ध सिकंदर के युद्ध में सिकंदर की मदद की।

अमीर खुसरो

तूतिये हिन्दे के नाम से लोकप्रिय, ये दिल्ली सल्तनत के प्रसिद्ध कवि, इतिहासकार तथा संगीतज्ञ थे। ये फारसी, उर्दू तथा हिन्दी में लिखते थे तथा इन्हें बलबन से गियासुद्दीन तुगलक तक सभी सुल्तानों का संरक्षण प्राप्त था। इनकी मृत्यु 1324 ई. में हुई।

अनंतवर्मन चोङ गंग

उङीसा के पूर्वी गंग शासकों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शासक जिन्होंने 12 वीं शताब्दी में पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर का निर्माण करवाया।

अंसारी, डॉ.(1880-1936)

पेशे से चिकित्सक, शुरू में ये मुस्लिम लीग की राजनीति से जुङे हुए थे तथा इसके 1920 के अधिवेशन के अध्यक्ष थे। लेकिन बाद में कांग्रेसी हो गए तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन (1927) के अध्यक्ष बने। इन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया तथा 1930 एवं 1932 में दो बार जेल गए।

अंतअल्किदास

तक्षशिला का इंडो-ग्रीक शासक (140-130ई.पू.), इसने विदिशा के पांचवें शुंग शासक काशीपुत्र भागभद्र के दरबार में हेलियोडोरस को राजदूत के रूप में भेजा। मध्य प्रदेश में विदिशा के निकट बेसनगर स्तंभ लेख पर अंतिआल्किदास का उल्लेख हुआ है।

अंतिगोनस गोनातस

मकदूनिया का शासक (277-239 ई.पू.)अशोक के वृहद शिलालेख XIII में इसका उल्लेख अंतिकिनी नाम से हुआ है। यह यूनानी शासकों में से एक था जिनके साथ अशोग के मित्रवत संंबंध थे।

अंतिओकस प्रथम

सेल्युकस निकेटर का पुत्र, यह सीरिया का शासक था तथा बिन्दुसार के दरबार में दिमाकस को अपने राजदूत के रूप में भेजा। जब बिन्दुसार ने उससे मीठी शराब, सूखे अंजीर तथा एक विदूषक भेजने का आग्रह किया तो उनसे जबाव दिया कि शराब तथा अंजीर भेज दिया जाएगा पर विदूषक नहीं क्योंकि कानून इसके बेचने की अनुमति नहीं देता है।

अंतिओकस द्वितीय थिओस

सीरिया का यूनानी राजा (261-246 ई.पू.) जिसका उल्लेख अशोक के वृहत शिलालेख XIII में अंतियोको के रूप में हुआ है। अशोक के साथ इसके मित्रवत संबंध थे।

अनुरुद्ध

मगध के हर्यंक वंश के उदयन का पुत्र एवं उत्तराधिकारी जो श्री लंकाई बौद्ध इतिहास के अनुसार इस वंश का अंतिम शासक था।

अप्पोलोडोटस

एक इंडो-ग्रीक शासक जो लगभग 156 ई.पू. अपने पिता यूक्रेटाइड्स की हत्या कर सत्ता में आया।

एक्वाविवा, फादर रिडोल्फो

गोवा में कार्यरत जेसुइट धर्म प्रचारक जिसे अकबर के आग्रह पर पुर्तगाली सरकार द्वारा फादर मांसरेट के साथ फतेहपुर सीकरी भेजा गया था क्योंकि अकबर ईसाइत के मूलभूत सिद्धांतों को जानना चाहता था।

अर्जुन, गुरु

सिखों के पांचवें गुरु (1581-1606), ये गुरु रामदास के पुत्र एवं उत्तराधिकारी थे। इन्होंने, आदि ग्रंथ को संकलित किया तथा अमृतसर शहर में प्रसिद्ध हरमंदिर साहिब का निर्माण करवाया। इस स्थान को 1577 में अकबर ने रामदास को दान में दिया था जिन्होंने यहां शहर बसाया। गुरू अर्जुन ने सिखों से आध्यात्मिक कर एक प्रकार का धार्मिक कर लेना प्रारंभ किया जिसके कारण गुरुओं के पास संपत्ति एकत्रित होने लगी। इन्हें जहांगीर के आदेश पर शहजादा खुसरो को सहायता देने के कारण मृत्युदंड दिया गया जिसने जहांगीर के विरुद्ध विद्रोह किया था।

आसफ खान

अकबर का सेनापति जिसने रानी दुर्गावती से गढकटंगा को जीता तथा हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप को पराजित करने में मान सिंह का साथ दिया।

आसफ खान

मिर्जा गियास बेस (इतिमादुद्दौला) का पुत्र तथा मेहरुन्निसा (नूरजहां) का भाई जिसकी बेटियों, अंजुमनतथा बानू बेगम (मुमताज महल), का विवाह शहजादा खुर्रम (शाहजहां) से हुआ था तथा उसने जहांगीर की मृत्यु के बाद शाहजहां को बादशाह बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाद में यह अपने दामाद का वजीर बना।

असांग

प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान, भिक्षु तथा लेखक, असांग चौथी शताब्दी में था तथा वसुबंधु (समुद्रगुप्त का गुरु एवं मंत्री) का भाई था। वह सूत्रालंकार (महायानवाद के योगाचार विचारधारा का प्राचीनतम ग्रंथ) तथा योगाचार भूमि शास्र का लेखक था।

अश्वघोष

कनिष्क के काल का बौद्ध (महायानवादी) भिक्षु तथा विद्वान जिसने चतुर्थ बौद्ध परिषद में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह बुद्धचरित (बुद्ध की जीवनी), राष्ट्रपाल तथा सारिपुत्र प्रकाश (नाटक) का लेखक था।

आतिश दीपांकर

पाल काल के प्रसिद्ध वज्रयानी बौद्ध भिक्षु तथा उपदेशक (981-1054 ई.) इनका मूल नाम चंद्रगर्भ था। ये लगभग 18 वर्षों तक विक्रमशिला विश्वविद्यालय के प्राचार्य रहे तथा बाद में तिब्बत चले गये जहां उन्होंने 12 वर्षों तक उपदेश दिया।

अवंतिवर्मन

कन्नौज का मौखरी शासक जो ग्रहवर्मन का पिता था जिसका विवाह पुष्यभूति वंश के हर्षवर्धन की बहन राज्यश्री के साथ हुआ था।

अजीमुद्दौला

स्वायत्त कर्नाटक राज्य का अंतिम नवाब जिसे लांर्ड वेलेसली ने 1801 में ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाकर पेंशन देकर हटा दिया।

बादल एवं गोरा

मेवाङ के राजपूत बहादुर जिन्होंने अलाउद्दीन की सेना से चित्तौङ की रक्षा करते हुये अपनी जान दे दी।

बदायूनी

अकबर के काल का एक प्रसिद्ध इतिहासकार जिसने मुंतखाव-उल-तवारीख की रचना की जिसमें अकबर के उदारवादी शासन काल का आलोचनात्मक विवरण है।

बहादुर शाह

गुजरात का शासक (1526-37), इसने अपने पङोसियां, मालवा के सुल्तान तथा मेवाङ के राजा को पराजित किया तथा उनके क्षेत्रों में अपना साम्राज्य विस्तार किया। हालांकि हुमायूं ने 1535 में उसे पराजित कर राज्यविहीन किया परंतु उसने शीघ्र ही मुगल सेना को खदेङकर अपने क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। लेकिन 1537 में पुर्तगालियों से जहाज पर बातचीत करते हुये डूब जाने से उसकी मृत्यु हो गयी।

बहार खान लोहानी

बिहार का अफगान शासक तथा फरीदखान (शेरशाह सूर) का संरक्षक, इसने फरीद को शेर खान की उपाधि दी तथा उसे अपना नायब नियुक्त किया।

बैरम खान

अकबर का अभिभावक तथा बाद में प्रतिशासक (1556-60) इसने पानीपत की दूसरी लङाई जीतने तथा ग्वालियर, अजमेर एवं जौनपुर जीतने में अकबर की सहायता की। जब 18 वर्ष की आयु में अकबर ने प्रशासन को अपने प्रत्यक्ष नियंत्रण में लिया तो बैरम ने विद्रोह कर दिया जिसे दबा कर इसे माफ कर दिया गया। मक्का जाते हुये गुजरात के पाटन नामक स्थान पर इसके कुछ शत्रुओं ने इसकी हत्या (1561) कर दी।

बल्लाल सेन

बंगाल का द्वितीय स्वतंत्र सेन शासक (1158-79ई.)जिसने अपने राज्य का काफी विस्तार किया। यह संस्कृत का प्रसिद्ध लेखक था तथा इसने दान सागर तथा अद्भुत सागर की रचना की । रूढिवादी हिन्दू धर्म का संरक्षक होने के कारण इसने बंगाल के कायस्थों तथा ब्राह्मणों के बीच कुलीनवाद का प्रचलन प्रारंभ किया।

बंदा बहादुर

दसवें तथा अंतिम सिख गुरु, गोविंद सिंह, के शिष्य बंदा बहादुर 1708 से 1785 के बीच सिखों के राजनैतिक गुरु थे। इन्होंने मुगल अधिकारी वजीर खान वजीर खान से बदला चुकाया जिसने गुरु के पुत्रों की हत्या की थी मुगलों ने अंततः 1715 में पकङकर इनकी हत्या कर दी।

बरनी, जियाउद्दीन

फिरोजशाह तुगलक के काल का रूढिवादी इतिहासकार जिसकी तारीखे फिरोजशाही में फिरोज के काल तक तुगलकों के बारे में जानकारी मिलती है।

बारवेल, रिचर्ड

ईस्ट इंडिया कंपनी का एक अधिकारी जिसे 1773 के एक्ट के द्वारा गवर्नर जनरल की कौंसिल का सदस्य बनाया गया। अन्य तीन सदस्यों के विपरीत इसने वारेन हेस्टिंग्स को पूर्ण समर्थन दिया।

बाज बहादुर

मालवा का शासक जीसकी राजधानी मांडा थी। यह स्थापत्य कला तथा संगीत के संरक्षण के लिये प्रसिद्ध है। अकबर ने इसके राज्य पर अधिकार कर लिया, पर बाद में इसे अपने साम्राज्य की सेवा में रख लिया। इसकी पत्नी, रूपमती अपनी सुंदरता के कारण जानी जाती थी।

बेस्ट, कप्तान

अंग्रेज जहाज डैगन का कमांडर। इसने 1622 ई. में स्वाली (सूरत के निकट) में पुर्तगाली सैनिक टुकङी को पराजित किया जिसके कारण जहांगीर ने अंग्रेजों को सूरत में कारखना स्थापित करने की अनुमति दे दी।

बेथुन, जे.ई.डी.

