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राजपूतों के प्रमुख राजवंश – गुर्जर-प्रतिहार वंश के इतिहास के साधन, उत्पत्ति

अग्निकुल के राजपूतों में सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रतिहारवंश था, जो गुर्जरों की शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में गुर्जर-प्रतिहार कहा जाता है। इस वंश की प्राचीनता 5वी.शता. तक जाती है। पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल लेख में गुर्जर जाति का उल्लेख सर्वप्रथम हुआ है। बाण के हर्षचरित में भी गुर्जरों का उल्लेख किया गया है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने कु-चे-लो (गुर्जर) देश का उल्लेख किया है, जिसकी राजधानी पि-मो-ली अर्थात् भीनमाल में थी।

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इतिहास के साधन

गुर्जर-प्रतिहार वंश के इतिहास के प्रामाणिक साधन उसके अभिलेख हैं। इनमें सर्वाधिक उल्लेखनीय मिहिरभोज का ग्वालियर अभिलेख है, जो एक प्रशस्ति के रूप में है। इसमें कोई तिथि अंकित नहीं है। यह प्रतिहारवंश के शासकों की राजनैतिक उपलब्धियों तथा उनकी वंशावली को जानने का मुख्य साधन है। इसके अलावा इस वंश के राजाओं के अन्य अनेक लेख मिलते हैं, जो न्यूनाधिक रूप में उनके काल की घटनाओं पर प्रकाश डालते हैं। प्रतिहारों के समकालीन पाल तथा राष्ट्रकूटों के लेखों से प्रतिहार शासकों का उनके साथ संबंधों का पता चलता है। उनके सामंतों के लेख भी मिलते हैं, जो उनके साम्राज्य-विस्तार तथा शासन-संबंधी घटनाओं पर प्रकाश डालते हैं।

संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान राजशेखर प्रतिहार राजाओं – महेन्द्रपाल प्रथम तथा उसके पुत्र महीपाल प्रथम के दरबार में रहा था। उसने काव्यमीमांसा, कर्पूरंजरी, विद्धशालभंजिका, बालरामायण, भुवनकोश आदि ग्रंथों की रचना की थी। इन सभी रचनाओं के अध्ययन से तत्कालीन समाज एवं संस्कृति का पता चलता है।

जयानक कवि द्वारा रचित पृथ्वीराजविजय से पता चलता है, कि चाहमान शासक दुर्लभराज प्रतिहार वत्सराज का सामंत था। तथा उसकी ओर से पालों के विरुद्ध संघर्ष किया था। जैन लेखक चंद्रप्रभसूरि के ग्रंथ प्रभावकप्रशस्ति से नागभट्ट द्वितीय के विषय में सूचनायें प्राप्त होती हैं। कश्मीरी कवि कल्हण की राजतरंगिणी से मिहिरभोज की उपलब्धियों का पता चलता है।

समकालीन अरब लेखकों के विवरण से भी प्रतिहार इतिहास के बारे में पता चलता है। जैसे कि सुलेमान एक अरब यात्री था, जो गुर्जर प्रतिहार शासक मिहिरभोज के समय में भारत आया था तथा इसने मिहिरभोज की शक्ति एवं उसके राज्य की समृद्धि की प्रशंसा की है।

अरब यात्री अलमसूदी 10 वी. शता. में प्रारंभ में पंजाब में आया था। अलमसूदी ने महीपाल प्रथम के विषय में सूचनायें हम लोगों को प्रदान की हैं।

प्रतिहार शासकों की उत्पत्ति

विभिन्न राजपूत वंशों की उत्पत्ति के समान गुर्जर-प्रतिहार वंश की उत्पत्ति भी विवादग्रस्त है। राजपूतों की उत्पत्ति के विदेशी मत के समर्थन में विद्वानों ने उसे खजर नामक जाति की संतान कहा है, जो हूणों के साथ भारत में आई थी। इस मत का समर्थन सर्वप्रथम कैपबेल तथा जैक्सन ने किया और बाद में भंडारकर और त्रिपाठी ने भी किया।

सी.वी.वैद्य, जी.एस.ओझा, दशरथ आदि विद्वान गुर्जर प्रतिहारों को भारतीय मानते हैं। वे इस शब्द का अर्थ गुर्जरदेश का प्रतिहार अर्थात् शासक लगाते हैं।

तैत्तिरीय ब्राह्मण में प्रतिहारी नामक वैदिक याजकों का उल्लेख मिलता है।लगता है उन्होंने बाद में अपने कर्मों को छोङकर क्षत्रियों की वृत्ति अपना ली तथा अपने राम के भाई लक्ष्मण से संबद्ध कर लिया।

गुर्जर-प्रतिहारों ने 8 वी. शता. से लेकर 11वी. शता. के प्रारंभ तक शासन किया। ग्वालियर अभिलेख में इस वंश के शासक राम के भाई लक्ष्मण, जो उनके प्रतिहार (द्वारपाल) थे, का वंशज होने का दावा करते हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार इस वंश का आदि शासक राष्ट्रकूट राजाओं के यहाँ प्रतिहार के पद पर काम करता था, अतः इन्हें प्रतिहार कहा गया। गुर्जर-प्रतिहारों का मूल स्थान निश्चित रूप से पता नहीं है। स्मिथ, ह्वेनसांग के आधार पर उनका आदि स्थान आबू पर्वत के उत्तर-पश्चिम में स्थित भीनमाल है। कई अन्य विद्वानों के अनुसार इनका मूल निवास स्थान उज्जयिनी (अवंति ) में था।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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