विदेशी वृतांत – भारत में कई विदेशी यात्री भ्रमण करने आये उन्होंने यहाँ पर कई राजाओं के दरबार में रहकर उनकी शासन व्यवस्था के बारे में देखा तथा उसे समझा । इन सभी अनुभवों को उन्होंने लिखा जिसे आज हम पढते हैं। यहाँ प्रमुख यूनानी-रोमन तथा चीनी लेखकों के बारे में बताने की कोशिश की गई है।
प्रमुख यूनानी – रोमन लेखक:
हेरोडोटस (इतिहास का जनक)-
हेरोडोटस कृत हिस्टोरिका में भारत और फारस के संबंधों पर प्रकाश पङता है।यह यूनान से आने वाला प्रथम इतिहासकार था। मेगस्थनीज –
यह सेल्युकस निकेटर का राजदूत था ,जो चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था । इसको 305ई.पू. में यूनान और भारत के मध्य हुई संधि के तहत भारत आना पङा था। अपनी पुस्तक इण्डिकामें मौर्ययुगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है।इसने अपनी पुस्तक में पाटलीपुत्र को सबसे बङा नगर बताया है। तथा राजा के राजप्रासाद का भी बङा ही सजीव वर्णन किया है । मेगस्थनीज ने वर्णन किया है कि उस समय राज्य में शांति थी लोगों को घरों में चोरी का कोई डर नहीं था। तथा यह बताता है कि राजा का जीवन बङा ही एश्वर्यमय था।
पेरिप्लस ऑफ द इरिथ्रियन सी-
इस पुस्तक के लेखक के बारे में जानकारी नहीं है । इसका लेखक 80 ई. में हिन्द महासागर की यात्रा पर आया था । इसमें उस समय के भारत के बन्दरगाहों और व्यापारिक वस्तुओं का विवरण है।
टेसियस –
यह ईरान का राजवैद्य था । भारत के संबंध में इसका विवरण आश्चर्यजनक कहानियों से परिपूर्ण होने के कारण अविश्वनीय है।
प्लिनी –
इसने 1शताब्दी में नेचुरल हिस्ट्री नामक पुस्तक लिखी थी। इसमें भारतीय पशुओं , पौधों ,खनिज पदार्थों की जानकारी मिलती है। इसमें भारत और इटली के मध्य होने वाले व्यापार पर भी प्रकाश पङता है।
टॉलमी –
इसने 2 शताब्दी में भारत का भूगोल (ज्योग्राफी ) नामक पुस्तक लिखी। इससे तत्कालीन भारत की विस्तृत जानकारी मिलती है।
सिकंदर –
सिकंदर के साथ आने वाले लेखकों में निर्याकस , आनेसिक्रटस , आस्टोबुलग के विवरण अधिक विश्वसनीय हैं।
डायोनिसियस –
यह मिस्र नरेश टॉलमी फिलाडेलफस का राजदूत था, जो अशोक के राजदरबार में आया था ।
डाइमेकस –
यह सीरियन नरेश आन्तिओकश का राजदूत था, जो बिन्दुसार के राजदरबार में आया था । इसका विनरण भी मौर्य -युग से संबंधित है।
प्रमुख चीनी लेखक: कई बार परीक्षाओं में चीनी विद्वानों काभारत आने का सही क्रम पूछा जाता है उस को ध्यान में रखते हुए हम आपको इसे याद करने की एक ट्रिक बताते हैं-“चीनी यात्री को फाँसी हुई”
फा. =फाह्यान(399ई.)
सी.=संयुगन (518ई.)
हु. =ह्वेनसांग(630ई.)
ई. =इत्सिंग(7वी.शता.के अंत में)
फाह्यान-(399ई.)
यह चीनी यात्री गुप्त नरेश चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार में आया था । इसके विवरण में गुप्तकालीन भारत की सामाजिक , आर्थिक , धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है। इसने अपने विवरण में मध्यएशियाई देशों के बारे में बताया है। यह चीन से रेशम मार्ग(प्राचीनकाल और मध्यकाल में ऐतिहासिक व्यापारिक-सांस्कृतिक मार्गों का समूह था जिसके माध्यम एशिया,यूरोप,अफ्रीका जुङे हुए थे।) से होते हुए भारत आया था।
संयुगन -(518ई.)
यह 518 ई. में भारत आया था । इसने अपने तीन वर्ष की यात्रा में बौद्ध धर्म की प्राप्तीयाँ एकत्रित की।
संस्कृति के बारे में वर्णन किया है और मध्यप्रदेश की जनता को सुखी एवं समृद्धी का वर्णन है।
इसने 629 ई. में चीन से व भारतवर्ष के लिए प्रस्थान किया और एक वर्ष की यात्रा के बाद सर्वप्रथम वह भारतीय राज्य कपिशा पहुँचा ।
भारत में 15 वर्ष तक ठहरकर 645 ई. में चीन लौट गया।
वह बिहार में नालंदा जिला स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने आया था और भारत से बौध ग्रंथों को एकत्र कर ले जाने के लिए आया था ।
इसका भ्रमण वृतांत्त सी.यू.की नाम से प्रसिद्ध है इस वृतांत्त में 138 देशों का विवरण मिलता है।
इसने हर्षकालीन समाज, धर्म, राजनीति के बारे में वर्णन किया है। इसके अनिसार सिन्ध का राजा शूद्र था।
ह्वेनसांग के अध्ययन के समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे।
यह प्रसिद्ध चीनी बौद्ध भिक्षु था।यह 17 वर्षों तक भारत में रहा।
इत्सिंग-(7वी.श.के अंत में)
यह 7वी. शताब्दी के अंत में भारत आया था । इसने अपने विवरण में नालंदा विश्वविद्यालय , विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा अपने समय के भारत का वर्णन किया है। यह 671से695 तक भारत में रहा। इत्सिंग सुमात्रा के समुद्री रास्ते से भारत आया था । वह लगभग 24 वर्षों तक भारत में रहा जिनमें से 10 वर्षों तक नालंदा विश्वविद्यालय में रहकर बौद्ध धर्म के बारे में अध्ययन किया।इस यात्री ने नालंदा तथा विक्रमशिला विश्वविद्यालय के बारे में अपना विवरण दिया है। इसने “भारत और मलय द्वीप पुंज में प्रचलित बौद्ध धर्म का विवरण” नामक प्रमुख ग्रंथ लिखा है।