अशोक के वृहद शिलालेख कौन-कौन से थे
अशोक के चौदह विभिन्न राजाज्ञायें (शासनादेश) हैं, जो आठ भिन्न-2 स्थानों से प्राप्त किये गये हैं।इन 8 जगहों से मिले अभिलेखों की जानकारी का विवरण इस प्रकार है-
शाहवाजगढी वृहद शिलालेख –
आधुनिक पाकिस्तान के पेशावर जिले की युसुफजई तहसील में स्थित है।यह खरोष्ठी लिपि में है। 1836 ई. में जरनल कोर्ट ने इसका पता लगाया था। इसमें 12वें के अलावा अन्य सभी लेख हैं। इस समूह के 12 वें लेख का पता 1889 ई. में सर हेरल्ड डीन ने लगाया था, जो मुख्य अभिलेख से कुछ दूरी पर एक पृथक् शिलाखंड पर खुदा हुआ है। शाहबाजगढी संभवतः अशोक के साम्राज्य में विद्यमान यवन प्रांत की राजधानी थी।
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मनसेहरा वृहद शिलालेख –
पाकिस्तान के हजारा जिले में स्थित है। यहां से प्राप्त तीन शिलाओं में पहली पर प्रथम 8 शिलालेख, दूसरी पर नवें से बारहवां तक तथा तीसरी पर, तेरहवां और चौदहवां लेख उत्कीर्ण है। पहली दो शिलायें जनरल कनिंघम द्वारा खोजी गयीं जबकि तीसरी का पता पंजाब पुरात्त्व विभाग के एक भारतीय अधिकारी ने लगाया था।
यह अभिलेख खरोष्ठी लिपि में लिखा गया है। जो ईरानी अरामेइक से उत्पन्न हुई थी। इन लेखों के अक्षर बङे तथा खुदाई में अधिक सुस्पष्ट हैं।
कालसी वृहद शिलालेख –
उत्तर प्रदेश के देहरादून जिले में स्थित है। 1860 ई. में फोरेस्ट ने इसे खोज निकाला था। यह स्थान यमुना तथा टोंस नदियों के संगम पर स्थित है।यह अभिलेख ब्राह्मी लिपि तथा प्राकृत भाषा में लिखा गया है।
गिरनार वृहद शिलालेख-
गुजरात प्रांत के काठियावाङ में जूनागढ के समीप गिरनार की पहाङी है। यहीं से रुद्रदामन तथा समुद्रगुप्त के लेख भी मिले हैं। 1822 ई. में कर्नल टाड ने इन लेखों का पता लगाया था। अशोक का शिलालेख दो भागों में है, जिनके बीच में ऊपर से नीचे तक एक रेखा खींची हुई है। पहले 5 लेख बायीं और तथा सात दायीं ओर उत्कीर्ण किये गये हैं। तीसरा लेख नीचे है, जिसके दायीं ओर चौदहवां लेख है। गिरनार लेख सबसे सुरक्षित अवस्था में है। यह अभिलेख ब्राह्मी लिपि तथा प्राकृत भाषा में लिखा गया है।
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धौली वृहद शिलालेख-
यह वर्तमान उङीसा प्रांत के पुरी में स्थित है। धौली की तीन छोटी पहाङियों की एक श्रृंखला पर लेख खुदे हैं। जिनका पता 1837 में किटो ने लगाया था। इस अभिलेख पर 11वें से 13वें तक लेख नहीं मिलते तथा उनके स्थान पर दो नये लेख खुदे हुए हैं, जिनमें अंतों (सीमांतवासियों तथा जनपदवासियों) को दिये गये आदेश हैं। इसको पृथक कलिंग प्रज्ञापक कहा जाता है। यह अभिलेख ब्राह्मी लिपि तथा प्राकृत भाषा में लिखा गया है।
यह अभिलेख तोसली (कलिंग की राजधानी) के अधिकारियों को संबोधित किया गया है। उन्हें आदेश दिया गया कि, वह कलिंग की जनता के कल्याण के लिए उसी प्रकार कार्य करें, जिस प्रकार अन्य मौर्य क्षेत्र की जनता के लिये करते हैं। क्योंकि “सारी प्रजा मेरी संतान है।”
जौगढ वृहद शिलालेख-
जौगढ वृहद शिलालेख उङीसा के गंजाम जिले में स्थित है।जौगढ के लेख तीन शिलाखंडों पर खुदे हुए हैं, जिनका पता 1850 में वाल्टर इलियट को चला था। इस शिलालेख में 11वें से 13वें तक लेख नहीं मिलते हैं। तथा उनके स्थान पर दो नये लेख खुदे हुए हैं, जिनमें अंतों (सीमावंतवासियों तथा जनपदवासियों) को दिये गये आदेश हैं। यही कारण है कि इसे पृथक कलिंग प्रज्ञापन कहा जाता है। इसमें अन्य बातों के अलावा कलिंग राज्य के प्रति अशोक की शासन नीति के विषय में बताया गया है। वह कलिंग के नगर व्यवहारिकों को न्याय के मामले में उदार तथा निष्पक्ष होने का आदेश देता है।
शासन में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए अधिकारियों के स्थानांन्तरण की बात कही गई है। जनता में धम्म प्रचार करने की बात की गई है, क्योंकि “सारी प्रजा मेरी संतान है।”
एर्रगुढि वृहद शिलालेख-
यह शिलालेख आंध्र प्रदेश के कर्नूल जिले में स्थित है। यहाँ पत्थरों के छः टीलों पर अशोक के शिलालेख एवं लघु शिलालेख उत्कीर्ण हैं। इनका पता 1929 ई. में भूतत्विद अनुघोष ने लगाया था। एरेगुडि लेख में लिपि की दिशा दायें से बायें मिलती है, जबकि अन्य सभी में यह बायें से दायें है।
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सोपारा वृहद शिलालेख-
सोपारा महाराष्ट्र के थाना जिले में स्थित एक खंडित शिला पर 8वें शिलालेख के कुछ भाग उत्कीर्ण हैं। अनुमान किया जाता है, कि पहले यहां सभी चौदह लेख विद्यमान रहे होंगे।
सन्नति वृहद शिलालेख –
यह अभिलेख कर्नाटक में स्थित हैं, जो सबसे नया शिलालेख है।
Reference : https://www.indiaolddays.com/