माधवराव नारायण की मृत्यु के बाद राघोबा का पुत्र बाजीराव द्वितीय (Bajirao II) पेशवा बना।
वह एक अकुशल शासक था। जिसने अपनी स्थिति बचाए रखने के लिए एक अधिकारी का दूसरे अधिकारी से मतभेद प्रारंभ कराया। इससे मराठा बंधुओं पर गहरा धक्का लगा।

1802 ई. में बेसीन की संधि के तहत सहायक संधि स्वीकार कर लेने से मराठा अधिकारियों में मतभेद प्रारंभ हो गया। सिंधिया तथा भोंसले ने इस संधि का कङा विरोध किया।
बेसीन की संधि (1802ई.)
यह संधि 31 दिसंबर 1802 ई. को पेशवा बाजीराव द्वितीय तथा अंग्रेजों के बीच हुई थी।
बसीन की संधि की शर्तें
- पेशवा अपने राज्य में 6,000 अंग्रेज सैनिकों की एक सेना रखेगा, तथा इस सेना के खर्चे के लिए 26 लाख रुपये वार्षिक आय का प्रदेश अंग्रेजों को देगा।
- पेशवा बिना अंग्रेजों की अनुमति के अपने राज्य में किसी भी यूरोपियन को नियुक्त नहीं करेगा और न ही अपने राज्य में रहने की अनुमति देगा।
संधि का महत्त्व
18वीं सदी के आते-आते मराठा साम्राज्य की आंतरिक एकता छिन्न-भिन्न हो गयी और विकेंद्रीकरण की शक्ति प्रबल हो गयी थी। इस समय वेलेजली साम्राज्यवादी ईस्ट इंडिया कंपनी का गवर्नर जनरल बनकर आया।आते ही मराठों के ऊपर भी अपना साम्राज्यवादी चक्र चलाना शुरू किया ।जब तक नाना फड़नवीस जिन्दा रहा तब तक वह मराठों के पारस्परिक कलह और प्रतिस्पर्द्धा को रोकने में सफल रहा परन्तु उसकी मृत्यु के बाद मराठा सरदारों के बीच आपसी युद्ध शुरू हुआ. होल्कर ने सिंधिया और पेशवा की संयुक्त सेना को पूना के निकट पराजित किया। पेशवा बाजीराव द्वितीय ने बेसिन में शरण ली और 31 दिसम्बर, 1802 में सहायक संधि स्वीकार कर ली। यह समझौता बेसिन की संधि (Treaty of Bassein) के नाम से जाना जाता है।
बेसिन की संधि का भारतीय इतिहास में एक विशिष्ट महत्त्व है क्योंकि इसके द्वारा मराठों ने अपने सम्मान और स्वतंत्रता के अंग्रेजों के हाथों बेच दिया जिससे महाराष्ट्र की प्रतिष्ठा को गहरा धक्का लगा। दूसरी ओर अंग्रेजों को पश्चिम भारत में पैर जमाने का एक अच्छा मौका मिल गया।
