राजशेखर कन्नौज के प्रतिहार वंशी राजाओं महेन्द्रपाल (890-908ई.) तथा उसके पुत्र महीपाल (910-940ई.) की राजसभा में निवास करते थे। वे संस्कृत के प्रसिद्ध कवि तथा नाटककार हैं।
राजशेखर ने पाँच ग्रंथों की रचना की थी। इनमें चार नाटक तथा एक अलंकारशास्त्र का ग्रंथ है। इनका विवरण इस प्रकार है –
बाल रामायण
इसमें दस अंक हैं, जिनमें सीता स्वयंवर से लेकर अयोध्या लौटने तक की रामकथा का नाटकीय वर्णन प्रस्तुत किया गया है।
बाल भारत (प्रचंड पाण्डव)
इस नाटक के मात्र दो अंक ही प्राप्त होते हैं। यह महाभारत की कथानक पर आधारित है। द्रौपदी स्वयंवर, कौरव-पांडवों की द्यूतक्रीङा तथा द्रौपदी के चीरहरण की घटनाओं का वर्णन मिलता है।
विद्धशालभञ्जिका
यह चार अंकों का नाटक है, जिसमें विद्याधरमल्ल नामक राजकुमार तथा मृगांकावली एवं कुवलयमाला नामक राजकुमारियों की प्रेम कथा का चित्रण है।
कर्पूरमंजरी
इसमें चार अंक हैं, तथा यह केवल प्राकृत भाषा में रचित होने के कारण राट्टक कहा जाता है। इसमें राजा चंद्रपाल तथा विदर्भ देश की राजकुमारी कर्पूरमंजरी का विवाह सिद्ध योगी भैरवानंद के चमत्कार से संपन्न हुआ दिखाया गयै है। यह राजशेखर की सर्वोत्कृष्ट रचना है। कहा जाता है, कि इसकी रचना राजशेखर ने अपनी पत्नी अवन्तिसुन्दरी के आग्रह पर किया था।
काव्यमीमांसा
यह अलंकार शास्त्र पर लिखा गया एक विशालकाय ग्रंथ था, जिसमें मूलतः 18 अधिकरण थे। किन्तु सम्प्रति उसका केवल पहला अधिकरण ही उपलब्ध है। इसमें कवि ने रस, रीति, अलंकार आदि शास्त्रीय विषयों का समावेश किया है। काव्यशास्त्र के अध्येताओं के निमित्त यह रचना बङी उपादेय है। क्षेमेन्द्र, भोज, हेमचंद्र आदि काव्यशास्त्रियों ने मान्यताओं का अनुकरण किया है।
राजशेखर नाटककार कम, कवि अधिक हैं। उनके ग्रंथों में काव्यात्मकता अधिक है। वे शब्दकवि थे। भवभूति के समान राजशेखर के शब्दों में अर्थ की प्रतिध्वनि निकलती है। लोकोक्तियों तथा मुहावरों का खुलकर प्रयोग उन्होंने किया है। उनका नाटकीय विधान प्रशंसनीय नहीं है। उनके नाटक रंगमंच के उपयुक्त नहीं हैं, अपितु वे पढने में ही विशेष रोचक थे।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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