भारत की विदेश नीति के प्रमुख तत्व
स्वतंत्रता से पूर्व भारत की कोई नीति नहीं थी, क्योंकि भारत ब्रिटिश सत्ता के अधीन था, किन्तु विश्व मामलों में भारत की एक सुदीर्घ परंपरा रही है, इसका न केवल पङोसी देशों के साथ अपितु दूर-2 स्थिति देशों के साथ भी सांस्कृतिक एवं व्यापारिक आदान-प्रदान होता रहा है।

भारत की विदेश नीति की रूपरेखा स्पष्ट करते हुए पंडित नेहरू ने 1946 में कहा था कि, वैदेशिक संबंधों के क्षेत्र में भारत एक स्वतंत्र नीति का अनुसरण करेगा और गुटों की खींच-तान से दूर रहते हुए संसार के समस्त पराधीन देशों को आत्मनिर्णय का अधिकार प्रदान करने तथा जातीय भेदभाव की नीति का दृढतापूर्वक उन्मूलन कराने का प्रयत्न करेगा।
नेहरू का उपरोक्त कथन आज भी भारतीय विदेश नीति का आधार स्तंभ है, और भारत दुनियां के शांतिप्रिय देशों के साथ मिलकर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं सद्भावना के लिए प्रयत्नशील है।
भारतीय विदेश नीति की मूलभूत बातों का समावेश भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में किया गया है।
भारत का संविधान किसने लिखा था ?
संविधान के अनुच्छेद 51 के अनुसार- राज्य अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढावा देगा, राष्ट्रों के मध्य न्याय और सम्मान पूर्वक संबंधों को बनाये रखने का प्रयास करेगा।अंतर्राष्ट्रीय झगङों को पंच फैसलों द्वारा निपटाने की रीति को बढावा देगा।
जे.बंद्योपाध्याय ने अपनी पुस्तक दी मेंकिग ऑफ इंडियाज फॉरेन पॉलिसी में भारतीय विदेश नीति के आर्थिक आयाम बताए हैं। जिसके तीन सूत्र हैं-
- सुरक्षा,
- विदेशी सहायता,
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंतर्राष्ट्रीय राजनीति दो ध्रुवों में बंट गयी –
- सोवियत संघ के नेतृत्व में साम्यवादी गुट और
- अमेरिका के नेतृत्व में पूंजीवाद समर्थक पश्चिमी गुट।
द्वितीय विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण क्या था ?
भारतीय विदेश नीति के निर्णायक तत्व निम्नलिखित हैं-
- भौगोलिक तत्व
- गुटबंदियाँ
- विचारधाराओं का प्रभाव
- सैनिक तत्व
- नेहरू का व्यक्तित्व
- आर्थिक तत्व
- राष्ट्रीयता
- ऐतिहासिक परंपराएँ
- आंतरिक शक्तियाँ एवं प्रभावों का दबाव।
Reference : https://www.indiaolddays.com/