इतिहासरूसी क्रांतियाँविश्व का इतिहास

1905 की रूसी क्रांति का महत्त्व

1905 की रूसी क्रांति का महत्त्व

1905 की रूसी क्रांति का महत्त्व

वैसे तो 1905 की क्रांति सफल नहीं हो सकी, किन्तु रूस के इतिहास में इस क्रांति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। क्रांतिकारियों के दबाव के कारण जार को संवैधानिक शासन की स्थापना के लिये विवश होना पङा। इस क्रांति के काल में मजदूर संघों को संगठित होने का अवसर प्राप्त हुआ और मजदूरों ने राष्ट्रीय स्तर पर एक महासंघ बनाने का प्रयत्न किया।

सेण्ट पीटर्सबर्ग के मजदूरों ने एक समानान्तर सरकार भी स्थापित करने का प्रयत्न किया। यद्यपि आगे चलकर शासन ने इन सोवियतों को, जो समानान्तर सरकार के रूप में कार्य कर रही थी, समाप्त कर दिया, किन्तु मजदूरों को अब शासन का संचालन करने की अपनी क्षमता पर विश्वास हो गया।

अभी तक रूस के उद्योगपति राजनीतिक गतिविधियों से अलग रह रहे थे, किन्तु अब उन्हें भी राजनीति की ओर ध्यान देना पङा और वे भी संगठित होकर सरकार पर दबाव डालने लगे। इस क्रांति में किसानों ने सक्रिय भाग लिया था, अतः इस क्रांति से किसानों को भी राजनैतिक अनुभव प्राप्त हुआ। यदि 1905 की क्रांति के नेताओं ने मिलकर कार्य किया होता और उनमें आपसी फूट उत्पन्न नहीं होती तो 1917 की क्रांति न होती और जार की निरंकुश सत्ता इसी समय समाप्त हो जाती।

रूस में 1905 की क्रांति का इतिहास

प्रथम ड्यूमा

मार्च, 1906 के निर्वाचन कराए गए। ड्यूमा के चुनाव होने से पूर्व जार ने विटे को त्याग-पत्र देने के लिये विवश किया, क्योंकि वह सुधारों का समर्थक था। विटे के स्थान पर गारेमाइकिन को प्रधानमंत्री बनाया गया। ड्यूमा में आधे से अधिक सदस्य ऐसे चुने गए, जो निरंकुश शासन के विरुद्ध थे।

10 मई, 1906 को ड्यूमा का प्रथम अधिवेशन हुआ। ड्यूमा में संवैधानिक लोकतंत्रीय दल, जिसे केडेट कहा जाता था और जिसका ड्यूमा में बहुमत था, उत्तरदायी शासन स्थापित करना चाहता था जबकि जार और उसके मंत्री ड्यूमा को एक परामर्शदात्री परिषद मानते थे।

प्रथम अधिवेशन में ही माँग की गई कि राजनैतिक बंदियों को रिहा कर दिया जाय, उच्च सदन के अधिकार कम किए जायँ, मृत्यु दंड को समाप्त किया जाय, भूस्वामियों से उनकी भूमि ग्रहण कर भूस्वामियों को मुआवजा दे दिया जाय और वह भूमि किसानों में वितरित कर दी जाय और जार के मंत्री ड्यूमा के प्रति उत्तरदायी हों। जार ने अपने प्रधानमंत्री गारेमाइकिन को इन माँगों का प्रत्युत्तर देने ड्यूमा में भेजा।

उसका प्रत्युत्तर एक प्रकार से ड्यूमा की माँगों की अस्वीकृति थी, अतः ड्यूमा ने मंत्रियों के विरुद्ध निन्दा-प्रस्ताव पास कर दिया किन्तु इसका कोई प्रभाव नहीं पङा। न तो मंत्रिमंडल ने त्याग-पत्र दिया और न सदन को भंग किया गया। तत्पश्चात् मंत्रिमंडल ने सुधार संबंधी कुछ विधेयक ड्यूमा में प्रस्तुत करने की योजना तैयार की, किन्तु इसी समय ड्यूमा के सदस्यों ने भी अपने विधेयक प्रस्तुत करने की सूचना दी।

सरकार द्वारा प्रस्तुत विधेयकों को ड्यूमा अस्वीकृत करती रही और ड्यूमा द्वारा पारित विधेयकों को सम्राट अस्वीकृत करता रहा। अतः ड्यूमा और शासन के बीच दिन प्रतिदिन तनाव बढता गया।

16 जुलाई को ड्यूमा ने मंत्रिमंडल को त्याग-पत्र देने को कहा। अतः सम्राट ने उदारवादियों को प्रसन्न करने के लिये गारेमाइकिन से त्याग-पत्र देने को कहा। अतः सम्राट ने उदारवादियों को प्रसन्न करने के लिये गारेमाइकिन से त्याग-पत्र ले लिया और उसके स्थान पर स्टॉलीपिन को प्रधानमंत्री बनाया। स्टॉलीपिन की सलाह से अचानक 21 जुलाई, 1906 को सम्राट ने ड्यूमा को भंग कर नए चुनाव कराने का आदेश दे दिया। प्रथम ड्यूमा की केवल 40 बैठकें हुई थी।

