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हूण नेता मिहिरकुल

तोरमाण का पुत्र तथा उसका उत्तराधिकारी मिहिरकुल अत्यंत क्रूर और अत्याचारी हूण शासक था। उसके शासन के 15वें वर्ष का लेख ग्वालियर से मिलता है। उसके शासन के विषय में चीनी यात्रियों सुंग-युंग और हुएनसांग तथा यूनानी लेखक कास्मस के विवरणों से भी सूचना मिलती है।

सुंग-युन बताता है, कि उसकी राजधानी गंधार में थी और वह बौद्ध धर्म का विरोधी था। ह्वेनसांग मिहिरकुल की राजधानी शाकल बताता है, तथा लिखता है, कि वह भारत के बङे भाग का स्वामी था। उसने पङोसी राजाओं पर विजय प्राप्त की तथा पंचभारत का स्वामी बन गया। जब मगध के शासक बालादित्य ने मिहिरकुल के अत्याचारों के विषय में सुना तो उसने अपने राज्य की सीमाओं की कङी निगरानी रखी तथा उसे कर देना बंद कर दिया।

मिहिरकुल ने बालादित्य पर आक्रमण किया, किन्तु पराजित हुआ और बंदी बना लिया गया। बालादित्य ने अपनी माता के कहने पर मिहिरकुल को छोङ दिया। यहाँ से मिहिरकुल कश्मीर की ओर भाग गया जहाँ के राजा ने उसे शरण दे दी।

लेकिन मिहिरकुल ने कश्मीर के राजा की हत्या कर दी। तथा स्वयं कश्मीर का शासक बन बैठा। उसके बाद गांधार के राजा की भी उसने हत्या कर दी। तथा 1600 स्तूपों एवं संघारामों को नष्ट करवा दिया। इसके एक वर्ष के भीतर ही उसकी मृत्यु हो गयी।

स्तूप किसे कहते हैं

ह्वेनसांग जिस बालादित्य की चर्चा करता है उसकी पहचान नरसिंहगुप्त बालादित्य से होती है।

कास्मस जो 530 ईस्वी में पश्चिमी भारत के बंदरगाहों की यात्रा पर आया था, लिखता है, कि भारत के उत्तर में श्वेत हूणों का राज्य है। उनका राजा गोल्लास है, जो युद्ध में जाते समय दो हजार हाथियों तथा घुङसवारों की बङी सेना ले जाता है। वह भारत का स्वामी है, लोगों को सताते हुए उन्हें कर देने को बाध्य करता है। फिसोन (सिंध) नदी भारत के सभी देशों को हूणों के देश से पृथक करती है।

यहाँ गोल्लास का तात्पर्य मिहिरकुल से ही है। कास्मस यह भी बताता है, कि उसने मध्य भारत के एक नगर का घेरा डाला तथा बाद में उसके ऊपर अपना अधिकार कर लिया। इस नगर से तात्पर्य ग्वालियर से है, जहाँ से मिहिरकुल का लेख मिलता है। इस विवरण से स्पष्ट है, कि मूल हूण-राज्य सिंध के पश्चिम में था, किन्तु बाद में मिहिरकुल ने उत्तरी भारत के एक बङे भाग को जीत लिया।

518 ईस्वी का बेतुल दानपत्र गुप्तों का ही उल्लेख करता है। अतः मिहिरकुल की विजय इस तिथि के बाद ही हुई होगी। कल्हण की राजतरंगिणी में भी मिहिरकुल के अत्याचारों का वर्णन मिलता है।

इस प्रकार विभिन्न स्रोतों से निष्कर्ष निकलता है, कि अपने राज्यारोहण से लेकर 15 वर्षों तक मिहिरकुल ने विभिन्न स्थानों को जीतकर उत्तरी भारत में अपनी प्रभुसत्ता जमा ली। ग्वालियर के लेख में मिहिरकुल को महान पराक्रमी तथा पृथ्वी का स्वामी कहा गया है।

चीनी यात्री हुएनसांग के विवरण तथा मंदसोर लेख के अनुसार मिहिरकुल मगध नरेश बालादित्य तथा मालवनरेश यशोधर्मन द्वारा बुरी तरह से पराजित किया गया। और उत्तरी भारत से भगा दिया गया। लेकिन उसकी यह पराजय निर्णायक नहीं रही। मिहिरकुल शीघ्र ही कश्मीर का राजा बन बैठा और गांधार भी उसने जीत लिया।

6वीं शता. ईस्वी में मालवा के पराक्रमी शासक यशोधर्मन् ने मिहिरकुल को बुरी तरह पराजित किया। मंदसोर से प्राप्त उसके अभिलेख में इस पराजय का विवरण प्रस्तुत किया गया है, जो इस प्रकार है-जिसने भगवान शिव के सिवाय अन्य किसी के सामने मस्तक नहीं झुकाया था, जिसकी भुजाओं से आलिंगित होने के कारण हिमालय व्यर्थ ही दुर्गम होने का अभिमान करता था, ऐसे मिहिरकुल के मस्तक को अपने बाहुबल से यशोधर्मन ने नीचे झुकाकर उसे पीङित कर दिया तथा उसके बालों की जूट में लगे पुष्पों द्वारा अपने दोनों पैरों की पूजा करायी।

मिहिरकुल की पराजय के बारे में अलग-2 साक्ष्यों के अलग-2 मत हैं, जो निम्नलिखित हैं-

मंदसोर लेख में मिहिरकुल को सर्वप्रथम पराजित करने का श्रेय यशोधर्मन को दिया गया है, जो कोरी कल्पना मात्र है। इसके पूर्व मिहिरकुल को सर्वप्रथम पराजित करने का श्रेय बालादित्य को जाता है।

ह्वेनसांग के विवरण से पता चलता है, कि बालादित्य से पराजित होने के बाद ही वह कश्मीर का शासक बना था। बालादित्य से पराजित होने के पूर्व तो वह संपूर्ण उत्तर भारत का शासक था। 532 ईस्वी के मंदसोर के दूसरे अभिलेख से पता चलता है, कि यशोधर्मन ने उत्तर तथा पूर्व के राजाओं को हराकर राजाधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण की थी। यहाँ उत्तर के राजाओं में मिहिरकुल भी रहा होगा। इस प्रकार 530 ईस्वी में मिहिरकुल यशोधर्मन द्वारा पराजित हुआ। यह मिहिरकुल की अंतिम पराजय थी। जिसके परिणामस्वरूप उसकी शक्ति नष्ट हो गयी। इस प्रकार यशोधर्मन ने देश को एक महान विपत्ति से बचा लिया।

हर्नले का विचार है, कि यशोधर्मन बालादित्य का सामंत था तथा हूणों के विरुद्ध अपने सम्राट की ओर से लङा था और बाद में उसने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी।

मिहिरकुल का धर्म

मिहिरकुल शैव धर्मावलंबी था। वह बौद्ध धर्म का घोर दुश्मन था। कल्हण के अनुसार उसने श्रीनगर में शिव का एक मंदिर बनवाया। वह अत्यंत क्रूर तथा रक्तपिपासु शासक था। कल्हण उसकी तुलना विनाश के देवता से करता है। जैन लेखक उसे दुष्टों में प्रथम मानते हैं।

Reference : https://www.indiaolddays.com

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