इतिहासप्राचीन भारतवर्द्धन वंशहर्षवर्धन

पुलकेशिन द्वितीय तथा हर्ष के मध्य युद्ध का विवरण

पुलकेशिन द्वितीय चालुक्य वंश का शक्तिशाली राजा था। हुएनसांग उसकी शक्ति एवं प्रभाव की प्रशंसा करता है। हर्ष की विजयों के परिणामस्वरूप उसके राज्य की पश्चिमी सीमा नर्मदा नदी तक पहुँच गयी। उधर पुलकेशिन द्वितीय भी उत्तर की ओर राज्य का विस्तार करना चाहता था। ऐसी स्थिति में दोनों के बीच युद्ध होना अवश्यंभावी हो गया। जिसके परिणामस्वरूप हर्ष और पुलकेशिन द्वितीय के बीच नर्मदा नदी के तट पर युद्ध हुआ, जिसमें हर्ष की पराजय हुई।

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हर्षवर्धन द्वारा किये गये युद्ध तथा विजयें

पुलकेशिन तथा हर्षवर्धन दोनों के बीच हुए युद्ध से संबंधित महत्त्वपूर्ण दो प्रमाण मिलते हैं-

  • पुलकेशिन द्वितीय का एहोल अभिलेख जिसके अनुसार अपार ऐश्वर्य द्वारा पालित सामंतों की मुकुट की आभा से आच्छादित हो रहे थे। चरण कमल जिसके, युद्ध में हाथियों की सेना के मारे जाने के कारण जो भयानक दिखाई दे रहा था। ऐसे हर्ष के आनंद को उसने (पुलकेशिन) भय से विगलित कर दिया।
  • ह्वेनसांग का यात्रा विवरण सी-यू-की के अनुसार अपने राज्यारोहण के बाद लगातार 6 वर्षों तक हर्ष ने अनेक युद्ध किये। उसने कई शक्तियों को पराजित किया। परंतु मो-हो-ल-च-अ अर्थात् महाराष्ट्र का शासक बङा वीर और स्वाभिमानी था। उसने हर्ष की अधीनता नहीं मानी। यहाँ चीनी यात्री ने जिस राजा का उल्लेख किया है, उससे पता चलता है, कि पुलकेशिन द्वितीय ही वह राजा है।

वर्धन वंश (पुष्यभूतिवंश) की जानकारी के स्रोत

कई विद्वान ऐसे हैं जो हर्ष की पराजय स्वीकार नहीं करते उनका कहना है, कि एहोल का अभिलेख का रचयिता रविकीर्ति का विवरण एकांगी है। हुएनसांग के कथन से केवल यही निष्कर्ष निकलता है, कि हर्ष पुलकेशिन को अपने अधीन नहीं कर सका तथा उसने दक्षिण की ओर उसका प्रसार रोक दिया।

सुधाकर चट्टोपाध्याय का विचार है, कि तत्कालीन भारत के इन दो महान राजाओं के बीच होने वाला यह अकेला युद्ध नहीं था। उनके संघर्ष बाद में भी जारी रहे थे। 643 ईस्वी में हर्ष का कोंगोद पर आक्रमण पुलकेशिन के विरुद्ध उसकी एक मोर्चाबंदी थी। इसे जीतकर हर्ष ने अपनी पुरानी पराजय का बदला चुकाया तथा पुलकेशिन के कुछ प्रदेशों पर अधिकार कर लिया।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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