गवर्नर जनरल की परिषद का विधि सदस्य, यह भारतीय महिलाओं की शिक्षा के लिये प्रसिद्ध है। यह कलकत्ता के बेथुन स्कूल फॉर गर्ल्स के संस्थापक थे।

भगवान दास

आंबेर के कछवाहा शासक तथा राजा बिहारी मल (जिसने स्वेच्छा से अकबर के समक्ष आत्मसमर्पण किया) के पुत्र भगवान दास ने अकबर के अधीन काफी तरक्की की।राजा मान सिंह, जिसने अकबर की कई प्रकार से सेवा की, उनके पुत्र थे।

भानी

थानेश्वर का शक्तिशाली सामंत जिसने हर्ष के राज्यारोहण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भास

प्राचीन भारत का संस्कृत नाटककार जिसने 13 नाटकों की रचना की जिनमें से स्वप्नवासवदत्ता, चारूदत्त प्रतिमा सबसे अधिक लोकप्रिय हैं।

भास्कराचार्य

12 वीं शताब्दी का प्रसिद्ध भारतीय खगोलशास्री तथा गणितज्ञ भास्कराचार्य का जन्म बीजापुर में हुआ था तथा इन्होंने सिद्धांत सिरोमणि, जिसे लीलावती के नाम से भी जाना जाता है, की रचना की।

भास्करवर्मन

कामरूप (असम) का प्रसिद्ध शासक। यह कन्नौज के हर्षवर्धन का समकालीन एवं मित्र था। हर्ष ने गौङ (बंगाल) के शशांक की शक्ति पर अंकुश लगाने में उसकी सहायता की। उसने हर्ष द्वारा कन्नौज एवं प्रयाग में आयोजित दो सभाओं में भाग लिया। चीनी धर्मयात्री ह्वेनसांग उसके दरबार में गया था।

भवभूति

प्रारंभिक 8 वीं शता. का संस्कृत कवि एवं नाटककार, यह कन्नौज के राजा यशोवर्मन के दरबार में था। उत्तचरित तथा मालतीमाधव उसकी रचनाओं में से हैं।

भीमल

प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर (शिव का) पर 1025 में महमूद गजनवी के आक्रमण के समय गुजरात का सोलंकी शासक।

भीम द्वितीय

गुजरात का सोलंकी शासक जो मुहम्मद गौरी को पराजित करने वाला प्रथम भारतीय था। जब गौरी ने 1178 में पश्चिमी क्षेत्र से भारत में घुसने का प्रयत्न किया था।

भोज प्रथम (मिहिर)

यह कन्नौज के गुर्जर-प्रतिहार राजाओं में महानतम था। एक अरब यात्री, सुलेमान के अनुसार उसकी घुङसवार सेना भारत में सर्वोत्तम थी।

भोज द्वितीय

भोज प्रथम का पौत्र, इसने दसवीं शताब्दी के प्रथम दशक में दो वर्षों के अत्यंत छोटे अंतराल के लिये प्रतिहार राज्य पर शासन किया।

भोज (मालवा का)

मालवा का 1018 से 1060 के बीच का परमार अथवा पवार शासक जिसकी राजधानी धार थी। यह विद्वानों का महान संरक्षक था। इसने कई संस्कृत ग्रंथों की रचना की। इसने प्रसिद्ध भोजपुर झील (250 वर्ग मील) का निर्माण करवाया जो 15 वीं शताब्दी तक बनी रही।

बिहारी लाल

तुलसीदास के बाद वह 17 वीं शताब्दी के सबसे महत्त्वपूर्ण कवि थे तथा इन्होंने सतसई की रचना की।

बिल्हण

विक्रमादित्य छठवें (1076-1127), कल्याण के चालुक्य शासक का दरबारी कवि जिसने विक्रमांकचरित की रचना की।

बीर नारायण

गढकटंगा का अवयस्क शासक जिसकी मां, रानी दुर्गावती की मृत्यु अकबर के विरुद्ध अपने किले की रक्षा करते हुये युद्ध में हुई।

बीर सिंह बुंदेला

यह बुंदेल प्रमुख था जिसने शहजादा सलीम (जहांगीर) के कहने पर अबुल फजल की हत्या की। उसने 33 लाख रुपये की लागत से मथुरा के केशव देव मंदिर का निर्माण करवाया।

बीरबल, राजा

अकबर की सेवा में एक राजपूत प्रमुख। यह सम्राट का प्रिय था जिसने उसे राजा तथा कविप्रिय (उसकी हिन्दी कविता के लिये) की उपाधियां प्रदान की। उनकी मृत्यु 1586 में उत्तर-पश्चिम भारत में युसुफजाई कबीले के विरुद्ध एक अभियान में हुई।

बर्ड, आर.एम.

उत्तर-पश्चिम प्रांतों में भूमिकर बंदोबस्त के ब्रिटिश प्रभारी, इसने अपना काम दस वर्षों (1830-40)में किया जिसे महलवाङी बंदोबस्त कहा जाता है।

ब्रायइन, डॉ.

ब्रिटिश सेना का एक शल्य चिकित्सक तथा प्रथम अफगान युद्ध (1839-42) में बचने वाला एकमात्र व्यक्ति।

बुसी, मार्कीस डे

डूप्ले के अधीन एक प्रमुख फ्रांसीसी सेनापति, यह सात वर्षों (1751-58) तक सलाबत जंग (हैदराबाद का निजाम) का सैनिक सलाहकार रहा। काउंट डी लैली (डूप्ले का उत्तराधिकारी)द्वारा उसे हैदराबाद से वापस बुला लिये जाने के कारण निजाम के दरबार में फ्रांसीसी प्रभाव समाप्त हो गया।

बटलर, सर हारकोर्ट

पहले वायसराय की कार्यकारी परिषद का सदस्य तथा बाद में संयुक्त प्रांत एवं बर्मा का गवर्नर । यह भारतीय राज्यों तथा ब्रिटिश सरकार के बीच संबंधों की जांच तथा उसके सुधारने के लिये उपाय सुझाए जाने वाली इंडियन स्टेट्स कमेटी (1927)का अध्यक्ष था। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 1929 में सौंपी।

केरी, विलियम

प्रारंभिक 19 वीं शताब्दी का एक बैप्टिस्ट मिशनरी, इसने बंगाल में ईसाइयत का प्रसार किया। कई पुस्तकों तथा दो बंगाली पत्रिकाओं (दिग्दर्शन और समाचार दर्पण) के प्रकाशन से बंगाली गद्य को बढावा प्रदान किया। पाश्चात्य विज्ञान तथा अंग्रेजी साहित्य को बढावा देने की सिफारिश की तथा सती प्रथा का विरोध किया। उसने बेनटिंक की सामाजिक तथा शिक्षा नीति को अत्यधिक प्रभावित किया।

चैत सिंह

बनारस का राजा जिसे वारेन हेस्टिंग्स ने अधिक से अधिक उपहार के लिये निरंतर तंग किया। अंततः हेस्टिंग्स ने इसके राज्य को जब्त कर लिया जबकि राजा ग्वालियर भाग गया। बाद में हेस्टिंग्स के महाभियोग में यह एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बना।

चंपत राय

बुंदेल प्रमुख जिसने औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। मुगलों द्वारा पकङे जोने से बचने के लिये इसने आत्महत्या कर ली। हालांकी इसके पुत्र छत्रसाल ने औरंगजेब के विरुद्ध अपना संघर्ष जारी रखा।

चामुंड राय

मैसूर के पश्चिमी गंग शासकों का एक मंत्री । इसने 982 ई. में श्रवण बेलगोला में एक पहाङी की चोटी पर जैन साधु गोमतेश्वर अथवा बाहुबली की प्रसिद्ध मूर्ति स्थापित करवाई।

चंद बरदाई

अजमेर के पृथ्वीराज चौहान का दरबारी कवि जिसने पृथ्वीराज रासो (जिसे चंद रैसा भी कहा जाता है) की रचना की जिसमें उसके संरक्षक की संयुक्ता से विवाह, उसके जीवन तथा उसकी उपलब्धियों का उल्लेख है।

चांद बीबी

अहमदनगर के हुसैन निजाम शाह की पुत्री तथा बीजापुर के अली आदिल शाह की पत्नी। अहमदनगर पर अकबर के आक्रमण के विरुद्ध उसकी प्रतिरक्षा के लिये प्रसिद्ध हुई।

