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गुप्त काल में स्तूप तथा गुहा-स्थापत्य कला

स्तूप का शाब्दिक अर्थ “ढेर” होता है। यह एक गोल टीले के आकार की संरचना है जिसका प्रयोग पवित्र बौद्ध अवशेषों को रखने के लिए किया जाता है। गुप्त काल में ऐसे स्तूपों का विकास काफी किया गया था।

मंदिरों के अलावा दो बौद्ध स्तूपों – सारनाथ का धमेख स्तूप तथा राजगृह स्थित जरासंघ की बैठक का निर्माण गुप्त सम्राटों के काल में ही हुआ माना जाता है।धमेख स्तूप 128 फुट ऊँचा है, जिसका निर्माण बिना किसी चबूतरे के समतल धरातल पर किया गया है। इसके चारों कोनों पर बौद्ध मूर्तियाँ रखने के लिये ताख बनाये गये हैं। स्तूप पर बना लतापत्रक काफी प्रशंसित हुआ है, तथा इस पर बनी हुई ज्यामितीय आकृतियाँ भी उल्लेखनीय हैं।

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सिंध क्षेत्र स्थित मीरपुर खास स्तूप का निर्माण प्रारंभिक गुप्तकाल में करवाया गया था। इसमें तीन छोटे चैत्य बने हैं। केन्द्रीय जैत्य में ईंटों की मेहराब बनाई गयी है। इसकी उत्कीर्ण तथा अलंकृत ईंट एवं मिट्टी की बनी बुद्ध मूर्तियाँ गुप्तकालीन मृदभांड कला की सुंदर उदाहरण हैं। नरसिंह गुप्त बालादित्य ने नालंदा में बुद्ध का एक भव्य मंदिर बनवाया था, जो तीन सौ फीट ऊँचा था। बाद के चीनी यात्रियों ने इसकी प्रशंसा की।

पांचवीं शती के मंदिरों में बोधगया के मंदिर का भी उल्लेख किया जा सकता है। इसके गर्भगृह में बुद्ध की विशाल प्रतिमा भूमि स्पर्श मुद्रा में आसीन है। मुख्य प्रवेशद्वार पूर्व की ओर है। इसके पास सीढियां बनी हैं, जिनसे पहली मंजिल पर पहुँचा जा सकता है। वहाँ एक चौङा खुला स्थान है। मंदिर में कोई वातायन या गवाछ नहीं है। इस प्रकार इसकी योजना अपने आप में विलक्षण है।

गुहा स्थापत्य-

गुहा स्थापत्य का भी विकास गुप्तयुग में हुआ। ये दो प्रकार की हैं – ब्राह्मण तथा बौद्धविदिशा के पास उदयगिरि की कुछ गुफाओं का निर्माण इस युग में करवाया गया है।यहाँ की गुफायें भागवत तथा शैव धर्मों से संबंधित हैं। उदयगिरि पहाङी से चंद्रगुप्त द्वितीय के विदेश सचिव वीरसेन का एक लेख मिलता है, जिससे विदित होता है,कि उसने यहाँ एक शैव गुहा का निर्माण भगवान विष्णु के सम्मान में करवाया गया था। उदयगिरि की गुफायें पूर्णतया उत्कीर्ण नहीं हैं तथा खुदाई तथा पत्थर जोङकर उन्हें निर्मित किया गया था।

उदयगिरि की गुफाओं को मिथ्या गुहा की संज्ञा भी दी गयी है। इन गुहाओं में चौकोर तथा सादे गर्भगृह बने हैं, जिनके सामने की ओर स्तंभों पर टिके हुये छोटे मंडप हैं। गुहा के द्वारस्तंभों को नदी-देवताओं तथा द्वारपालों की मूर्तियों से अलंकृत किया गया है।

बौद्ध गुहा मंदिर भी गुप्त काल में ही बनाये गये थे। इनमें अजंता तथा बाघ पहाङी में खोदी गयी गुफाओं का उल्लेख किया जा सकता है। अजंता में कुल २९ गुफायें हैं, जिनमें चार चैत्यगृह तथा शेष विहार हैं। इनका निर्माण ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से लेकर सातवीं शताब्दी ईस्वी तक किया गया था। इनमें प्रारंभिक गुफायें हीनयान तथा बाद की महायान संप्रदाय से संबंधित हैं।

