कैसर विलियम प्रथम (1861 ई. – 1888 ई.)
कैसर विलियम प्रथम (kaiser william i) – 1857 ई. में फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ का मानसिक संतुलन खराब हो गया और कैसर विलियम प्रथम उसका संरक्षक बना। 1861 ई. में फ्रेडरिक की मृत्यु के बाद वह प्रशा का सम्राट बना। विलियम प्रथम सैनिक गुणों से युक्त एवं व्यवहारकुशल व्यक्ति था। उसका सारा जीवन सेना में व्यतीत हुआ था तथा उसका दृढ विश्वास था कि प्रशा का भविष्य उसकी सैन्य शक्ति पर निर्भर करता है। वह कहा करता था – जो भी जर्मनी पर राज करने की इच्छा रखता हो उसे जर्मनी को जीतना होगा और यह कार्य केवल वार्ता से संपन्न नहीं हो सकता।
अपने लक्ष्य की प्राप्ति में वह आस्ट्रिया को सबसे बङी बाधा मानता था, वह जानता था कि जब तक आस्ट्रिया को जर्मनी से बाहर नहीं निकालने का एक मात्र उपाय था – आस्ट्रिया के साथ युद्ध। इस युद्ध में आस्ट्रिया को पराजित करने के लिए प्रशा के पास प्रबल सैन्य शक्ति होना आवश्यक था। अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसने सेना के पुनर्गठन का विचार किया।
अब तक प्रशा का सैन्य संगठन 1814 ई. के कानून के अनुसार था लेकिन अब जनसंख्या 50 प्रतिशत बढ गयी थी और सैनिकों की संख्या पहले जैसी ही थी। उसने सेना को दोगुनी करने का विचार किया अर्थात् शांतिकाल में सैनिकों की संख्या दो लाख तथा युद्धकाल में साढे चार लाख रखी जाए। इसके लिए उसने वॉन रून को युद्धमंत्री तथा मोल्टके को प्रधान सेनापति नियुक्त किया तथा 49 नई रेजीमेंटों के संगठन और 20 वर्ष के प्रत्येक युवक के लिए 3 वर्ष की अनिवार्य सैनिक सेवा की योजना बनाई।
अपनी योजना को कार्यान्वित करने के लिए उसे धन की आवश्यकता थी। यह धन संसद की स्वीकृति से ही प्राप्त किया जा सकता था। प्रारंभ में प्रतिनिधि सभा इस प्रस्ताव के विरुद्ध थी, 1861 ई. में अस्थाई तौर पर धन की स्वीकृति दे दी गयी लेकिन 1862 ई. में धन देने से साफ तौर पर इंकार कर दिया। इस पर राजा एवं संसद में संघर्ष प्रारंभ हो गया। 1862 ई. में सम्राट ने संसद को भंग कर नए चुनाव करवाए किंतु नए चुनावों में पुनः उदारवादियों को बहुमत प्राप्त हुआ और अतिरिक्त सैनिक व्यय की अनुमति नहीं मिल सकी। अब विलियम को यह भय लगने लगा कि कहीं संसद सेना का खर्च बंद न कर दे अथवा सेना को कम करने का प्रस्ताव नहीं रख दे।
ऐसे समय में वॉन रून ने विलियम को सलाह दी कि वह बिस्मार्क को, जो इस समय फ्रांस में प्रशा का राजदूत था तथा अपनी राजभक्ति, सैनिकवाद और एकतंत्रवाद के लिए प्रसिद्ध हो चुका था, अपना चांसलर (प्रधानमंत्री) नियुक्त कर दे। सम्राट ने 23 सितंबर, 1862 ई. को बिस्मार्क को प्रशा का प्रधानमंत्री बना दिया। बिस्मार्क ने पद ग्रहण करते ही घोषणा की – भाषणों तथा बहुमत के प्रस्तावों से आज की महान समस्याएं हल नहीं होंगी, अपितु उनका समाधान रक्त एवं लौह की नीति से होगा।