चरक

कनिष्क के काल का प्रसिद्ध वैद्य। इन्होंने दवाओं तथा जांच से संबंधित प्रसिद्ध पुस्तक चरक संहिता लिखी।

चारनोक, जॉब

भारत में आने वाले प्रारंभिक अंग्रेज व्यापारियों में से एक, इसने 1690 में कलकत्ता की नींव डाली।

चारवाक

भारत में आने वाले प्रारंभिक भौतिकवादी दार्शनिकों में से एक, लोकायत विचारधारा। इन्होंने अमर आत्मा के अस्तित्व को तथा पुनर्जन्म के सिद्धांत को अस्वीकार किया एवं लोगों को इस जीवन में सुखी रहने की सलाह दी क्योंकि एक बार जल जाने के बाद शरीर का पुनर्निर्माण नहीं होता।

चारुमति

अशोक की पुत्रियों में एक। यह एक बौद्ध भिक्षुणी बनी, अपने पिता के साथ नेपाल की यात्रा पर गई तथा पिता के वापस आने पर वहीं रह गई।

छत्रसाल

चंपत राय बुंदेला का पुत्र। इन्होंने औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह कर दिया तथा 1671 में पूर्वी मालवा में एक स्वतंत्र राज्य स्थापित किया जिसक राजधानी पन्ना थी। बाद में बहादुर शाह प्रथम ने इन्हें मुगल सेवा में भर्ती कर लिया।

चाइल्ड, सर जॉन

सूरत के अंग्रेजी कारखाने का अध्यक्ष। औरंगजेब की आज्ञा की अवहेलना करने पर औरंगजेब ने इसकी फक्ट्री को जब्त कर लिया। कुछ समय बाद अंग्रेजों को माफ कर दिया तथा उन्हें सूरत लौटने की अनुति मिल गई।

चाइल्ड, सर जोसिआ

ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशक मंडल के अध्यक्ष । ये बलपूर्वक पूर्वी भारत में कुछ क्षेत्रों पर अधिकार करना चाहते थे, जिसके कारण 1688 में अंग्रेजों को बंगाल में अस्थायी तौर पर निष्कासित कर दिया गया।

क्लेवरिंग, सर जान

सन् 1773 और 1777 के बीच गवर्नर जनरल की कौंसिल का सदस्य । इशने अपने सहयोगी फिलीप फ्रांसिस के साथ हमेशा वारेन हेस्टिंग्स का विरोध किया।

कूट, सर आयर ब्रिटिश सेनापति जिसने वांडीवाश के युद्ध (1760) में फ्रांसीसियों पर निर्णायक जीत दर्ज की। इसने हैदर अली के विरुद्ध पोर्टो नोवो का युद्ध (1781) भी जीता। लेकिन हैदर के विरुद्ध पलिलुर में एक अन्य युद्ध में इसे अपने एक पैर से हाथ धोना पङा।

काटन, सर आर्थर थामस

प्रसिद्ध अंग्रेज इंजीनियर जिसने कावेरी कृष्णा एवं गोदावरी नदियों द्वारा सिंचाई संबंधी उपाय किए तथा दक्षिण भारत की सिंचाई प्रणाली में आम सुधार किया।

काटन, सर हेनरी

एक अंग्रेज आई.सी.एस.अधिकारी । 1920 में सेवानिवृत होने से पूर्व इसने कई महत्त्वपूर्ण पदों पर काम किया। ये भारतीय राष्ट्रवाद के पक्षधर थे तथा 1904 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बंबई अधिवेशन के अध्यक्ष थे।

कन्निंघम, सर एलेक्जेंडर

पेशे से अभियंता, 1861 तक इंजिनियरिंग विभाग में कई महत्त्वपूर्ण पदों पर काम किया जिसके बाद ये भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के प्रथम सर्वेक्षक तथा बाद में इस विभाग के निदेशक (1870-85)बने। भारतीय पुरात्तव संबंधी इनके योगदानों से हमें प्राची भारतीय इतिहास के बारे में काफी महत्त्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती हैं। उसके कार्य (द एंशिएंट जियोग्राफी ऑफ इंडिया, कार्पस इंस्क्रप्शनम इंडिकेनम, द स्तूप ऑफ भरहुत इत्यादि) आज भी काफी महत्त्व रखते हैं।

दादू दयाल

ये मध्यकालीन भारत के एक प्रमुख निर्गुण संत थे। ये अहमदाबाद के एक सूत निर्माता के पुत्र थे पर शाहजहां के शासनकाल में अधिकतर राजस्थान में रहे। इन्होंने हिन्दू मुस्लिम एकता पर कई कविताओं की रचना की। इनके अनुयायी दादूपंथी कहे गये।

दाहिर

चाच का पुत्र। वह सिंध पर अरबों द्वारा अधिकार किए जाने के समय वहां का राजा था। हालांकि उसने शुरू के दो अरब आक्रमणों को असफल कर दिया, पर मुहम्मद बिन कासिम के अधीन अरबों के आक्रमण (712ई.) में राओर के युद्ध में वह पराजित हुआ तथा उसकी हत्या कर दी गयी। शीघ्र ही संपूर्ण सिंध, राजधानी अलोर के साथ, अरब शासन के अधीन चला गया।

दारा शिकोह

शाहजहां एवं मुमताज का सबसे बङा एवं सबसे प्रिय पुत्र। यह सूफी धर्म में रुचि रखता था तथा सभी धार्मिक मतों के प्रति सहिष्णु था। जब इसका पिता 1756 में बीमार पङा तब यह उसके साथ था, पर गद्दी पर इसके दावे का उसके तीन छोटे भाईयों (शुजा, औरंगजेब तथा मुराद) ने चुनौती दी जिसके कारण सभी भाइयों में उत्तराधिकार का युद्ध (1656-58) छिङ गया। हालांकि उसे अपने पिता का समर्थन प्राप्त था पर आरंगजेब ने खरमात, समुगढ तथा देवराय के तीन लगातार युद्धों में इसे पराजित किया। उसके बाद यह भगोङा बन गया तथा दादर (सिंध) के अफगान प्रमुख जीवन खान के पास शरण प्राप्त की, हालांकि जीवन खान ने बाद में दारा शिकोह के साथ धोखेबाजी की और उसे मुगल सेना को सौंप दिया। बाद में धर्म के विरुद्ध जाने का मुकद्दमा इसके ऊपर चला तथा अगस्त 1659 में आरंगजेब ने इसे मृत्युदंड दे दिया।

दास चित्तरंजन

प्रसिद्ध अधिवक्ता जिन्होंने पहली बार प्रसिद्ध अलीपुर बम कांड में सफलतापूर्वक अरबिन्दो घोष को बचाकर नाम कमाया। इन्होंने असहयोग अंदोलन में भाग लेने के लिये अपना पेशा छोङ दिया। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1922 के अधिवेशन के अध्यक्ष बने पर इन्होंने विधायी परिषधों से अलग रहने की नीति की अर्थहीनता को शीघ्र ही महसूस कर लिया। मोतीलाल नेहरू के साथ इन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधी स्वराज्य पार्टी का निर्माण किया जिसकी घोषित नीति परिषदों में जाकर उनके कार्यों में बाधा पहुंचाना (इसे जिम्मेवार सहयोग भी कहा जाता है) था। इनकी पार्टी को विधायिकाओं में कई सीटें मिली तथा ये इसकी नीतियों को कार्यान्वित ही कर रहे थे कि जून 1925 में अचानक उनकी मृत्यु हो गई। राष्ट्रहित के लिये इनके महान योगदान के कारण इन्हें देशबंधु कहा गया।

दौलत खान लोदी

पंजाब का लोदी गवर्नर। सुल्तान इब्राहिम लोदी द्वारा अपने पुत्र (दिलावर खान) के प्रति दुर्व्यवहार के कारण यह सुल्तान के विरुद्ध हो गया तथा आलम खान (इब्राहीम का चाचा)एवं मेवाङ के राणा संग्राम सिंह के साथ भारत पर आक्रमण करने के लिये बाबर को आमंत्रित किया।

दावर बख्श

शहजादे खुसरो (जहांगीर का सबसे बङा बेटा जिसकी मृत्यु 1622 में हो गयी थी) का पुत्र, आसफ खान ने शाहजहां के दक्कन से आकर बादशाह बनने तक की अवधि के बीच इसे 1627 में गद्दी पर बिठाया।

देवभूति (अथवा देवभूमि)

अंतिम शुंग शासक जिसकी 75 ई.पू. में हत्या कर उसके मंत्री वासुदेव ने कण्व वंश की नींव डाली।

देवनामपिय पियदस्सी

एक उपाधि। अशोक के सभी अभिलेखों में इसका उल्लेख हुआ है। मास्की के अभिलेख में उसका उल्लेख हुआ है। मास्की के अभिलेख में उसका उल्लेख अशोक पियदस्सी के नाम से हुआ है। इस अभिलेख से अशोक की उपाधि तथा नाम की गुत्थी सुलझ गई। इस उपाधि का अर्थ है देवताओं का प्रिय जो सबका कल्याण देखता है।

धोयी

यह बंगाल के लक्ष्मण सेन (अंतिम सेन शासक जिसे बख्तियार खिलजी ने पराजित किया) का दरबारी कवि था। उसने पवनदूतम की रचना की जिसमें उसके संरक्षक के साहसिक कार्यों का उल्लेख किया है।

दिगनाग

प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु एवं शिक्षका यह संभवतः चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के काल में था।

