प्राचीन भारतइतिहासगुप्त कालसमुद्रगुप्त

गुप्त शासक समुद्रगुप्त भारत का नेपोलियन

चंद्रगुप्त प्रथम के बाद उसका सुयोग्य पुत्र समुद्रगुप्त साम्राज्य की गद्दी पर बैठा। वह लिच्छवि राजकुमारी कुमारदेवी से उत्पन्न हुआ था। समुद्रगुप्त न केवल गुप्त वंश के बल्कि संपूर्ण प्राचीन भारतीय इतिहास के महानतम शासकों में गिना जाता है। निःसंदेह उसका काल राजनैतिक तथा सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से गुप्त साम्राज्य के उत्कर्ष का काल माना जा सकता है।

YouTube Video

समुद्रगुप्त के बारे में जानकारी प्रदान कराने वाले साधन निम्नलिखित हैं-

प्रयाग प्रशस्ति

एरण का लेख-

प्रयाग लेख के अलावा मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित एरण नामक स्थान से भी समुद्रगुप्त का एक लेख मिलता है, जो खंडित अवस्था में है। इसमें समुद्रगुप्त को पृथु, राघव आदि राजाओं से बढकर दानी कहा गया है। जो प्रशन्न होने पर कुबेर तथा रूष्ट होने पर यमराज के समान था। अभिलेख में उसकी पत्नी का नाम दत्तदेवी मिलता है तथा उसे अनेक पुत्र-पौत्रों से युक्त बताया गया है। इस लेख से यह भी पता चलता है, कि ऐरिकिण प्रदेश (एरण) उसका भोगनगर था।

अन्य लेख-

गया तथा नालंदा से दो ताम्रलेख प्राप्त हुए हैं, जिनमें क्रमशः गुप्त संवत् 9 तथा 5 की तिथियाँ अंकित हैं। इनमें समुद्रगुप्त का नाम तथा व्याकरण संबंधी अनेक अशुद्धियाँ हैं, और तिथि भी सही नहीं है।

मुद्रायें-

समुद्रगुप्त की विविध प्रकार की मुद्रायें उसके जीवन एवं कार्यों पर प्रकाश डालती हैं। उसकी कुल छः प्रकार की स्वर्ण मुद्रायें हमें प्राप्त होती हैं जो निम्नलिखित हैं –

गरुङ प्रकार –

इसके मुख भाग पर अलंकृत वेष – भूषा में राजा की आकृति, गरुङध्वज, उसका नाम तथा मुद्रालेख सैकङों युद्धों को जीतने तथा रिपुओं का मर्दन करने वाला अजेय राजा स्वर्ग को जीतता है, उत्कीर्ण मिलता है।

धनुर्धारी प्रकार-

इनके मुख भाग पर सम्राट धनुष बाण लिये हुये खङा है तथा मुद्रालेख अजेय राजा पृथ्वी को जीतकर उत्तम कार्यों द्वारा स्वर्ग को जीतता है। यह वाक्य उत्कीर्ण है। पृष्ठ भाग पर सिंहवाहिनी देवी के साथ उसकी उपाधि अप्रतिरथः अंकित है।

परशु प्रकार-

मुख भाग पर बायें हाथ में परशु धारण किये हुए राजा का चित्र तथा मुद्रालेख कृतांत परशु राजा राजाओं का विजेता तथा अजेय है। उत्कीर्ण है। पृष्ठ भाग पर देवी की आकृति तथा उपाधि कृतांत परशु अंकित है।

अश्वमेघ प्रकार-

ये सिक्के समुद्रगुप्त द्वारा अश्वमेघ यज्ञ किये जाने के प्रमाण हैं। इनके मुख भाग पर यज्ञ यूप में बँधे हुये घोङे का चित्र तथा मुद्रालेख राजाधिराज पृथ्वी को जीतकर तथा अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान कर स्वर्गलोग की विजय करता है। उत्कीर्ण है। पृष्ठ भाग पर राजमहिषी (दत्तदेवी) की आकृति के साथ-2 अश्वमेघ पराक्रमः अंकित है।

व्याघ्रहनन प्रकार-

मुख भाग पर धनुष बाण से व्याघ्र का आखेट करते हुये राजा की आकृति तथा उसकी उपाधि व्याघ्रपराक्रमः अंकित है। पृष्ठ भाग पर मकरवाहिनी गंगा की आकृति के साथ-2 राजा समुद्रगुप्तः उत्कीर्ण है। इस प्रकार के सिक्कों से जहाँ एक ओर उसका आखेट-प्रेम सूचित होता है, वहीं दूसरी ओर गंगा-घाटी की विजय का भी पता चलता है।

वीणावादन प्रकार –

मुख भाग पर वीणा बजाते हुये राजा की आकृति तथा मुद्रालेख महाराजाधिराजश्री समुद्रगुप्तः उत्कीर्ण है। पृष्ठ भाग पर हाथ में कार्नकोपिया लिये हुये लक्ष्मी की आकृति अंकित है। इस प्रकार के सिक्कों से उसका संगीत-प्रेम सूचित होता है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

Related Articles

error: Content is protected !!