जैन धर्म में पंच(5) महाव्रत

जैन धर्म के 23 वें तीर्थंकर पाशर्वनाथ ने चार महाव्रत बताये तथा 24 वे तीर्थंकर महावीर स्वामी ने पांचवा महाव्रत ब्रह्मचर्य जोङा । तथा पंच महाव्रतों का जैन धर्म में विकास किया। दीक्षा लेने वाला व्यक्ति प्रतीज्ञापुर्वक कहता है कि हे अरिहंत मैं वचन – काया से हिंसा, असत्य, चोरी , भोगविलास तथा परिग्रह का सेवन न तो खुद करुंगा और न किसी से करवाऊंगा। हे प्रभु इन पांचों महाव्रतों का जीवन पर्यंत पालन करने की मैं प्रतिज्ञा करता हूँ।
पंच महाव्रत निम्नलिखित हैं-
-
अहिंसा-
जैन साधु – साध्वी किसी भी जीव की हिंसा नहीं करते हैं। छोटे से छोटे जीव को भी पीङा नहीं देने की प्रतिज्ञा के साथ ही जीवन जीते हैं।
2. सत्य-
जैन साधु तथा साध्वी कभी भी झूठ नहीं बोलते चाहे कितनी भी कठिनाई उनके जीवन में आ जाये।
3.अपरिग्रह-
जैन साधु अपने पास पैसा नहीं रखते। वे किसी भी प्रकार की चल या अचल संपत्ति नहीं रखते तथा न ही किसी चीज का संग्रह करते हैं।
4.अस्तेय-
जैन धर्म में चोरी नहीं कर सकते तथा किसी ने चोरी कर भी ली तो वह पापी कहलाता है।
5.ब्रह्मचर्य-
जैन साधुओं को पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना पङता है। उनके नियम काफि सतर्कता भरे होते हैं। साधुओं के लिए स्री चाहे वह किसी भी उम्र की हो तथा साध्वी के लिए पुरुष चाहे वह किसी भी उम्र का हो उवके लिए विजातीय स्पर्श निषिद्ध हैं।
-
वे राजा जिन्होंने जैन धर्म को अपनाया –
उदयन
बिम्बिसार
अजातशत्रु
चंद्रगुप्त मौर्य
बिन्दुसार
खारवेल
Reference : https://www.indiaolddays.com/