डिग्बी, जॉन

रंगपुर का कलक्टर जिसके अधीन राममोहन राय ने 1809 और 1814 के बीच शरीस्तादार (किरानी) के रूप में काम किया तथा अंग्रेजी सीखी।

दिलरास बानो बेगम

औरंगजेब की सबसे बङी एवं सबसे प्रिय पत्नी जिसकी मृत्यु के बाद आरंगजेब ने औरंगाबाद में एक मकबरे का निर्माण करवाया जो ताजमहल की तर्ज पर बना हुआ है।

डफ्फ, अलेक्जेंडर

स्कॉटिश प्रेसबायटेरियन मिशनरी, इसने 1830-1863 के बीच बंगाल में समाज सुधार तथा पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार के लिये महत्त्वपूर्ण कार्य किया। राममोहन राय की सहायता से इसने कलकत्ता में एक इंग्लिश स्कूल (1830) शुरू किया जो बाद में डफ्फ कॉलेज के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसने भारत में विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिये सरकार को प्रेरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

डूंडास, हेनरी

नियंत्रक मंडल (1784 के पिट्ट इंडिया एक्ट द्वारा स्थापित ) के प्रथम अध्यक्ष। इन्होंने भारत के मामले में नियंत्रक मंडल को अत्यंत शक्तिशाली बनाया।

डूरंड, सर हेनरी मोरटाइमर

विशिष्ट आई.सी.एस. अधिकारी। ये 1884 और 1894 के बीच भारत सरकार के विदेश सचिव थे तथा भारत और अफगानिस्तान की प्रसिद्ध सीमा रेखा डूरंड लाइन निर्धारित करने वाले आयोग के अध्यक्ष थे।

दुर्लभ राय

सिराजुद्दौला के सेनापतियों में से एक, इसने मीर जाफर तथा अन्य षड्यंत्रकारियों के साथ मिलकर प्लासी के युद्ध में अपने मालिक को धोखा देकर अंग्रेजों का सात दिया।

दुर्लभवर्धन

काश्मीर के कारकोटा वंश (सातवीं से नवीं शताब्दी) के संस्थापक जिस वंश के प्रमुख राजा ललितादित्य तथा जयपाद विनयादित्य हुए। इस वंश को नवीं शताब्दी में तुपाल वंश ने विस्थापित किया।

दत्त, रोमेश चंद्र

आई.सी.एस. में चुने जाने वाले प्रारंभिक भारतीयों में से एक, इन्होंने सिविल सेवा के भारतीयकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा भारतीय राष्ट्रवाद तथा समाज सुधार में उल्लेखनीय योगदान किया। सेवानिवृत्त होने के बाद इन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया तथा 1899 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन का सभापतित्व किया। इनकी पुस्तक इकॉनॉमिक हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया (1757-1900ई.) ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था के शोषक का विद्वतापूर्ण अध्ययन है।

डायर, जनरल

सैनिक जनरल जो 13 अप्रैल, 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड (379 मृत तथा 1208 घायल)के लिये जिम्मेदार था। बाद में उसने मार्शल लॉ लागू कर पंजाबियों को बेइज्जत किया। बाद में लॉर्ड हंटर की अध्यक्षता के अधीन गठित एक समिति की सिफारिश पर सरकार द्वारा उस पर अभियोग चलाया गया तथा सेवा से हटा दिया गया।

फैजी

शेख मुबारक का पुत्र तथा अबुल फजल का बङा भाई। यह अकबर के दरबार का प्रमख कवि था।

फखरुद्दीन

दिल्ली का कोतवाल तथा बलबन का करीबी मित्र। इसने 2000 शम्सी घुङसवारों की भूमि जब्ती के आदेश को सुल्तान से वापस करवाया जो बूढे हो गए थे तथा सैनिक कार्य के लिये अक्षम थे।

फरिश्ता, मुहम्मद कासिम

बीजापुर का प्रमुख इतिहासकार (सोलहवीं शदी के अंत तथा सत्रहवीं शदी के प्रारंभ में)। यह इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय के दरबार में था तथा भारत में मुस्लिम शासन का विवरण देने वाली पुस्तक तारीखे फरिश्ता का लेखक था।

फोर्दे, कर्नल

प्रतिभाशाली अंग्रेज सैन्य अधिकारी। इसने चंदुर्थी के युद्ध (1759) में फ्रांसीसियों को पराजित किया तथा मसूलीपटनम पर अधिकार किया जिससे उत्तरी सरकारों पर फ्रांसीसी नियंत्रण समाप्त हो गया। उसी वर्ष बाद में इसने बेदेरा के युद्ध में डचों को पराजित किया जिससे बंगाल में डचों की चुनौती समाप्त हो गयी।

फ्रॉसिस, सर फिलिप

रेगुलेटिंग एक्ट के द्वारा गवर्नर जनरल की कौंसिल के चार सदस्यों में से एक सदस्य। इशने मौनसन तथा क्लेवरिंग के साथ वारेन हेस्टिंग्स की सभी नीतियों तथा उसकी शासन प्रणाली का विरोध किया। अतंतः हेस्टिंग्स के साथ आग्नेयास्र युद्ध (1780) में यह विकलांग हो गया जिसके बाद इंग्लैण्ड जाकर हेस्टिंग्स के महाभियोग के आयोजन तथा संचालन में सक्रिय भूमिका निभाई।

गंगू

ब्राह्मण ज्योतिषविद (फरिश्ता के अनुसार) यह सहन का गुरु था तथा इसने बहमनी राज्य के संस्थापक की महानता की भविष्यवाणी की थी।

घोष रासबिहारी

कलकत्ता के प्रमुख अधिवक्ता । भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सूरत अधिवेशन (1907) के अध्यक्ष चुने गए जिसके अंत में कांग्रेस में विभाजन हो गया। अगले वर्ष (1908) ये उदारवादियों के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन के अध्यक्ष बने।

गुलाम हुसैन खान

मुगलकाल के दौरान बंगाल का प्रमुख इतिहासकार। यह सियार-उल-मुतखरिम ग्रंथ का लेखक था जो कि मुगल साम्राज्य के पतन का आधिकारिक तथा विश्वसनीय विवरण प्रस्तुत करता है। (इसमें बंगाल में 1780 तक अंग्रेजों की प्रगति का विवरण भी है।)

गुलबदन बेगम

बाबर की पुत्री। यह प्रतिभासंपन्न महिला थी तथा इसने अपने भाई, हुमायूं, के शासनकाल का आधिकारिक विवरण हुमायूंनामा में लिखा है।

ग्वायर, सर मौरिस लिनफोर्ड

ये भारत (संघीय न्यायालय)का 1937 से 1947 तक प्रथम मुख्य न्यायाधीश थे तथा सेवानिवृत्ति के बाद दिल्ली विश्ववद्यालय के कुलपति बने। इन्होंने भारत के संविधान के प्रारूपण में भी उल्लेखनीय योगदान किया।

हैलिडे, सर एफ.जे.

ये बंगाल, बिहार, उङीसा तथा असम के प्रथम लेफ्टिनेंट गवर्नर थे। 1853 के चार्टर तथा असम के प्रथम लेफ्टिनेंट गवर्नर थे। 1853 के चार्टर एक्ट द्वारा सेवामुक्त किए जाने से पहले इन्होंने गवर्नर जनरल प्रशासन का अतिरिक्त कार्यभार संभाला।

हामिदा बानू बेगम

हुमायूं की पत्नी तथा अकबर की माता, अकबर के व्यवक्तित्व पर इनका अत्याधिक प्रभाव था।

हेयर, डेविड

पेशे से घङीसाज, ये भारत में पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार में विशेष रुचि रखते थे। मुख्यतः इन्हीं के प्रयासों के कारण 1917 में कलकत्ता के हिन्दू कॉलेज की स्थापना हुई। अंग्रेजी तथा बंगाली पुस्तकों की छपाई के लिये इन्होंने स्कूल बुक सोसायटी की स्थापना की।

हरि विजय सूरी

अकबर के काल का प्रसिद्ध जैन शिक्षक जिसे अकबर ने फतहपुर सीकरी के इबादतखाना में आयोजित होने वाली धार्मिक बहसों में भाग लेने के लिये आमंत्रित किया।

हेमचंद्र

बारहवीं शताब्दी का प्रमुख जैन लेखक जिसने त्रिशष्टिसलाका पुरुषचरित की रचना की जिसमें 126 जैन संतों की जीवनी है. परिशिष्टपर्वन (जिसमें अन्य बातों के अलावा चंद्रगुप्त मौर्य के जैन बनने का उल्लेख है) इनका पूरक ग्रंथ है।

हुविष्क

कनिष्क का पुत्र तथा उत्तराधिकारी। इसने बङी संख्या में सिक्के जारी किए जिससे ज्ञात होता है कि इसका शासन इसके पिता द्वारा स्थापित बङे साम्राज्य पर था।

इलबर्ट, सर कर्टनी

वायसराय की कार्यकारी परिषद का, 1882 तथा 1886 के बीच, विधि सदस्य, जिसने प्रसिद्ध इलबर्ट बिल का प्रतिपादन किया तथा बाद में विधायिका द्वारा कुछ मौलिक सुधारों (यूरोपीय विरोध के कारण)के बाद इसे लागू किया। बाद में यह कलकत्ता विश्वविद्यालय का कुलपति बना।

