उत्तर भारत और दक्कन के प्रांतीय राजवंशइतिहासमध्यकालीन भारत
मारवाङ एवं गुजरात का इतिहास

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मारवाङ –
मारवाङ का आधुनिक नाम जोधपुर है। मारवाङ पर राठौङ वंश का शासन था, जो प्राचीन राष्ट्रकूट या कन्नौज के गहङवाल वंश से संबंधित थे।मारवाङ के प्रमुख शासक निम्नलिखित थे-
- चुन्द – नामक शासक ने दिल्ली सल्तनत की पतनावस्था का लाभ उठाकर 1394ई. में आधुनिक मारवाङ की नींव डाली।
- जोधा- चुन्द के पुत्र जोधा ने 1459ई. में जोधपुर नगर बसाया।
- मालदेव- मालदेव के शासन काल में मारवाङ अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया। मालदेव शेरशाह सूरी का प्रबल शत्रु था।
गुजरात-
1297ई.में अंतिम सूबेदार जफर खाँ जो व्यावहारिक रूप से स्वतंत्र रहता आया था, सन् 1401ई. में औपचारिक रूप से दिल्ली सल्तनत की अधीनता त्याग दी और मुजफ्फर शाह की उपाधि धारण करके सुल्तान के रूप में गुजरात नामक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।
गुजरात के प्रमुख शासक निम्नलिखित हैं-
- अहमदशाह प्रथम ( 1411-1441ई.) – इसे ही गुजरात के वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उसने मालवा के शासक हुसंगशाह को पराजित किया। 1443ई. में साबर नदी के किनारे अहमदाबाद नगर की स्थापना की तथा उसे अपनी राजधानी बनाई।इस नगर की स्थापना असावल के प्राचीन नगर के स्थान पर की गई थी। वह धार्मिक रूप से असहिष्णु था। मुसलमान इतिहासकारों ने सूफी संतों के प्रति निष्ठा और देवी-देवताओं की मूर्तियों का भंजन करने के प्रति उसके अतिशय उत्साह की प्रशंसा की है। उसने सिद्धपुर के मंदिरों का विनाश किया। हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया। जो गुजरात में पहले कभी नहीं लगा था। अहमदशाह ने इस्लामी और गुजरात के जैन स्थापत्य कला का समन्वय करके अनेक भव्य मस्जिदों, खानकाहों, मदरसों आदि का निर्माण करवाया। अहमदाबाद में उसके द्वारा बनवाया गया जामा मस्जिद प्रसिद्ध है। अपने शासकीय कर्मचारियों को निष्ठावान बनाये रखने और सुल्तान के विरुद्ध एक जुट होने से रोकने के लिए अहमदशाह ने प्रशान के आधे पदों पर स्वतंत्र मुसलमानों और शेष आधे पदों पर दासों को नियुक्ति किया।कहा जाता है कि अहमदशाह एक प्रसिद्ध कवि भी था। मिस्त्र के प्रसिद्ध विद्वान बद्र-उद-दीन दमामीनी जिसने अहमद शाह के शासन काल में गुजरात की यात्रा की थी ने सुल्तान की प्रशंसा में लिखा हैकि “वह सुल्तानों में विद्वान और विद्वानों का सुल्तान था।”
- गयासुद्दीन मुहम्मदशाह – मुहम्मदशाह में अपने पिता की सैनिक प्रतिभा और सैनिक निपुणता नहीं थी। वह अत्यंत विलासी और कामुक होने के साथ-साथ उदार था। लोग उसे जरबख्श अर्थात् स्वर्णदान करने वाला कहते थे। अपने मृदुल स्वभाव के कारण उसने करीम या दयालु की उपाधि अर्जित की।
- महमूद बेगङा( 1459-1511ई.)- महमूद बेगङा निस्संदेह अपने वंश का सबसे महानतम शासक था। उसका शासन काल भारत में क्रोस और क्रेसेन्ट के बीच युद्ध के लिए स्मरणीय है। उसने गिरनार एवं चम्पानेर पहाङियों को जीता तथा गिरिनार पहाङियों की तलहटी में मुस्तफाबाद नामक नगर की स्थापना की। इन्हीं पहाङियों को जीतने के कारण उसे बेगङा की उपाधि मिली। महमूद बेगङा ने मिस्त्र के सुल्तान कनसवा -अल-गौरी के साथ मिलकर भारतीय सागरों में पुर्तगालियों की बढती शक्ति को दबाया। उस काल के यात्री बारबोसा तथा बार्थेमा ने उसके बारे में अनेक रोचक बातें लिखी हैं। बार्थेमा ने महमूद का एक बहुत अनोखा रूप प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि उसकी मूंछ इतनी लम्बी थी कि वह उन्हें सर के पीछे बांछता था। पुर्तगाली यात्री बारबोसा ने उसके संबंध में लिखा है कि बचपन से ही उसे किसी जहर का नियमित रूप से सेवन कराया गया था। इसलिए उसके हाथ पर यदि कोई मक्खी बैठ जाती थी तो, वह फूलकर तुरंत मर जाती थी। यह पेटू के नाम से प्रसिद्ध था। उसने चंपानेर के निकट एक विशाल बाग – ए -फिरजौस ( स्वर्गिक उपवन) की स्थापना की। संस्कृत के विद्वान कवि उदयराज उसका दरबारी कवि था। उसने सुल्तान की प्रशंसा में महमूद चरित नामक काव्य की रचना की। अपने शासन के बाद के वर्षों में महमूद बेगङा ने द्वारका को फतह किया। इसका प्रमुख कारण समुद्री डाकू थे जो उस बंदरगाह से मक्का जाने वाले हज यात्रियों को लूट लेते थे। लेकिन इस अभियान में वहाँ के कई प्रसिद्ध हिन्दू मंदिरों को भी गिरा दिया गया। 1508ई. के युद्ध में जूनागढ के गवर्नर और मिस्त्र के मामलुक सुल्तान द्वारा नौ सैनिक बेङे ने पुर्तगालियों को पराजित किया। बेगङा ने फारस, तुर्की, मिस्त्र आदि देशों के साथ घनिष्ठ कूटनीतिक सम्बंध स्थापित किये।
- बहादुरशाह ( 1526-1537ई.)-यह गुजरात का अंतिम महान शासक था। उसके काल में गुजरात की शक्ति अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गई थी। 1531ई. में पुर्तगाली गवर्नर नुनो-द-कुन्हा ने गुजरात के शासनाधीन द्वीप पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण का बदला लेने के लिए बहादुरशाह ने तुर्की नौ सेना की सहायता से पुर्तगाली नौ सेना को दीव में पूरी तरह पराजित किया और पुर्तगालियों को युद्ध की क्षति पूर्ति करने के लिए बाध्य किया। हुमायूँ द्वारा गुजरात पर आक्रमण करने का मुख्य कारण यह था कि बहादुर शाह ने मुगलों के राजनीतिक शरणार्थियों को अपने दरबार में शरण प्रदान की थी। 1535ई. में मुगल बादशाह हुमायूँ ने बहादुरशाह को पराजित किया। 1537ई.में पुर्तगालियों ने धोखे से बहादुरशाह की हत्या कर दी।
Reference : https://www.indiaolddays.com/