प्राचीन भारतइतिहास

पश्चिमी भारत के क्षहरात

पश्चिमी भारत में दो शक वंशों के अस्तित्व के प्रमाण मिलते हैं, जो निम्नलिखित हैं –

  1. महाराष्ट्र का क्षहरात वंश।
  2. कार्दमक (चष्टन) वंश अथवा सुराष्ट्र और मालवा के शक-क्षत्रप।

इन्होंने कुछ समय के लिये महाराष्ट्र का अधिकांश प्रदेश सातवाहनों से छीन लिया था। इनका विवरण इस प्रकार है-

क्षहरात वंश-

इस वंश ने संपूर्ण महाराष्ट्र, लाट तथा सुराष्ट्र प्रदेश पर शासन किया। क्षहरात वंश का पहला राजा भूमक था।उसके सिक्के गुजरात, काठियावाङ तथा मालवा के क्षेत्र से मिलते हैं। सिक्कों पर ब्राह्मी तथा खरोष्ठी लिपियों में लेख लिखे गये हैं। खरोष्ठी लिपि के प्रयोग से ऐसा लगता है, कि पश्चिमी राजपूताना तथा सिंध के कुछ भागों पर भी उसका अधिकार था। भूमक को कोई अभिलेख नहीं मिलता।

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नहपान इस वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक था। इसके सिक्के अजमेर से नासिक तक के क्षेत्र से मिले हैं।ये चाँदी तथा ताँबे के हैं। सिक्के निश्चित मानक के हैं। उसके समय में सोने तथा चाँदी के सिक्के (कार्षापण) की विनिमय दर 1:35 थी। नासिक के एक लेख में 70 हजार कार्षापणों का मूल्य 2000 स्वर्ण मुद्रा में दिया गया है। सिक्कों पर वह राजन् की उपाधि धारण किये हुए है। नहपान के अमात्य अर्यमन् का एक अभिलेख जुन्नार (पूना) से मिलता है।

उसके दामाद ऋषभदत्त (उषावदान) के गुहालेख नासिक तथा कार्ले (पूना) से मिलता है। ऋषभदत्त, नहपान के समय में उसके दक्षिणी प्रांत – गोवरधन (नासिक) तथा मामल्ल (पूना) का वायसराय था। नासिक के एक गुहालेख से ज्ञात होता है, कि जब राजस्थान के उत्तमभद्र जाति के लोग मालियों (मालवों) से घिर गये, तो उनकी रक्षा के लिये ऋषभदत्त वहाँ गया था।

उसने मालवों को बुरी तरह परास्त किया तथा इसके बाद पुष्करतीर्थ में दान दिया। इससे प्रतीत होता है, कि राजपूताना के पुष्करतीर्थ (अजमेर) क्षेत्र पर भी नहपान का प्रभाव था। नासिक तथा पूना जिलों को उसने सातवाहनों से जीता था। इस प्रकार उसका राज्य उत्तर में अजमेर से लेकर दक्षिण में उत्तरी महाराष्ट्र तक विस्तृत थआ। पेरीप्लस के अनुसार उसकी राजधानी मिन्नगर (भङौंच तथा उज्जैन के बीच स्थित ) थी।

नहपान ने लगभग 119 ईस्वी से 125 ईस्वी तक राज्य किया। वह सातवाहन राजा गौतमीपुत्र शातकर्णी द्वारा पराजित हुआ और मार डाला गया। जोगलथंबी से प्राप्त नहपान के बहुसंख्यक सिक्के गौतमीपुत्र शातकर्णी द्वारा पुनरंकित किये गये हैं। इससे ऐसा लगता है कि गौतमीपुत्र ने नहपान के जौगलथंबी स्थित कोषागार पर अधिकार कर लिया।

नहपान की मृत्यु के साथ ही पश्चिमी भारत से क्षहरातों की शक्ति का अंत हो गया।

कार्दमक (चष्टन) वंश-

क्षहरातों के बाद सुराष्ट्र तथा मालवा में शकों के एक दूसरे कुल ने शासन किया। यह नया वंश कार्दमक वंश के नाम से प्रसिद्ध है। पश्चिमी भारत में इस नवीन वंश की सत्ता स्थापित करने वाला पहला शासक चष्टन था। वह यसमोतिक का पुत्र था। चष्टन कुषाणों की अधीनता में पहले सिन्ध क्षेत्र का क्षत्रप था। नहपान की मृत्यु के बाद उसे कुषाण साम्राज्य के दक्षिण -पश्चिमी प्रांत का वायसराय नियुक्त किया गया।

लगता है कि बाद में उसने अपने को स्वतंत्र कर लिया तथा महाक्षत्रप की उपाधि धारण कर ली। वृद्धावस्था में चष्टन ने अपने पुत्र जयदामन् को क्षत्रप नियुक्त किया। इसने सातवाहनों से उज्जयिनी को जीत लिया। चष्टन के जीवन काल में ही जयदामन् की मृत्यु हो गयी और वह स्वतंत्र शासक नहीं हो पाया।

उसके बाद चष्टन ने अपने पौत्र (जयदामन् के पुत्र) रुद्रदामन प्रथम को क्षत्रप नियुक्त किया। अंधौ (कच्छखाङी) अभिलेख से पता चलता है, कि 130 ईस्वी में चष्टन अपने पौत्र रुद्रदामन के साथ मिलकर शासन कर रहा था।

चष्टन का पुत्र जयदामन् कभी महाक्षत्रप नहीं बन सका। मुद्राओं पर उसकी केवल क्षत्रप की है। इस आधार पर बूलर तथा भंडारकर ने यह निष्कर्ष निकाला है कि उसके समय में शकों को सातवाहनों के हाथों पराजय उठानी पङी थी। परंतु इस प्रकार का निष्कर्ष सही नहीं है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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