इम्पे, सर एलिजा

ये इन्हें 1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट के द्वारा कलकत्ता के सुप्रीम कोर्य का प्रथम मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। इन्होंने 1775 में नंद कुमार पर जालसाजी का आरोप लगाया तथा उसे मृत्युदंड दे दिया। यह संभवतः वारेन हेस्टिंग्स (जो कि इम्पे का वर्ग मित्र था)के इशारे पर किया गया था। सन् 1779 में इनके नेतृत्व में अधिकार के प्रश्न पर सुप्रीट कोर्ट का गवर्नर जनरल की परिषद से झगङा प्रारंभ हुआ।

इस्लाम शाह सूर

शेरशाह सूर का पुत्र एवं उत्तराधिकारी। इसने 1545 से 1554 तक दिल्ली पर शासन किया, सेना की कुशलता बनाए रखा तथा अपने पिता द्वारा जारी किए गए कई सुधारों को जारी रखा।

जहांआरा

शाहजहाँ की दो बेटियों में बङी। उत्तराधिकारी के युद्ध में इसने दारा का साथ दिया तथा औरंगजेब के उत्तराधिकारी बनने के बाद इसने स्वयं को अपने कैद पिता की सेवा में समर्पित कर दिया। वह एक महान कवयित्री भी थी।

जयदेव

प्रसिद्ध कवि तथा लक्ष्मण सेन (12 वीं शताब्दी के अंत में) का समकालीन, जयदेव ने प्रसिद्ध गीत गोविंद की रचना की।

जयमल

मेवाङ का महान योद्धा, जब अकबर ने चित्तौङ पर आक्रमण किया तो राणा उदयसिंह ने उसे चित्तौङ का प्रभारी बनाया। मुगल सेना से पराजित होने के पूर्व इसने बहादुरीपूर्वक चार महीने तक किले की रक्षा की।

जय सिंह

आंबेर का कछवाहा शासक। इसने शाहजहां के जीवन के अंतिम वर्षों तथा औरंगजेब के शासनकाल के प्रारंभिक वर्षों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उत्तराधिकार के युद्ध में इसे शहजादा शुजा के विरुद्ध लङने के लिये भेजा गया था जिसे इसने पराजित कर बंगाल तक पीछा किया। बाद में औरंगजेबने इसे क्षमा कर दिया तथा उसकी नियुक्ति दक्कन में हुई जहां उसने सफलतापूर्वक अपना अभियान चलाया तथा शिवाजी को पुरंदर की संधि (1665) स्वीकार करने के लिए बाध्य किया।

जयपाल

उत्तर पश्चिम भारत में वैहिन्द (उदभांडपुर) का हिन्दुशाही शासक, उसे महमूद गजनी ने 1001 में पेशावर के निकट एक युद्ध में बुरी तरह परास्त किया। बताया जाता है कि बेइज्जती के कारण इसने अपने पुत्र आनंदपाल को राजा बनाकर आत्महत्या कर ली। लेकिन इसके पुत्र को भी महमूद ने 1008 में पराजित किया जिसके बाद हिन्दुशाही वंश का अंत हो गया।

जसवंत सिंह

मारवाङ (राजधानी जोधपुर)का राठौर शासक । उत्तराधिकार के युद्ध में इसे शाहजहां द्वारा औरंगजेबके विरुद्ध भेजा गया था, पर उज्जैन के निकट धर्मात के युद्ध (1658) में यह पराजित हो गया। बाद में इसे औरंगजेबने माफ कर दिया तथा मुगल सेवा में रख लिया। उत्तर-पश्चिम में सेवा के दौरान 1678 में इसका मृत्यु हो गयी जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद उत्पन्न हुए पुत्र(अजत सिंह) को औरंगजेब द्वारा वैधानिक उत्तराधिकारी के रूप में अस्वीकार करने के कारण इसके समर्थकों ने औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।

जिन्ना, मुहम्मद अली

पाकिस्तान के संस्थापक। इनका जन्म कराची में हुआ था। इन्होंने कानून का अध्ययन किया तथा बंबई में सफल वकील बने। कांग्रेस के दादा भाई नौरोजी तथा जी.के.गोखले जैसे उदारवादी नेताओं के अनुयायी के रूप में भारतीय राजनीति में आए तथा 1910 में केन्द्रीय विधायी परिषद के सदस्य बने। पर शीघ्र ही ये मुस्लिम लीग के सदस्य (1913) बन गए। 1916 के लखनऊ अधिवेशन के अध्यक्ष बने। राष्ट्रीय राजनीति में गांधी जी के आने के बाद ये कांग्रेस से पूर्णतः अलग हो गए तथा लीग का पुनर्गठन शुरू कर दिया। धार्मिक आधार पर भारत के बंटवारे की मांग की (1940)। कायदे आजम (महान नेता) के नाम से लोकप्रिय, वह स्वतंत्र पाकिस्तान के प्रथम गवर्नर जनरल बने।

जोंस, सर विलियम

प्रसिद्ध ब्रिटिश प्राक्विद तथा न्यायविद् । इन्होंने 1789 में कलकत्ता में एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल की स्थापना की तथा 1794 में अपनी मृत्यु तक इसके अध्यक्ष बने रहे। भारत में अपने प्रवास (1784-94) के दौरान ये कलकत्ता की सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश भी बने। फारसी तथा संस्कृत भाषाओं के विद्वान होने के कारण इन्होंने कई हिन्दू तथा मुस्लिम ग्रंथों का अंग्रेजी में अनुवाद किया।

कैडफिशेज प्रथम

भारत में कुषाण वंश के संस्थापक। ये प्रथम शताब्दी में थे। इनके साम्राज्य में बैक्ट्रिया, अफगानिस्तान तथा भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग थे।

काफूर, मलिक

मूलतः एक हिन्दू थे । इसे अलाउद्दीन खिलजी ने अपने गुजरात अभियान (1297ई.) के दौरान पकङकर मुसलमान बनाया।ये योग्य सेनापति तथा सुल्तान का सबसे विश्वसनीय अधिकारी साबित हुआ। इसने सुल्तान के लिये देवनागरी, वारंगल, द्वारसमुद्र, मालाबार तथा मदुरै राज्यों पर अधिकार किया। लेकिन अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद इसने सुल्तान के अवयस्क पुत्रों में से एक को गद्दी पर बिठाया तथा वास्तविक नियंत्रण अपने हाथों में रखा। अतंतः सभी विरोधियों ने एकत्र होकर इसकी हत्या कर दी।

कल्हण

काश्मीर के राजाओं के इतिहास राजतरंगिणी के लेखक। इनका काल 12 वीं शताब्दी था।

कामरान, शहजादा

बाबर का द्वितीय पुत्र। इसके बङे भाई हुमायूं ने इसे अफगानिस्तान क्षेत्र सौंपा था। लेकिन हुमायूं के बुरे दिनों में इसने हुमायूं को शरण नहीं दी। अंततः भारत पर पुनः अधिकार करने से पूर्व हुमायूं ने फारसियों की सहायता से अफगानिस्तान पर अधिकार कर लिया।

करण सिंह

मेवाङ के राणा प्रताप का पौत्र तथा राणा अमर सिंह का पुत्र। इसके पिता से समझौता हो जाने के बाद जहांगीर ने 1614 में इसे 5000 का मनसब प्रदान किया। बाद में यह अपने पिता का उत्तराधिकारी बना तथा मुगलों के साथ मित्रवत संबंध बनाए रखे।

काश्यप मतंग

चीनी सम्राट मिंग द्वारा भेजे गए मिशन के आग्रह पर प्रथम शताब्दी के उत्तरार्द्ध में चीन जाकर वहां बौद्ध धर्म का प्रारंभ करने वाला प्रथम भारतीय बौद्ध भिक्षु।

कौडिन्य

कंबोडिया की परंपरा के अनुसार यह एक भारतीय ब्राह्मण था। जिसने आधुनिक कंबोडिया में कंबोज देश राज्य की स्थापना की।

खाफी खान

इस नाम से मुहम्मद हाशिम ने अपना प्रसिद्ध ऐतिहासिक ग्रंथ मुंतखाबुल लुबाब लिखा। यह ग्रंथ औरंगजेब के शासन काल में गुप्त रूप से लिखा गया था, क्योंकि औरंगजेब इसके विरुद्ध था। इसने शिवाजी की विजयों तथा उनके गुणों का निष्पक्षता के सात वर्णन किया है।

खारवेल

कलिंग (उङीसा) के प्रारंभिक राजाओं में महानतम, इनके शासन काल तथा उपलब्धियों का उल्लेख पुरी जिले के उदयगिरी पहाङियों की एक जैन गुफा से प्राप्त एक अभिलेख में हुआ जिसे हाथीगुंफा अभिलेख कहा जाता है। यह चेत वंश का था तथा इसने संपूर्ण कलिंग तथा पङोसी राज्यों पर अपना अधिकार स्थापित किया। इसने जैन धर्म को संरक्षण प्रदान किया तथा कई जनोपयोगी कार्य किए।

खुसरो, शहजादा

जहांगीर (सलीम )का सबसे बङा बेटा। इसने अकबर की मृत्यु (1605) के बाद अपने पिता के विरुद्ध गद्दी पर अपना दावा पेश किया। अपने मामा, आंबेर के मान सिंह, के सहयोग के बावजूद यह अपने पिता के विरुद्ध सफल नहीं हुआ। जहांगीर ने उसे पराजित कर माफ कर दिया। जहांगीर के शासनकाल के दौरान भी उसने गद्दी पर अधिकार करने के कई असफल प्रयत्न किए, तथा अंततः उसे पकङकर उसके छोटे भाई खुर्रम(शाहजहां) के हवाले कर दिया गया जो उसकी मृत्यु का कारण बना।

