इतिहासपेशवामध्यकालीन भारत

पेशवा बालाजी बाजीराव

balaji baji rao

बालाजी बाजीराव(1740-1761ई.)-

बाजीराव की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बालाजी बाजीराव (नाना साहब के नाम से प्रसिद्ध) पेशवा बना। वह अपने पिता के समान योग्य सैनिक और सेनापति नहीं था।

उसकी मुख्य दुर्बलता मराठा सरदारों को अपने अधीन बनाये रखने और उनमें पारस्परिक सहयोग बनाए रखने में असफल रहने की थी।इतिहासकार सरदेसाई के शब्दों में बालाजी बाजीराव की प्रशासनिक योग्यता की सबसे बङी विशेषता अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण स्थापित करने,राज्य की आय के साधनों को बढाने तथा उन साधनों को राज्य के हित में अधिकाधिक प्रयोग करने की थी।

1741ई. में बालाजी बाजीराव रघुजी भोंसले के विरुद्ध अलीवर्दी खाँ की मदद के लिए अलीवर्दी खाँ(बंगाल) प्रस्थान किया तथा रघुजी भोंसले को युद्ध में पराजित कर संधि के लिए बाध्य किया।अलीवर्दी खाँ पेशवा को बंगाल पर चौथ की वसूली तथा सेना के व्यय के लिए 22लाख रुपये की धनराशि देने पर सहमत हो गया।

1741ई.में मुगल बादशाह ने एक संधि करके मालवा पर मराठों के अधिकार को वैधता प्रदान की ।

15दिसंबर 1749ई. को शाहू जी का निधन हो गया।उनके कोई संतान नहीं थी।अपनी मृत्यु के पूर्व ही उन्होंने ताराबाई के पौत्र राजाराम द्वितीय को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

जनवरी 1750ई. में राजाराम द्वितीय का छत्रपति के रूप में राज्याभिषेक हुआ। किन्तु ताराबाई ने राजनीति पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए षड्यंत्र करना आरंभ किया।दूसरी ओर राजाराम ने भी समानांतर दल को प्रश्रय देना प्रभ किन्तु उसकी यह नीति सफल न हो सकी।

1750ई. में रघुजी भोंसले की मध्यस्थता के कारण राजाराम तथा पेशवा के बीच संगोला की संधि हुई।इस संधि के द्वारा मराठा छत्रपति  केवल नाम मात्र के राजा रह गये।मराठा संगठन का वास्तविक नेता पेशवा (वंशानुगत) बन गया तथा मराठा राजनीति का केन्द्र अब पूना हो गया।

शाहू ने पेशवा को सैन्य व प्रशासनिक दोनों ही विषयों में सर्वोच्च सत्ता प्रदान की तथा पेशवाई को बालाजी बाजीराव के लिए वंशानुगत भी बना दिया।

ताराबाई ने पेशवा को उखाङ फेंकने तथा राजाराम पर अपना प्रभाव स्थापित करने का प्रयास किया व राजाराम को सतारा के किले में बंदी बना लिया।

1752ई. में पेशवा ने मुगल बादशाह से एक संधि की । उसके द्वारा मुगल बादशाह ने मराठों को संपूर्ण भारत में चौथ वसूल करने का अधिकार दिया और उसके बदले में मराठों ने अवसर पङने पर मुगल बादशाह को सहायता देने का वायदा किया।

इस संधि से मराठे प्रत्यक्ष रूप से दिल्ली की राजनीति से संबंधित हो गये तथा मराठा शक्ति अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई।

1754ई. में मराठे रघुनाथ राव के नेतृत्व में पुनः दिल्ली पर आक्रमण किये तथा अहमदशाह अब्दाली के प्रतिनिधि नजीब-उद्-दौला को मीर बख्शी पद से हटाकर अहमदशाह बंगश को उस पद पर नियुक्त किया।1758ई. तक उसने सरहिन्द तथा लाहौर पर भी अधिकार कर लिया।

बाजीराव तथा बालाजी बाजीराव की नीति में एक अंतर यह था कि जहाँ बाजीराव को उत्तर की राजनीति में गहरी दिलचस्पी थी,वहाँ बालाजी बाजीराव दक्कन की राजनीति में विशेष रूप से रुचि रखता था।

1752ई. में झलकी की संधि में निजाम ने मराठों को बरार का आधा क्षेत्र दे दिया।

बालाजी ने अपनी सेना में गैर मराठों को भी भर्ती किया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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