बुद्ध का मध्यममार्ग / मध्यम प्रतीपदा ही मुक्ति का मार्ग है
आषाढ पूर्णिमा को अपने पाँच प्रमुख भिक्षुओं(कौण्डिन्य, भद्दीय, महानाम, अस्सणि, वज्र) को संबोधित करते हुए बुद्ध ने कहा था, भिक्षुओं- जो परिव्रजित हैं, उन्हें दो अतियों से बचना चाहिए।
पहली अति है – कामभोगों में लिप्त रहने वाले जीवन की। यह कमजोर बनाने वाली है।
दूसरी अति है – आत्मपीङा प्रधान जीवन की, जो कष्टप्रद और बेकार होती है।
इन दोनों अतियों से बचे रहकर ही , तथागत (महात्मा बुद्ध) ने मध्यमार्ग का आविष्कार किया।
यह मध्यममार्ग साधक को अंतर्दृष्टि प्रदान करने वाला, ज्ञान और आनंद देने वाला, शांति और संबोधि का अनुभव कराने वाला तथा निर्वाण तक पहुँचाने वाला है।

मध्मप्रतीपदा बौद्ध धर्म का मूल सिद्धांत मार्ग है। बौद्ध धर्म अतिवादी धर्म नहीं है।
उदारहण –जीवन में अत्यधिक दुः ख भी नहीं तो अत्यधिक सुख भी नहीं होना चाहिए।
Reference : https://www.indiaolddays.com/