1905 की रूसी क्रांति का महत्त्व

अचानक ड्यूमा को भंग करने से ड्यूमा के सदस्य क्रोधिक हो उठे। केडेल दल और मजदूर दल के सदस्य फिनलैण्ड पहुँचकर बायबर्ग नामक स्थान पर मिले। यहाँ से उन्होंने एक अपील प्रसारित की, जिसे बायबर्ग अपील कहा गया। इस अपील में ड्यूमा को पुनः बुलाने को कहा गया तथा जनता से कहा गया कि जब तक सरकार ड्यूमा को पुनः प्रतिष्ठित न कर दे, वे सरकार को कोई टैक्स अदा न करें। इस अपील का जनता पर कोई प्रभाव नहीं पङा। इस अपील का इतना परिणाम अवश्य निकला कि जिन व्यक्तियों ने उस अपील पर हस्ताक्षर किए थे, उन्हें ड्यूमा के अगले निर्वाचनों में भाग लेने से अयोग्य करार दे दिया गया। स्टॉलीपिन कठोर एवं दमनकारी नीति द्वारा विरोधियों की शक्ति को नष्ट करने का प्रयास किया।

द्वितीय ड्यूमा

रूस में विरोध और अराजकतापूर्ण वातावरण में फरवरी, 1907 में ड्यूमा के लिये नए चुनाव हुए। शासन ने अपने समर्थकों को निर्वाचित कराने का भरसक प्रयत्न किया, किन्तु उसे सफलता नहीं मिली। यह ड्यूमा के प्रति पहले से भी अधिक शत्रुतापूर्ण सिद्ध हुई। मार्च, 1907 में द्वितीय ड्यूमा का अधिवेशन आरंभ हुआ। ड्यूमा के सदस्यों ने स्टॉलीपिन की भूमि संबंधी नीति की कङी आलोचना की। उसके बाद स्टॉलीपिन ने ड्यूमा के 55 समाजवादी लोकतंत्रीय दल के सदस्यों के विरुद्ध यह आरोप लगाया कि उन्होंने सम्राट निकोलस द्वितीय की हत्या करने का प्रयास किया है और उन्हें ड्यूमा से बहिष्कृत कर दिया जाय। ड्यूमा ने इस पर विचार करने के लिये समिति नियुक्त की, किन्तु इस समिति की रिपोर्ट प्राप्त होने से पहले ही 3 जून, 1907 को सम्राट ने द्वितीय ड्यूमा को भंग कर दिया।

तृतीय ड्यूमा के निर्वाचन से पूर्व स्टॉलीपिन ने निर्वाचन नियमों में भारी परिवर्तन कर उसकी घोषणा कर दी। इन नियमों के अनुसार मताधिकार को संकुचित कर दिया गया, जिससे कि ड्यूमा में केवल उच्च वर्ग के लोग ही निर्वाचित हो सकें। यद्यपि ये कानून, 1906 के मौलिक कानूनों के विरुद्ध थे, किन्तु जार एवं स्टॉलीपिन ने इसकी परवाह नहीं की।

तृतीय ड्यूमा

नए निर्वाचन के अन्तर्गत तृतीय ड्यूमा के निर्वाचन हुए, जिसमें अक्टूबरिस्ट दल को बहुमत प्राप्त हुआ तथा शासन के विरोधियों की संख्या कम हो गयी। शासन एवं ड्यूमा का संघर्ष अब समाप्त हो गया। शासन के समर्थकों का बहुमत होने के कारण मंत्रिमंडल एवं ड्यूमा के सदस्यों ने पारस्परिक सहयोग से कार्य किया। स्टॉलीपिन की पद्धति के अनुसार ड्यूमा ने कृषि में सुधार किया तथा भू-बंदोबस्त किया। ड्यूमा ने उच्च शिक्षा हेतु भी प्रयास किया। ड्यूमा के प्रयत्नों से निरक्षरता धीरे-धीरे समाप्त होने लगी। 1877 में शिक्षितों का प्रतिशत 28 प्रतिशत था, जो 1914 तक 43 प्रतिशत हो गया। तृतीय ड्यूमा 1907 से 1912 तक अपनी पूरी अवधि तक बिना किसी बाधा के कार्य करती रही।

परंतु इस काल में जन असंतोष निरंतर प्रकट हो रहा था। शासकीय अधिकारियों की हत्याएँ, शासकीय अधिकारियों का अपहरण, बैंकों पर डाके और पूँजीपतियों के यहाँ लूटमार जन असंतोष को प्रकट कर रहे थे। प्रधानमंत्री स्टॉलीपिन ने इन आतंकवादियों का निर्दयतापूर्वक दमन किया। आतंकवादियों को शांत करने के बाद राजनैतिक संतुलन की स्थिति उत्पन्न हुई ही थी कि सितंबर, 1911 में स्टॉलीपिन की हत्या कर दी गई। उसके बाद वित्त मंत्री कोकोवत्साव को प्रधानमंत्री बनाया गया।

चतुर्थ ड्यूमा

1912 में चतुर्थ ड्यूमा के चुनाव हुए, जिसमें भी शासन के समर्थकों को बहुमत प्राप्त हुआ। प्रधानमंत्री कोकोवत्साव में दृढता का अभाव था, अतः उसके मंत्री अनियंत्रित हो गए। वे प्रधानमंत्री की जानकारी के बिना ही सीधे सम्राट से मिलकर उससे आदेश प्राप्त करने लगे। इस प्रकार अब मंत्रियों पर न तो ड्यूमा का नियंत्रण रह गया था और न ही प्रधानमंत्री का। इधर देश में अराजकता बढने लगी, विद्यार्थियों का आंदोलन भी प्रबल होने लगा तथा श्रमिकों की हङतालों की संख्या में वृद्धि होने लगी। ऐसी विषम परिस्थितियों में 1914 में विश्व युद्ध आरंभ हो गया और इस विश्व युद्ध के दौरान 1917 में रूस में पुनः क्रांति की ज्वाला प्रज्ज्वलित हो उठी।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
wikipedia : 1905 की रूसी क्रांति

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