इतिहासप्राचीन भारतवर्द्धन वंशहर्षवर्धन

हर्षचरित की रचना किसने की थी

हर्ष के राज्य के इतिहास की जानकारी देने वाला ग्रंथ हर्षचरित बाणभट्ट द्वारा रचित है। बाणभट्ट ब्राह्मण और हर्ष का दरबारी कवि था। हर्षचरित में हर्ष के राज्य के इतिहास के बारे में बताया गया है। हर्ष के बारे में जानकारी देने के साथ-2 यह ग्रंथ वर्द्धन वंश के इतिहास के बारे में भी बताता है।

इस ग्रंथ के द्वारा ऐतिहासिक विषय पर गद्यकाव्य लिखने का पहली बार प्रयास किया गया। यह एक आख्यायिका है, जिसमें लेखक अपने समकालीन शासक तथा उसके पूर्वजों के जीवनवृत का वर्णन प्रस्तुत करता है।

हर्षचरित में 8 अध्याय अथवा खंड हैं। इन्हें उच्छवास कहा जाता है।

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हर्षचरित के 8 उच्छवासों का विवरण निम्नलिखित है

  • हर्षचरित के प्रथम तीन अध्यायों में बाण ने अपनी आत्मकथा लिखी है।
  • पहले अध्याय का कोई ऐतिहासिक महत्त्व नहीं है।इसमें स्वयं (बाणभट्ट) के जीवन और परिवार से संबंधित जानकारी मिलती है। दूसरे अध्याय में उसने अपने वात्स्यायन गोत्रीय प्रीतिकूट नामक ग्राम में निवास करने वाले भृगुवंश तथा अपने बचपन का उल्लेख किया है। इसी में वह हर्ष के संपर्क में आने का विवरण देता है।
  • तीसरे उच्छवास में श्रीकंठ जनपद तथा स्थाणीश्वर का वर्णन करते हुए वह पुष्यभूति तथा भैरवाचार्य नामक शैव आचार्य के आपसी संबंधों के विषय में बताता है।
  • चौथे उच्छवास में प्रभाकरवर्द्धन संबंधी उल्लेख है, जहाँ राज्यवर्धन, हर्षवर्धन, राज्यश्री के जन्म, बचपन एवं कन्नौज के राजा ग्रहवर्मा के साथ राज्यश्री के विवाह जैसी घटनाओं का वर्णन किया गया है।
  • पाँचवे उच्छवास में सीमाप्रांत पर हूणों के उपद्रव, उन्हें दबाने के लिये राज्यवर्धन को भेजने, प्रभाकरवर्धन की बीमारी तथा मृत्यु का वर्णन किया गया है।
  • 6वें उच्छवास में शोकग्रस्त राज्यवर्धन द्वारा संयास ग्रहण करने की इच्छा, ग्रहवर्मा की हत्या का समाचार, उसके बाद राज्यवर्धन द्वारा शस्त्र गृहण कर मालवराज के विरुद्ध अभियान, मालवराज की पराजय, दुष्ट शशांक द्वारा छलपूर्वक राज्यवर्धन की हत्या का वर्णन है।इन सब घटनाओं के अलावा हर्ष की समस्त शत्रुओं से बदला लेने तथा पृथ्वी को गौङ विहीन कर देने की प्रतिज्ञा का भी विवरण है।
  • 7वें उच्छवास में हर्ष के सैन्याभियान, कामरूप के राजा भास्करवर्मन के राजदूत हंसवेग द्वारा प्रेषित मैत्री प्रस्ताव स्वीकार किये जाने का विवरण है।
  • 8वें तथा अंतिम उच्छवास में राज्यश्री की खोज तथा प्राप्ति, दिवाकरमित्र से मिलन तथा राज्यश्री को साथ लेकर सैन्य शिविर में वापस आने का वर्णन किया गया है। इसी के साथ हर्षचरित का विवरण समाप्त हो जाता है।

यह ग्रंथ हर्ष के शासन काल का एक सजीव तथा समकालीन चित्र प्रस्तुत करता है। हर्षकालीन भारत की राजनीति एवं संस्कृति के ऊपर भी हर्षचरित से प्रकाश पङता है।

हर्षचरित के अध्ययन से हर्ष के समय के लोगों के धार्मिक, आर्थिक तथा राजनीतिक जीवन का पता चलता है। यह ठीक है, कि कहीं-2 अपने स्वामी की प्रशंसा में बाण ने अतिश्योक्ति कर दी है। किन्तु इससे इंकार नहीं किया जा सकता की यह पुस्तक लाभदायक जानकारी प्रदान करती है।

कॉवेल एण्ड थॉमस ने हर्षचरित का अंग्रेजी में अनुवाद किया है। इसने लिखा है, कि दरबार, शिविर, शांत ग्राम और उससे भी अधिक शांत विहार तथा आश्रम, ब्राह्मणों के या बौद्धों के, सभी को एक ही रंग में चित्रित किया गया है, और उसकी (बाण की) कृति चीनी यात्री के विवरण की प्रत्येक चरण पर पुष्टि और पूर्ति करती है। यह पुस्तक प्रत्येक प्रकार के संस्कृत ज्ञान से परिपूर्ण है।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
2. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास, लेखक-  वी.डी.महाजन 

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