इतिहासराजस्थान का इतिहास

अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की स्थापना

अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद – राजस्थान में विभिन्न संगठनों द्वारा राजनैतिक चेतना विकसित करने का कार्य किया गया। इस प्रकार के संगठन भारत के अन्य देशी राज्यों में भी सक्रिय थे। इन संगठनों के कार्यकर्ता आपस में मिलते रहते थे तथा ब्रिटिश प्रान्तों के काँग्रेसी कार्यकत्ताओं से भी विचार-विमर्श होता रहता था। किन्तु देशी राज्य के कार्यकर्ताओं का कोई केन्द्रीय संगठन नहीं था, जबकि विभिन्न देशी राज्यों की समस्याएँ लगभग समान थी। अतः देशी राज्यों की जनता को एक सूत्र में बाँधने की दृष्टि से एक केन्द्रीय संगठन की आवश्यकता अनुभव की गयी। इधर अखिल भारतीय स्तर पर स्थिति तेजी से बदल रही थी। भारतीय शासकों के संगठन चेम्बर ऑफ प्रिन्सेज में शासक अपने समान, प्रतिष्ठा और अधिकारों के प्रश्न पर विचार-विमर्श कर बटलर समिति नियुक्त करवाने में सफल हो गये थे। इस समिति को शासकों के अधिकारों और राज्यों की आर्थिक सुविधाओं के संबंध में अपनी रिपोर्ट देनी थी। इसी समय साइमन कमीशन की नियुक्ति हुई जिसे भारत में भावी संवैधानिक प्रगति पर अपनी रिपोर्ट देनी थी। इन घटनाओं ने भी भारतीय देशी राज्यों के कार्यकर्त्ताओं को प्रेरणा दी।

अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद

मार्च, 1920 ई. में राजपूताना-मध्य भारत सभा ने अपने अजमेर अधिवेशन में देशी राज्यों की एक परिषद बनाने का निश्चय किया। 27 दिसंबर, 1920 को इस सभा के तत्वावधान में नागपुर में एक सभा का आयोजन किया गया जिसमें कहा गया कि अलग-अलग देशी राज्यों के संगठनों की बात को काँग्रेस महत्त्व नहीं दे रही है, लेकिन यदि सभी देशी राज्यों का एक संगठन होगा तो काँग्रेस को उसकी आवाज सुननी पङेगी। 1922 ई. में देशी राज्यों के कुछ प्रतिनिधि पूना में मिले तथा देशी राज्यों की एक केन्द्रीय संस्था की स्थापना पर विचार किया और देशी राज्यों के प्रतिनिधियों का एक व्यापक अधिवेशन बुलाने का निश्चय किया। फिर भी चार वर्ष तक इस दिशा में कोई कार्य नहीं हो सका। 1926 ई. में देशी राज्यों के प्रतिनिधियों ने एक अस्थायी समिति बनायी, जिसने केन्द्रीय संगठन की स्थापना संबंधी विषयों पर विचार किया। अप्रैल, 1927 ई. में देशी राज्यों के कार्यकर्त्ताओं की एक बैठक पूना में हुई जिसमें मई, 1927 में अखिल देशी राज्य लोक परिषद का पहला अधिवेशन बुलाना तय किया। किन्तु गुजरात में आयी भयंकर बाढ के कारण इसका प्रथम अधिवेशन 17-18 दिसंबर, 1927 को बंबई में हुआ, जिसमें 70 राज्यों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस संस्था का मुख्यालय बंबई में रखना तय किया गया। इसका मुख्य लक्ष्य देशी राज्यों में शासकों के तत्वावधान में उत्तरदायी शासन की स्थापना था। इसने जनता के मौलिक अधिकारों और राज्यों की जनता के लिये एक स्वतंत्र न्यायालय की स्थापना की माँग प्रस्तुत की। इस संस्था की कार्यकारिणी में राजस्थान से निम्नलिखित सदस्य थे – कन्हैयालाल कलंत्री (जोधपुर), रामदेव पोद्दार तथा बालकिशन पोद्दार (बीकानेर), त्रिलोक चंद माथुर (करौली)। विजयसिंह पथिक को उपाध्यक्ष और रामनारायण चौधरी को राजस्थान और मध्य भारत के लिये प्रान्तीय सचिव बनाया गया। इस अधिवेशन के दस दिन बाद ही मद्रास में दक्षिण भारतीय राज्यों के प्रतिनिधियों की एक अलग ऑल इंडिया स्टेट्स सब्जेक्ट कॉन्फ्रेंस स्थापित की गयी।

देशी राज्य लोक परिषद चाहती थी कि राज्यों के अधिकारियों द्वारा निर्णय करते समय जन प्रतिनिधियों को भी अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाय। वह बटलर समिति के समक्ष जनता का पक्ष रखना चाहती थी। किन्तु ब्रिटिश सरकार को अखिल भारतीय परिप्रेक्ष्य में चेम्बर ऑफ प्रिन्सेज के सहयोग की आवश्यकता थी अतः ब्रिटिश सरकार ने जन प्रतिनिधियों को बटलर समिति के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं दी। विभिन्न स्थानों पर राज्य के आंतरिक प्रशासन में सुधार की माँग जोर पकङने लगी। देशी राज्य लोक परिषद के नेता चाहते थे कि भारत के संघीय संविधान के प्रारूप के साथ-साथ राज्यों के आंतरिक प्रशासन में सुधार का प्रश्न भी हल कर दिया जाय। ये नेता काँग्रेस के साथ मिलकर कार्य करने की सोच रहे थे।