तीन गुफायें (१६वीं, १७वीं, तथा १९वी.) गुप्तकालीन मानी जाती हैं। इनमें सोलहवीं-सत्रहवीं गुफायें विहार तथा उन्नीसवीं चैत्य हैं। सोलहवीं तथा सत्रहवीं गुफाओं का उत्कीर्णन पांचवीं शती के अंतिम चरण में वाकाटक नरेश हरिषेण के एक मंत्री तथा सामंत ने करवाया था।

सोलहवीं गुफा अजंता के विहारों में सबसे सुंदर है। इसके मंडप में बीस स्तंभ हैं तथा यह ६५ वर्ग फीट के आकार में बनी है। गर्भगृह वर्गाकार है, जिसमें बुद्ध की विशालकाय मूर्ति प्रलंबपाद मुद्रा (पैर लटकाये हुये) में बनी है। गुहा स्तंभों की विभिन्नता दर्शनीय है, क्योंकि किन्हीं दो में समानता नहीं है। सत्रहवीं गुफा भी आकार-प्रकार में सोलहवीं जैसी ही है। बरामदे की दीवारों पर चित्रित भावचक्र (जीवन-चक्र) के कारण पहले इसे राशिचक्र गुफा कहा जाता था। इसमें सर्वाधिक भित्ति चित्र सुरक्षित हैं। उन्नीसवीं गुहा एक चैत्य है, जिसमें पूर्ववर्ती चैत्यों की भाँति गर्भगृह, गलियारा एवं स्तंभ बने हुए हैं। इसमें मुख्य भाग को सजाने के लिये काष्ठ का प्रयोग नहीं किया गया है। प्रवेश द्वार की चिपटी छत चार स्तंभों पर टिकी है, तथा ऊपर बङे आकार का चैत्य गवाक्ष बना है।

शैलकृत स्तूप में ऊँचा बेलनाकार अंड है, जिसके ऊपर गोल गुंबद, हर्मिका तथा तीन छत्र हैं। भित्ति स्तंभों के बीच बुद्ध की मूर्तियाँ खङी अथवा आसीन मुद्रा में बनी हैं। साथ ही साथ यक्ष, नागदंपत्ति, शालभंजिका, ऋषि मुनियों आदि की आकृतियाँ भी हैं। चैत्यगृह में केवल एक प्रवेश द्वार है। मंडप के दोनों ओर प्रदक्षिणामार्ग पर १७ पंक्तिबद्ध स्तंभ बनाये गये हैं। इस गुफा का पश्चिमी भारत के श्रेष्ठतम चैत्यगृहों की मूर्तियों में किया गया है, जो मानव रूप में प्रवेश द्वार, ताखों तथा एकाश्मक स्तूप पर उत्कीर्ण की गयी हैं। ऐसा लगता है, कि इन पर महायान का प्रभाव था।

बाघ गुफायें-

अजंता की तरह से ही बाघ पहाङी (मध्यप्रदेश के धार जिले में स्थित) से नौ गुफायें प्राप्त होती हैं। जिनका समय भिन्न-२ है। इनमें कुछ गुप्तकालीन है। बाघ की गुफायें भी बौद्ध धर्म से संबंधित हैं। सभी भिक्षुओं के निवास के लिये बनायी गयी हैं। पहला विहार नष्ट हो गया है। दूसरा सुरक्षित अवस्था में है, जिसे पाण्डव गुफा कहते हैं। इसके मध्य एक चौकोर आंगन है, जिसके बगल में कमरे बनाये गये हैं। बरामदे में ताखों पर मूर्तियाँ बनी हैं। तीसरी गुफा को हाथी खाना तथा चौथी गुफा को रंगमहल कहा जाता है। इसकी दीवारों पर चित्रकारी मिलती है। शेष गुफायें नष्ट हो गयी हैं। बाघ की गुफा अपनी वास्तु से अधिक चित्रकारी के लिये प्रसिद्ध है।

Reference : https://www.indiaolddays.com

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