ख्वाजा जहां

मलिक सरवर की उपाधि, जो 1394 में नसीरुद्दीन मुहम्मद तुगलक द्वारा पूरब का मालिक, मालिक-उस-शर्क, नियुक्त किया गया जिसकी राजधानी जौपुर में थी। इसके पुत्र ने संपूर्ण गंगा-यमुना दोआब पर अपना अधिकार स्थापित किया तथा शर्की वंश की स्थापना की।

कीरत सिंह

बुंदेलखंड में कालिंजर का राजा, जिस पर रेवा के राजा बीर सिंह को शरण देने के कारण शेर शाह सूर अप्रसन्न था। इसके कङे प्रतिरोध के बावजूद शेर शाह ने 1545 में किले पर अधिकार कर लिया पर इसमें शेर शाह घायल हो गया तथा शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो गयी।

कुंभा

मेवाङ का राणा। यह मेवाङ के महानतम राजाओं में से एक था जिसने मालवा तथा गुजरात के मुस्लिम शासकों

लियाकत अली खान

उत्तर प्रदेश में जन्मे, ये मुस्लिम लीग के प्रमुख नेताओं में से एक थे। अंतरिम सरकार (1946-47) में वित्त मंत्री थे तथा विभाजन के बाद पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री बने। एक आम सभा में एक अज्ञात हत्यारे ने इनकी हत्या कर दी।

मैकॉले, थॉमस बेबिंग्टन

प्रसिद्ध अंग्रेज विद्वान, लेखक, इतिहासकार तथा राजनीतिज्ञ। गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद के प्रथम विधि सदस्य के रूप में यह 1834 में भारत आया। इसने दंड संहिता का प्रारूप तैयार किया जो बाद में भारतीय अपराध संहिता का आधार बना जिसमें कानून के समक्ष भारतीय अपराध संहिता का आधार बना जिसमें कानून के समक्ष भारतीयों तथा यूरोपीयों के बीच समानता बरती गयी। इसने अंग्रेजी माध्यम से पाश्चात्य प्रणाली के आधार पर उदारवादी शिक्षा प्रणाली प्रारंभ की।

मैकडॉनल, सर एंथनी

ये लॉर्ड कर्जन द्वारा 1900 में नियुक्त फेमीन कमीशन का अध्यक्ष थे।

मैकडॉनल, सर हेनरी

ये तिब्बत एवं चीन तथा उत्तर-पश्चिम सीमांत एजेंसी(भारत )के बीच प्रसिद्ध मैकमोहन लाइन निर्धारित करने वाले आयोग के अध्यक्ष थे।

माधव राव, पेशवा

तीसरे पेशवा (बाला जी बाजी राव)का द्वितीय पुत्र जो 1761 में 17 वर्ष की उम्र में अपने पिता का उत्तराधिकारी बना। पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों की बुरी तरह पराजय के बाद इसने फिर से मराठा शक्ति एवं शौर्य का पुनरुत्थान किया। इसने निजाम तथा हैदर अली सहित अपने सभी पङोसियों को पराजित किया। उत्तर भारत में मालवा तथा बुंदेलखंड पर पुनः अधिकार किया, जाट और रोहिल्लों को पराजित किया, दिल्ली पर पुनः अधिकार किया तथा दिल्ली की गद्दी मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय को सौंप दी जो बहुत दिनों से इलाहबाद में अंग्रेजों का बंदी था।

महाबत खान

मूलतः जमाना बेग के नाम से ज्ञात, महाबत खान की उपाधि इसे जहांगीर द्वारा प्रदान की गई थी। ये एक योग्य सेनापति सिद्ध हुआ। मेवाङ के राणा अमर सिंह को महाबत खान ने पराजित किया। लेकिन नूरजहां के प्रभाव में आकर जहांगीर ने 12 वर्षों तक इसे अनदेखा किया, अत्यंत दुःख के कारण महाबत खान ने विद्रोह कर दिया। इसने कुछ दिनों के लिये बादशाह को भी बंदी बना लिया था। शाहजहां के बादशाह बनने में सहयोग के कारण शाहजहां ने उसे एक महत्त्वपूर्ण पद प्रदान किया।

महमूद बेगर्हा

गुजरात के महानतम शासकों में से एक। इसने 52 वर्षों (1459-1511) की लंबी अवधि तक शासन किया तथा अपने अनेक पङोसियों को पराजित किया। इसने गुजरात तट पर पुर्तगालियों के प्रसार को रोका। इतावली यात्री वार्थइया ने अपने विवरण में महमूद की भूख का उल्लेख किया है।

मल्हार राव होल्कर

इंदौर के होल्कर परिवार का संस्थापक। यह पेशवा बाजी राव प्रथम के प्रति अपनी कुशल तथा निष्ठापूर्वक सेवा के कारण प्रकाश में आया तथा इसके बदले उसे बहुत बङा क्षेत्र प्रदान किया गया जो उसके उत्तराधिकारियों के पास इसके स्वतंत्र भारत में सम्मिलित होने तक 1948 तक बना रहा।

मालवीय मदनमोहन

प्रमुख राष्ट्रवादी नेता, प्रख्यात शिक्षाविद तथा समाज सुधारक। इन्होंने 1885 तथा 1907 के बीच तीन पत्रिकाओं (हिन्दुस्तान, इंडियन यूनियन तथा अभ्युदय) का संपादन किया। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने तथा दो बार (1909-1918) इसके अध्यक्ष बने। इनकी महानतम उपलब्धि 1915 में बनारस हिन्दू विश्वविद्याय की स्थापना है। धार्मिक मुद्दों पर ये कट्टर हिन्दू थे पर शुद्धि (धर्म पुनः परिवर्तन आंदोलन )तथा अस्प्रश्यता हटाए जाने में विश्वास रखते थे। हिन्दू महासभा के तीन बार अध्यक्ष बने।

मयूरसर्मण

बनवासी (मैसूर क्षेत्र)के कादंब वंश के संस्थापक, इसने संभवतः चौथी शताब्दी में पल्लवों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया तथा स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।

मेघवामा

श्रीलंका का शासक तथा समुद्रगुप्त का समकालीन। इसने समुद्रगुप्त के दरबार में राजदूत तथा उपहार भेजे एवं श्रीलंका के बौद्ध धर्म प्रचारकों के लिये बोध गया के उत्तर एक बौद्ध विहार बनवाने के लिये समुद्रगुप्त की अनुमति प्राप्त की।

मिहिरकुल

हूण शासक तोरमाण का पुत्र एवं उत्तराधिकारी। पांचवीं शताब्दी के अंत में गुप्त साम्राज्य के पश्चिमी सीमांत एवं मध्य मालवा पर इनका शासन था। यह 500 ई. के लगभग गद्दी पर बैठा था। पंजाब के साकल (सियालकोट) में इसकी राजधानी थी। बालादित्य (मगध का राजा) तथा यशोवर्मन (मंदसौर का राजा) ने लगभग 528 ई. में उसे पराजित कर खदेङ दिया।

मिनहाज-ए-सिराज

दास सुल्तान नसीरुद्दीन मुहम्मद के काल का प्रसिद्ध इतिहासकार। यह तबकात-ए-नासिरी का लेखक था, जो दिल्ली सल्तनत के प्रारंभिक दौर का विश्वसनीय विवरण है।

मीर फतह अली खान

बलूचिस्तान के तालपुरा कबीले से संबद्ध, इसने सिंध में 1783 में कलोरा शासन को उखाङ फेंका तथा इस पर 1802 तक शासन किया। इसकी मृत्यु के बाद इसके वंशज तीन परिवारों में विभक्त हो गए और 1843 में सिंध पर अंग्रेजों के अधिकार से पूर्व हैदराबाद, मीरपुर तथा खैरपुर से शासन करते रहे।

मीर जुमला

फारसी साहसी व्यवसायी। इसने अपना जीवन गोलकुंडा के सफल हीरे व्यापारी के रूप में शुरू किया। अब्दूल्ला कुतबशाह की सेवा में भर्ती हुआ तथा उसका मुख्यमंत्री बना। बाद में यह औरंगजेब की सहायता से शाहजहां की सेवा में आया जिसे उसने प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा भेंट किया। उत्तराधिकार के युद्ध के समय इसने औरंगजेब का साथ दिया, बंगाल का सूबेदार बनाकर पुरस्कृत किया गया। बाद में इसने असम के अहोम शासकों पर आक्रमण किया, उसके शासक को पराजित किया तथा आसाम का एक हिस्सा एवं भारी हर्जाना मुगलों को देने को बाध्य किया (1662)। ढाका लौटते समय रास्ते में 1663 में उसकी मृत्यु हो गयी।

मुहम्मद अली

अपने भाई शौकत अली के साथ इन्होंने 1920 में खिलाफत आंदोलन का नेतृत्व किया तथा बाद में असहयोग आंदोलन में भाग लिया। ये कांग्रेस के गया अधिवेशन (1922) के अध्यक्ष बने तथा, इन्होंने नव निर्मित स्वराज पार्टी तथा गांधी जी के अनुयायियों के बीच समझौता करवाया।

मुहम्मद रेजा खान

1765 में अंग्रेजों के इशारे पर बंगाल का नायब नवाब नियुक्त किया गया तथा द्वैध प्रशासन (1765-72) के अंतर्गत इसने बंगाल के शोषण में अंग्रेजों का भरपूर साथ दिया।

मुखर्जी, आशुतोष

प्रसिद्ध अधिवक्ता तथा शिक्षाविद्। ये कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश तथा बाद में मुख्य न्यायाधीश बने। चार बार कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने तथा अपनी मृत्यु तक इससे जुङे रहे। अपने अथक परिश्रम की बदौलत इन्होंने इस विश्वविद्यालय को पूरब के सर्वोत्तम विश्वविद्यालयों में से एक बनाया।

