राजाराम(1689-1700ई.)महाराज का इतिहास

संभाजी की मृत्यु के बाद उसके सौतेले भाई राजाराम को मराठा मंत्रिपरिषद ने राजा घोषित किया। फरवरी 1689ई. में उसका राज्याभिषेक हुआ।
राजाराम ने अपने को शाहू का प्रतिनिधि मना तथा गद्दी पर कभी नहीं बैठा।उसने मराठा सरदारों को अपनी सेना रखने तथा अपने क्षेत्र में स्वतंत्रता पूर्वक कार्य करने की छूट दी।
संताजी घोरपङे एवं धनाजी जादव जैसे बहादुर सेनापतियों का सहयोग कुछ समय के लिये राजाराम को मिला।
सन्1689ई. में राजाराम मुगलों के आक्रमण की आशंका से रायगढ छोङकर जिंजी भाग गया।1698ई. तक जिंजी मुगलों के विरुद्ध मराठा गतिविधियों का केन्द्र तथा मराठा साम्राज्य की राजधानी रही।
जिंजी के बाद 1699ई. से सतारा मराठों की राजधानी बनी।
1689ई. तक मुगलों ने संपूर्ण मराठा क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।इसी समय राजाराम के नेतृत्व में मराठे अपने देश की स्वतंत्रता के लिए कटिबद्ध हो गये।यहीं से मराठों का स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ। जो उस समय(1707ई.) तक चलता रहा जब तक शाहू को मराठा – छत्रपति नहीं स्वीकार कर लिया गया।
यद्यपि शाहू को राजा की उपाधि दी गई और मनसब भी दिया गया फिर भी वह औरंगजेब की मृत्यु (1707ई.) तक वस्तुतः मुगलों के अधीन कैदी ही बना रहा।
राजाराम ने मराठा सरदारों को जागीरें प्रदान की जिसके परिणामस्वरूप मराठा सरदारों की स्वायत्त सत्ता का और अंततः मराठा मंडल या राजसंघ का उदय हुआ।
1700 ई. में अपनी मृत्यु तक राजाराम ने स्वतंत्रता संघर्ष जारी रखा।
Reference : https://www.indiaolddays.com/