यद्यपि ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के लिये ब्रिटिश शासन के सुदृढ स्तंभों को ध्वस्त करना आवश्यक था, लेकिन काँग्रेस ने दीर्घकाल तक अपनी गतिविधियों को ब्रिटिश भारत तक ही सीमित रखा तथा ब्रिटिश शासन के सुदृढ स्तंभ राजाओं और सामंतों को नाराज करने की हिम्मत नहीं की। अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की स्थापना के बाद स्थिति में मामूली परिवर्तन आया। 1928 ई. के काँग्रेस अधिवेशन में एक प्रस्ताव पास करके भारतीय राज्यों के शासकों से उत्तरदायी शासन स्थापित करने का अनुरोध किया तथा उत्तरदायी शासन के लिये राज्यों की जनता द्वारा किये जा रहे शांतिपूर्ण संघर्ष के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट की। काँग्रेस के संविधान से वह धारा जो देशी रियासतों में हस्तक्षेप के विरुद्ध थी, निकाल दी गयी। यह एक ऐतिहासिक निर्णय था जिससे देशी रियासतों के कार्यकर्त्ताओं को मौलिक अधिकारों तथा लोकतंत्रीय संस्थाओं की स्थापना के लिए संघर्ष करने के लिए नैतिक समर्थन प्राप्त हुआ। इसी वर्ष काँग्रेस ने भाषाई आधार पर कई राज्यों के निर्माण का प्रस्ताव पारित कर ब्रिटिश प्रान्तों के निर्माण को चुनौती दी। इस प्रकार काँग्रेस ने देशी रियासतों की समस्याओं के प्रति उदासीनता को समाप्त करके देशी रियासतों और ब्रिटिश प्रान्तों की प्रशासकीय सीमाओं के बंधन को चुनौती दी।

काँग्रेस द्वारा पारित प्रस्तावों तथा बटलर समिति के उपेक्षापूर्ण रुख के कारण देशी राज्य लोक परिषद ने 1929 ई. में अपने दूसरे अधिवेशन में देशी रियासतों की बाह्य और आंतरिक समस्याओं को हल करके अँग्रेजों को मुख्य बाधा बताया। ब्रिटिश सरकार ने भारतीय शासकों को उनके वंशानुगत अधिकारों की सुरक्षा का जो वचन दिया था, वही उत्तरदायी शासन की स्थापना में बाधक बन चुका था। अतः 1929 ई. के अधिवेशन में पृथक स्वतंत्र न्यायपालिका, शासकों के निजी खर्च को प्रशासनिक खर्च से अलग रखने तथा प्रतिनिधि संस्थाओं की स्थापना पर अधिक बल दिया गया। परिषद ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि देशी रियासतों के प्रतिनिधि संस्थाओं की स्थापना के लिये संघर्ष अँग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष का ही एक भाग है। यद्यपि देशी रियासतों में चल रहे आंदोलनों को शासकों ने बर्बरता एवं निर्ममता-पूर्वक कुचलना आरंभ कर दिया, किन्तु काँग्रेस ने कभी-कभी विरोध प्रदर्शित करने तथा देशी रियासतों के संघर्ष के समर्थन में प्रस्ताव पारित करने के अतिरिक्त कभी सक्रिय सहयोग नहीं दिया। जुलाई, 1936 में काँग्रेस के करांची अधिवेशन (1936 ई.) की अध्यक्षता काँग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. पट्टाभि सीतारमैया ने की। तत्पश्चात् उन्ही की अध्यक्षता में देशी रियासतों के कार्यकर्त्ताओं का एक सम्मेलन 1938 ई. में नवसारी में हुआ, जिसमें काँग्रेस से अनुरोध किया गया कि वह उनकी समस्याओं पर नये सिरे से विचार करे। फलस्वरूप, 1938 ई. में काँग्रेस के हिरपुरा अधिवेशन में भारतीय राज्यों के संबंध में एक विस्तृत प्रस्ताव पारित किया। इस प्रस्ताव में पहली बार भारतीय राज्यों को भारत का अभिन्न अंग घोषित किया। काँग्रेस ने भारतीय राज्यों में उत्तरदायी शासन तथा नागरिक अधिकारों की पूर्ण सुरक्षा के अपने लक्ष्य को भी स्पष्ट किया। इस प्रकार देशी राज्य लोक परिषद और काँग्रेस के बीच समन्वय स्थापित हुआ। काँग्रेस भारतीय राज्यों के मामलों में अधिकाधिक रुचि लेने, लगी जिससे दोनों संस्थाओं में समन्वय बढता ही गया। यहाँ तक कि 1948 ई. में देशी राज्य लोक परिषद ने अपने-आपको काँग्रेस में विलय कर लिया।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास


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