मूलराज

सोलंकी राजा के संस्थापक।इस राज्य की राजधानी अनहिलवाङा में थी तथा इनका शासन काल 942 से 997 ई. के बीच था।

मुनरो, सर हेक्टर

कंपनी की सेवा में कार्यरत एक सेनापति। इसने अंग्रेजों के लिये बंगाल के मीर कासिम तथा अवध के शुजाउद्दौला की सेनाओं के विरुद्ध बक्सर का युद्ध (1764) जीता।

मुनरो, सर थॉमस

विशिष्ट ब्रिटिश कर अधिकारी। ये जिलाधिकारी (कलक्टर)के पद से मद्रास के गवर्नर (1820-27) बने। इनकी महानतम उपलब्धि मद्रास प्रेसीडेंसी में रैयतवाङी प्रणाली की शुरुआत है।

मुकर्रब खान

औरंगजेब का योग्य सैन्य अधिकारी। इसने संगमेश्वर में संभाजी को बंदी बनाकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया तथा बाद में उनकी हत्या कर दी।

नायडू, श्रीमती सरोजनी

स्वतंत्रता सेनानी, कवयित्री एवं वक्ता। ये 1925 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन की अध्यक्ष थी तथा, इस प्रकार, कांग्रेस की प्रथम भारतीय महिला (श्रीमति एनी बेसेंट प्रथम महिला अध्यक्ष थी)।ये राज्यपाल (उत्तर प्रदेश, 1947-49 के बीच) नियुक्त होने वाली प्रथम महिला थी।

नाना फङनवीस

एक मराठा ब्राह्मण। ये अवयस्क पेशवा माधव नारायण राव के अभिभावक तथा मुख्य मंत्री बने। व्यावहारिक रूप से 1774 से 1800 ई. में अपनी मृत्यु तक इन्होंने मराठा गतिविधियों को स्वयं संभाला।

नेहरू, पंडित मोतीलाल

जवाहरलाल नेहरू के पिता तथा महान देशभक्त। इन्होंने अपना जीवन एक सफल अधिवक्ता के रूप में प्रारंभ किया तथा 1919 में कांग्रेस पार्टी के सदस्य बने। भारतीय राष्ट्रवाद के समर्थन में इन्होंने एक पत्रिका, इंडिपेंडेट का प्रकाशन प्रारंभ किया। इन्होंने अपना फलता-फूलता पेशा तथा भारतीय विधायी सभा की सदस्यता को त्यागकर असहयोग आंदोलन में भाग लिया। विधायी कार्यों में विरोध डालने के उद्देश्य से इन्होंने 1922 में सी.आर.दादा के साथ स्वराज पार्टी की स्थापना की। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष चुने गए(1919, कलकत्ता अधिवेशन तथा 1928 अमृतसर अधिवेशन)। भारत के संविधान के भविष्य पर पेश की गयी नेहरू रिपोर्ट (1928) बनाने वाली समिति के ये अध्यक्ष भी थे। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान 1931 में उनकी मृत्यु हो गयी।

निवेदिता, बहन

स्वामी विवेकानंद की प्रसिद्ध शिष्या। ये आयरलैण्ड की महिला थी जिनका मूल नाम मार्गरेट नोबल था। विवेकानंद के आमंत्रण पर भारत आकर इन्होंने स्वयं को समाज सुधार तथा कन्या शिक्षा के कार्यों में समर्पित किया।

निजामुद्दीन अहमद

अकबर के काल का प्रसिद्ध इतिहासकार जिसने समकालीन आधिकारिक ग्रंथ तबकाते अकबरी की रचना की।

पद्मिनी, रानी

मेवाङ के राणा रतन सिंह की मुख्य रानी, ये अपनी सुंदरता के लिये इतनी प्रसिद्ध थी कि बताया जाता है, कि उसे जबरन प्राप्त करने के लिये अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 में चित्तौङ पर आक्रमण किया। राजपूतों द्वारा दुर्ग की रक्षा में असफल रहने के कारण उसने अन्य शाही महिलाओं के साथ जौहर कर लिया।

परमार्दि (परमाल)

जेजामुक्ति का अंतिम चंदेल राजा (1166-1203 ई.) जो इस वंश का स्वतंत्र राजा था। उसे पहले पृथ्वीराज चौहान ने तथा बाद में कुतुबुद्दीन ऐबक ने पराजित कर उसकी राजधानी कालिंजर पर अधिकार कर लिया।

पिगट, लॉर्ड

मद्रास का गवर्नर (1775-78ई.) उसने कंपनी के अधिकारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की कोशिश की, लेकिन इसके अपने अधीनस्थों ने ही इसे पदच्युत कर बंदी बना लिया। उसकी मृत्यु मद्रास में बंदीगृह में हुई।

पीर मुहम्मद खान

इसने अपना जीवन बैरम के सेवक के रूप में प्रारंभ कियी, पर शीघ्र ही बैरम विरोधी खेमे में चला गया। बताया जाता है कि बैरम के प्रति उसके दुर्व्यवहार के कारण बैरम से विद्रोह किया था। बैरम के पतन के बाद उसने कई महत्त्वपूर्ण पदों पर काम किया। खानदेश पर अधिकार करने के असफल प्रयत्न (1562) के दौरान लौटते वक्त उसकी मृत्यु नर्मदा में डूब जाने से हुई।

प्रसाद, राणा

सिंध में अमरकोट का शासक। इसने हुमायूं तथा उसकी पत्नी हमीदा बानू को शरण दी थी। इनका पुत्र अकबर 1542 में यहीं पैदा हुआ था।

प्रसेनजित

कोशल का राजा, वह बुद्ध एवं महावीर का समकालीन था दोनों ही उसके राज्य में गए थे। उसने बिम्बिसार की बहन से विवाह किया तथा उसकी बहन का विवाह बिंबिसार से हुआ। वैवाहिक संबंध के बावजूद मगध तथा कोशल के बीच शत्रुता बनी रही तथा अजातशत्रु ने उसे एक गांव (काशी के निकट) मगध को सौंपने को मजबूर किया। प्रसेनजित की मृत्यु के बाद धीरे-धीरे कोशल का पतन हो गया।

पुरुषोत्तम

हिन्दू दार्शनिक, अकबर ने फतेहपुर सीकरी के इबादतखाना में आयोजित होने वाले धार्मिक शास्रार्थ में भाग लेने के लिये इन्हें आमंत्रित किया था।

पुष्यगुप्त

रुद्रदामन प्रथम के जूनागढ अभिलेख में उल्लिखित, यह चंद्रगुप्त मौर्य का रिश्तेदार तथा सौराष्ट्र का मौर्य गवर्नर (राष्ट्रीय) जिसने कृषि कार्य के लिये प्रसिद्ध सुदर्शन झील का निर्माण करवाया।

कासिम खान

मुगल अभिजात। इसे शाहजहां ने बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया तथा उसे पुर्तगाली व्यापारियों को समाप्त करने का आदेश दिाय जो बंगाल में बस गए थे तथा अपने व्यापारिक अधिकारों का दुरुपयोग कर रहे थे। उसने 1632 में हुगली पर अधिकार किया तथा पुर्तगालियों पर अंकुश लगाने में सफल रहा।

राधाकांत देब

19 वीं शताब्दी में बंगाल के हिन्दू समुदाय के प्रसिद्ध परंपरावादी नेता। इन्होंने उदारतापूर्वक पूर्वी तथा पाश्चात्य शिक्षा को संरक्षण प्रदान किया। इन्होंने डेविड हेयर को उसकी शैक्षणिक गतिविधियों में सहयोग प्रदान किया, लेकिन ये समाज सुधारों (सती प्रथा सहित) तथा राममोहन राय के ब्रह्म समाज की गतिविधियों के विरुद्ध थे।

रघुजी भोंसले

नागपुर के भोंसले परिवार के संस्थापक । पेशवा बाजी राव प्रथम ने बेरार में मराठा शक्ति को स्थापित करने के लिये इन्हें पूरी छूट दे रखी थी। इनके वंशजों ने बेरार पर 1853 तक शासन किया। इनकी राजधानी नागपुर थी। संतानहीन रघुजी तृतीय की 1853 में मृत्यु के बाद लॉर्ड डलहौजी ने इसे ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया।

रहमत अली चौधरी

कैंब्रिज में अध्ययनरत एक भारतीय मुसलमान। इन्होंने 1933 में पाकिस्तान शब्द का प्रतिपादन किया। यह मुसलमानों की बहुसंख्यक जनसंख्या पर आधारित भारतीय संघ की इकबाल की धारणा का विकास था। इस विचार को बाद में जिन्ना ने ग्रहण किया तथा पाकिस्तान को वास्तविकता में बदल दिया।

राजशेखर

प्रतिहार राजा महिंद्रपाल (890-910) के दरबार का प्रसिद्ध कवि एवं नाटककार । इसने संस्कृत में तीन तथा प्राकृत में एक कर्पूर मंजरी नाटक लिखा।

रामानंद

उत्तर भारत (15वीं शताब्दी) के प्रारंभिक भक्ति संतों में से एक। इनका जन्म इलाहाबाद के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। हालांकि ये उत्तर के थे, पर इन्होंने अपने जीवन का अधिकांश भाग दक्षिण में बिताया। ये रामानुज से अत्यधिक प्रभावित थे, राम के पूजक थे तथा इन्होंने जाति एवं लिंग का भेदभाव किए बिना सबको उपदेश दिया। उनके शिष्यों में कबीर एवं पद्मावती थे।

