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मेवाङ के गुहिल कौन थे

मेवाङ के गुहिल

मेवाङ के गुहिल और उसके उत्तराधिकारी – गुहिल, गोह अथवा गुहदत्त आनंदपुर (बङनगर) के अंतिम राजा शिलादित्य का पुत्र था। पुत्र-जन्म के बाद उसकी माता पुष्पावती (शिलादित्य की विधवा रानी) ने अपना पुत्र विजयादित्य नामक ब्राह्मण को सौंप दिया और वह स्वयं सती हो गयी।

ब्राह्मण ने उसका पालन-पोषण किया। कर्नल टॉड के अनुसार किशोरावस्था में गुह (गोह)ने ईडर भीलराजा का वध करके उस राज्य पर अपना अधिकार कर लिया। ब्राह्मण द्वारा पोषित होने के कारण सूर्यवंशी शिलादित्य के वंशज दस पीढी तक ब्राह्मण (नागर)कहलाये।

परंतु श्यामलदास, ओझा और डॉ.गोपीनाथ शर्मा, कर्नल टॉड और नैणसी की ख्यात के वर्णनों को सही नहीं मानते। गुहिल ने मेवाङ के किन क्षेत्रों पर शासन किया अथवा राजस्थान में उसका राज्य कितना विस्तृत था – इस संबंध में पर्याप्त जानकारी नहीं मिलती।

जनश्रुतियों के आधार पर केवल इतना ही कहा जा सकता है कि गुहिलों की सत्ता का प्रारंभिक केन्द्र नागदा था और गुहिल एक बङे क्षेत्र का शासक था। डॉ.गोपीनाथ शर्मा ने लिखा है, आगरे के पास 1869 ई. में प्राप्त 2000 से अधिक चाँदी के सिक्के तथा 9 ताँबे के सिक्के, जो श्री रोशनलाल सांभर के संग्रह में हैं, प्रमाणित करते हैं कि गुहिल एक स्वतंत्र तथा विस्तृत राज्य का स्वामी था। मिहिरकुल के पीछे गुहिल के ही सिक्के मिलना उसके प्रभाव के द्योतक हैं।

गुहिल के समय को लेकर भी इतिहासकारों में भारी मतभेद है। ड. ओझा गुहिल का समय 566 ई. के आस-पास मानते हैं। डॉ. गोपीनाथ शर्मा पाँचवीं सदी के अंतिम भाग में मानते हैं।

गुहिल के उत्तराधिकारियों के बारे में भी हमारे पास प्रामाणिक जानकारी नहीं है। अभी तक जितने साक्ष्य प्राप्त हुये हैं उनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि उसके उत्तराधिकारियों का क्रम इस प्रकार रहा होगा – शील, अपराजित, भर्तृभट्ट, अल्लट, नरवाहन, शक्तिकुमार, विजयसिंह, नागादित्य

कर्नल टॉड ने भी आठ पीढियों का उल्लेख किया है। परंतु गुहिल के किसी भी उत्तराधिकारी का उल्लेख नहीं मिलता। टॉड के अनुसार गुहिल की आठवीं पीढी में नागादित्य नामक राजा हुआ जो भीलों के हाथों मारा गया और भीलों ने गुहिलों से अपना ईडर राज्य वापस छीन लिया। आगे चलकर नागादित्य का पुत्र बापा (बप्पा)बङा पराक्रमी निकला।

बप्पा का इतिहास

बप्पा रावल  मेवाड़ राज्य में गुहिल राजपूत राजवंश के संस्थापक राजा थे।मेवाङ के इतिहास में बापा (जिसे बापा, बप्पक, बाप्प आदि नामों से भी पुकारा जाता है) का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

मेवाङ के गुहिल

फिर भी, प्रामाणिक साक्ष्यों के अभाव में उसके जीवन की मुख्य घटनाओं तथा उसका तिथिक्रम निर्धारित करना दुष्कर काम है। ख्यात लेखकों ने इस चमत्कारी व्यक्ति के संबंध में अनेक प्रकार की कपोल – कल्पित घटनाएँ लिखकर उसकी ऐतिहासिकता को और भी अधिक रहस्यमय बना दिया है…अधिक जानकारी

जैत्रसिंह

13 वीं सदी के आरंभ में मेवाङ के इतिहास में एक नया मोङ आता है। इस समय तक अजमेर के चौहानों की शक्ति का पतन हो चुका था और राजस्थान का एक विस्तृत भू-भाग तुर्क सेनाओं द्वारा पदाक्रान्त किया जा चुका था। संयोग से मेवाङ के गुहिल शासकों को मुहम्मद गौरी तथा कुतुबुद्दीन ऐबक के आक्रमणों का सामना नहीं करना पङा।

फिर भी, ऐसे कई साक्ष्य मिलते हैं जिनसे पता चलता है, कि भारत पर तुर्कों के प्रारंभिक काल में उन्हें मुसलमानों के साथ संघर्ष करना पङा था। इसका मुख्य कारण चित्तौङ की सामरिक एवं भौगोलिक स्थिति रही। 1213 ई. में जैत्रसिंह मेवाङ के सिंहासन पर बैठा और उसने 1252 ई. तक शासन किया।

उसने अपनी सैनिक विजयों से न केवल मेवाङ को सुदृढ ही बनाया अपितु उसकी सीमाओं का विस्तार करके उसके राजनैतिक प्रभाव को भी बढाया…अधिक जानकारी

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास
Online References
wikipedia : गुहिल

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