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चंदेल शासक यशोवर्मन् का इतिहास

चंदेल शासक हर्ष के बाद उसका पुत्र यशोवर्मन Yashovarman (लक्ष्मणवर्मन्) 930 ईस्वी में गद्दी पर बैठा। वह एक साम्राज्यवादी शासक था। राष्ट्रकूट शासकों के आक्रमण ने प्रतिहार साम्राज्य को जर्जर बना दिया था। गोविंद चतुर्थ के समय में आंतरिक कलह के कारण राष्ट्रकूटों की स्थिति भी खराब हो गयी थी तथा वे उत्तर की राजनीति में अच्छी तरह से अपनी भूमिका अदा नहीं कर पा रहे थे। ये सभी परिस्थितियाँ यशोवर्मन् के लिये लाभकारी सिद्ध हुई तथा वह अपनी शक्ति एवं साम्राज्य को बढाने में सफल हुआ। सर्वप्रथम उसने कन्नौज पर आक्रमण कर प्रतिहार-साम्राज्य को समाप्त कर दिया।

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इसके बाद उसने राष्ट्रकूटों से कालिंजर का प्रसिद्ध दुर्ग जीत लिया।

खजुराहो के लेख में यशोवर्मन् को गौङ, खस, कोसल, कश्मीर, मालव, चेदि, कुरु, गुर्जर आदि का विजेता बताया गया है। उसके अनुसार वह गौङरूपी क्रीडालता के लिये तलवार था, खसों की सेनाओं का सामना किया, कोशलों को लूटा, कश्मीर के शासक का नाश किया, मिथिला नरेश को पराजित किया, मालवों के लिये काल के समान था, उसके सामने चेदि का शासक काँपने लगा, वह कुरुरूपी वृक्ष के लिये आँधी के समान था तथा गुर्जरों को जलाने वाला था। आगे कहा गया है कि भय से राहत होकर उसने उस चेदि नरेश को युद्ध में बुरी तरह पराजित कर दिया, जिसके पास अगणित सेना थी। क्षेत्रों की विजय के समय उसके सैनिक धीरे-2 उन बर्फीली चोटियों पर चढने में सफल हुए, जहाँ उमा ने स्वर्ग के प्रत्येक वृक्ष से लाकर फूल एकत्र कर रखा था, तथा जहाँ गंगा की तेज धाराओं की ध्वनि से उसकी अश्व सेना भय के कारण अव्यवस्थित हो गयी थी। उसने शिव के निवास स्थल कालंजर पर्वत को आसानी से जीत लिया जो इतना ऊँचा है, कि दोपहर में सूर्य की गति को बाधित कर देता है। उसने कालिंद तथा जहु की पुत्रियों – यमुना तथा गंगा, को बारी – बारी से अपना क्रीङा – सरोवर बनाया तथा उनके तटों पर शिवर स्थापित किया, किसी भी शत्रु द्वारा अनादृत, उसके भयंकर हाथियों के स्नान द्वारा उनका जल मैला कर दिया गया।

इस विवरण से पता चलता है, कि यशोवर्मा ने अपना प्रभाव हिमालय से लेकर मालवा तक तथा कश्मीर से लेकर बंगाल तक बढा लिया। उसने उत्तरी भारत में अपना प्रभाव स्थापित कर लिया था।

यशोवर्मन् ने चेदि पर अधिकार कर लिया था। चेदि का शासक लक्ष्मणराज अथवा उसका पूर्वगामी युवराज प्रथम था, जिसकी अगणित सेनाओं को यशोवर्मन् ने पराजित किया था।

गौङनरेश पालवंशी राज्यपाल अथवा उसका पुत्र गोपाल द्वितीय रहा होगा।

मालवा, कोशल तथा कुरु अब भी कन्नौज के गुर्जर शासकों के अधिकार में थे, जबकि मिथिला पर बंगाल और बिहार के पालों का अधिकार रहा होगा। ऐसा लगता है, कि यशोवर्मन् का अपने समकालीन प्रतिहार अधिपति के साथ भीषण संघर्ष हुआ था। किन्तु धंग के खजुराहो लेख (वि.सं. 1011) से पता चलता है, कि यद्यपि चंदेल स्वतंत्र हो गये थे तथापि वे नाममात्र के लिये ही गुर्जर-प्रतिहारों की अधीनता स्वीकार करते थे।

इस प्रकार यशोवर्मन् एक पराक्रमी राजा था। एक सामंत स्थिति से ऊपर उठकर अपनी उपलब्धियों के द्वारा उसने सार्वभौम पद को प्राप्त किया था। विजेता होने के साथ-साथ वह एक महान निर्माता भी था।

यशोवर्मन् एक निर्माता के रूप में

चंदेल शासक यशोवर्मन् ने खजुराहो के प्रसिद्ध विष्णु-मंदिर का निर्माण करवया था। इस मंदिर में उसने बैकुण्ठ की मूर्ति स्थापित करवायी,जिसे उसने प्रतिहार शासक देवपाल से प्राप्त किया था। कनिंघम ने इसकी पहचान खजुराहो स्थित चतुर्भुज नाम से विख्यात मंदिर से की है। इसके अतिरिक्त यशोवर्मन् ने एक विशाल जलाशय (तडागार्णव) का भी निर्माण करवाया था।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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