रोशनआरा

शाहजहां (मुमताज महल से उत्पन्न) की छोटी एवं दूसरी बेटी, उत्तराधिकार के युद्ध में उसने औरंगजेब का साथ दिया तथा सभी महत्त्वपूर्ण सूचनाएं गुप्त रूप से औरंगजेब को भेजकर उसकी काफी सहायता की।

रुद्रमा देवी

वारंगल के काकातिया शासक गणपति देव की पुत्री, वह अपने पिता की उत्तराधिकारी बनी तथा उसका शासन काल 13 वीं शताब्दी के अंतिम दशक में था जब मार्को पोलो पूर्वी तट पर आया था।

रूपमती

मालवा के बाज बहादुर की पत्नी, भारतीय-इस्लामी परंपरा में उनका प्यार काफी महत्त्व रखता है। इन दोनों के लिये बने दो खूबसूरत महल आज भी मांडू में अवस्थित हैं।

सलीमा बेगम

बाबर की बेटी की बेटी तथा अकबर की फुफेरी बहन। पहले इसका विवाह बैरम खान से हुआ था। बैरम खान के पतन तथा मृत्यु के बाद अकबर ने इससे विवाह कर लिया।

सांगा, राणा

मेवाङ का शासक (1509-29) तथा रायमल्ल का पुत्र। यह समकालीन भारत का महानतम योद्धा था। बाबर से तैमूर की तरह व्यवहार करने की अपेक्षा में इसने बाबर को आमंत्रित किया, पर उसकी गणना सही साबित नहीं हुई। अतः उसके नेतृत्व में राजपूत बाबर की सेना के समक्ष खानवा के युद्ध (1527) में मिले, पर संख्या में अधिक होने के बावजूद बुरी तरह परास्त हो गए। कुछ मामूली चोटों के साथ सांगा बच निकला। पर बताया जाता है कि दूसरी बार बाबर से युद्ध करने की इच्छा के कारण इसे इसके सरदारों ने मार दिया।

शम्स-ए-सिराज अफीक

फिरोजशाह तुगलक के काल का प्रसिद्ध इतिहासकार एवं अधिकारी। ये तारीखे फिरोजशाही का लेखक था।

सिन्हा, सर सत्येन्द्र प्रसन्ना

बंगाल में जन्में तथा पेशे से वकील, ये अंग्रेजों द्वारा गवर्नर (1920 से 1924 तक बिहार एवं उङीसा के) नियुक्त होने वाले प्रथम भारतीय थे। ये वायसराय की कार्यकारी परिषद (1909) में भी नियुक्त तथा पीयर का दर्जा प्राप्त करने वाले प्रथम भारतीय थे। राजनीति में काफी देर से आए तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बाम्बे अधिवेशन (1915) के अध्यक्ष थे।

टैगोर, द्वारकानाथ

कलकत्ता में जोरासांको के प्रसिद्ध टैगोर परिवार के संस्थापक। व्यवसाय में इन्होंने काफी धन कमाया तथा यूनियन बैंक की स्थापना की जो बैंकिग क्षेत्र में बंगाल का पहला कदम था। इन्होंने समकालीन उदारवादी आंदोलन को समर्थन प्रदान किया। ये ब्रह्म समाज के प्रारंभिक समर्थकों में से एक थे।

टैगोर, सत्येन्द्रनाथ

आई.सी.एस. परीक्षा पास करने वाले प्रथम भारतीय (1864), देवेन्द्र नाथ टैगोर के द्वितीय पुत्र तथा रवीन्द्रनाथ टैगोर के बङे भाई थे।

तानसेन

प्रसिद्ध संगीतकार, इन्हें अकबर ने संरक्षण प्रदान किया। मुगल दरबार में इनका आगमन ऐसी महत्त्वपूर्ण घटना थी कि अकबर ने 1562 में इनकी स्मृति में रंगीन चित्र बनवाया। इसके पहले उनके संरक्षण ग्वालियर के मान सिंह (तोमर वंश)थे।

तीवर

ये अशोक की दूसरी रानी, कारूवाकी, से उत्पन्न पुत्रों में से एक थे। इनका उल्लेख अशोक अभिलेखों में से एक में हुआ है, पर और कुछ ज्ञात नहीं है।

तुघ्रील खान

तुर्की अभिजात। बलबन ने इसे बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया था। इसने 1278 में विद्रोह कर दिया, पर तीन वर्षों के एक अभियान के बाद सुल्तान द्वारा इस विद्रोह को दबा दिया गया तथा इसकी हत्या कर दी गयी।

तुस्सप

अशोक के शासनकाल में गुजरात अथवा काठियावाङ का गवर्नर, मौर्य सेवा में यह एक फारसी व्यक्ति था। चंद्रगुप्त मौर्य के काल में निर्मित प्रसिद्ध सुदर्शन झील में निकास नालियां बनवाने का श्रेय इसे प्राप्त है।

उदयसिंह, राणा

मेवाङ का शासक। यह राणा सांगा का पुत्र तथा उत्तराधिकारी एवं राणा प्रताप का पिता था। जब इसकी राजधानी, चित्तौङ पर अकबर का अधिकार हो गया तो उसने उदयपुर ने नई राजधानी का निर्माण किया।

अम्दूत-उल-उमरा

कर्नाटक का नवाब, जिसकी 1801 में मृत्यु के बाद लॉर्ड वेलेसली ने कर्नाटक का प्रशासन अपने हाथों में इस आधार पर ले लिया कि अम्दूत का टीपू के साथ षडयंत्रकारी पत्र व्यवहार का संपर्क था।

उपगुप्त

प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु जिसने अशोक को बौद्ध बनाया। यह अशोक के साथ बौद्ध धर्म से संबंध महत्त्वपूर्ण पवित्र स्थानों के दौरे पर गया। अशोक को बुद्ध का जन्म स्थान दिखाया जहां पर अशोक ने रुम्मिनदेई स्तंभ अभिलेख स्थापित करवाया। समकालीन बौद्ध ग्रंथों में इसे मोगलिपुत्त तिस्स के नाम से भी संबोधित किया गया है।

उस्ताद ईसा

यह संभवतः ताज का डिजाइन निर्माता था तथा ताज का निर्माण उसकी देखरेख में हुआ था।

विज्ञेश्वर (विज्ञानेश्वर)

प्रसिद्ध हिन्दू विधि निर्माता। यह कल्याणी के चालुक्य राजा विक्रमांक (1076-1126) के काल का था। हिन्दू उत्तराधिकार के नियमों पर उसका ग्रंथ, मिताक्षर, अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

विष्णुवर्धन (बिट्टी देव)

द्वारसमुद्र का होयसल राजा (1110-41)। इसका शासनकाल धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व का है। मूलतः यह जैन था लेकिन रामानुज के संपर्क में आने से वैष्णव हो गया। अपने धर्म परिवर्तन के बाद इसने अपना नाम बिट्टीदेव से बदलकर विष्णुवर्धन कर लिया। अपने नए धर्म के विकास के लिये इसने कई विशाल मंदिर बनवाए तथा उनमें से कुछ आज भी बेलूर एवं हलेबिड में विद्यमान हैं। इनमें से हलेबिड का होयसालेश्वर मंदिर सर्वोत्तम उदाहरण है।

विश्वास राव

पेशवा बालाजी राव का पुत्र तथा भविष्य का उत्तराधिकारी । यह पानीपत के तृतीय युद्ध में अहमदशाह अब्दाली की सेना से पराजित होने वाली मराठा सेना का नाममात्र का प्रमुख था। इसके चाचा (सदाशिव राव भाओ), जो सेना का वास्तविक सेनापति था, के साथ इसकी हत्या इस युद्ध में हो गई।

वेडरबर्न, सर विलियम

विशिष्ट अंग्रेज आई. सी. एस. अधिकारी, सेवानिवृत्त होने के बाद इसने कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय भाग लिया। इसने कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में भाग लिया तथा 1899 एवं 1910 के कांग्रेस अधिवेशनों का अध्यक्ष बना।

याज्ञवल्क्य

प्रसिद्ध प्राचीन हिन्दू दार्शनि तथा ऋषि। परंपरा के अनुसार ये मिथिला के प्रसिद्ध दार्शनिक राजा जनक से संबद्ध है।

यशोमति

थानेश्वर के पुष्यभूति शासक प्रभाकरवर्धन की रानी तथा हर्ष की मां। बाण के हर्षचरित के अुसार अपने पति की मृत्यु के बाद ये सती हो गयी।

यूल, जार्ज

विरले गैर-आधिकारिक अंग्रेज व्यवसायियों में से एक जिसकी भारतीयों की राजनैतिक आकांक्षाओं के प्रति सहानुभूति थी। इसने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का समर्थन किया तथा 1888 में आयोजित इलाहाबाद के चौथे अधिवेशन में कांग्रेस का अध्यक्ष बना।

जैनुल अबिदिन

काश्मीर का आठवां सुल्तान (1420-60)। ये धार्मिक सहिष्णुता तथा साहित्य के संरक्षण के लिये प्रसिद्ध हैं। इन्होंने महाभारत तथा राजतंरिणी का अनुवाद फारसी में करवाया।

जेबुन्निसा

औरंगजेब की बेटियों में से एक। ये एक अत्यंत प्रतिभाशाली महिला थी, फारसी तथा अरबी की ज्ञाता तथा विशेषज्ञ सुलेखकार थी जिसका अपना पुस्तकालय था।

References :
1. पुस्तक- भारत का इतिहास, लेखक- के.कृष्ण रेड्डी

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