इतिहासराजस्थान का इतिहास

कविराजा श्यामलदास

कविराजा श्यामलदास

कविराजा श्यामलदास – महामहोपाध्याय कविराजा श्यामलदास का जन्म मेवाङ के छालीवाङा गाँव में 1838 ई. में और स्वर्गवास 1893 ई. में हुआ था। उन्हें मेवाङ के तत्कालीन महाराणा शंभूसिंह ने उदयुपर राज्य का इतिहास लिखने को कहा और इसके लिए पृथक विभाग की स्थापना की गयी जिसमें श्यामलदासजी के अलावा मौलवी अब्दुलगनीखाँ और बाबू रामप्रसाद जी को भी नियुक्त किया गया था।

कविराजा श्यामलदास

इस विभाग ने ऐतिहासिक सामग्री – शिलालेखों, दानपत्रों, सिक्कों, फरमानों तथा राजकीय पत्र-व्यवहार आदि को एकत्रित किया और इस सामग्री के आधार पर श्यामलदास ने 1871 ई. में वीर-विनोद लिखना प्रारंभ किया जो शायद 1892 ई. के आसपास छपकर तैयार हुआ।

अर्थात् इस ग्रन्थ की रचना में लगभग 21 वर्ष लगे और मेवाङ राज्य ने इस पर एक लाख रुपये से भी अधिक व्यय किया। चार खंडों में उपलब्ध वीर-विनोद 2259 पृष्ठों का विशाल ग्रन्थ है। महाराणा शंभूसिंह और उनके उत्तराधिकारी महाराणा सज्जनसिंह ने वीर-विनोद की रचना में पूरा-पूरा सहयोग दिया।

परंतु सज्जनसिंह के उत्तराधिकारी महाराणा फतहसिंह ने किसी कारणवश इस ग्रन्थ के प्रचलन पर रोक लगा दी थी।

कविराजा श्यामलदास की कृति – वीर विनोद

वीर विनोद मुख्य रूप से उदयपुर राज्य का इतिहास है। परंतु प्रसंगवश इसमें उन सभी राज्यों का इतिहास भी दिया गया है जिनका उदयपुर राज्य के साथ किसी न किसी रूप में संबंध रहा था। इस प्रकार यह ग्रन्थ एक प्रकार से संपूर्ण राजस्थान का इतिहास है। राजनीतिक घटनाओं के साथ-साथ लेखक ने सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक अवस्था का भी विस्तृत वर्णन किया है।

भारत में ब्रिटिश सरकार ने कविराजा श्यामलदास को केसर ए हिन्द की उपाधि से सम्मानित किया और महाराणा ने उनको कविराजा की उपाधि से विभूषित किया।

इसके बाद उन्हें महामहोपाध्याय की उपाधि से विभूषित किया गया। इसमें कोई संदेह नहीं कि वीर विनोद राजस्थान के इतिहास की जानकारी के लिये एक अनमोल ग्रन्थ है, परंतु इसकी प्रामाणिकता के बारे में संदेह व्यक्त किया जाता है, क्योंकि श्यामलदास ने उन स्रोतों का वर्णन नहीं किया है जिनसे उसने संबंधित सामग्री एकत्रित की थी।

इसके अलावा उन्होंने राजकीय संरक्षण में इस ग्रन्थ की रचना की। इसलिए वे पूरी तरह से विशुद्ध इतिहास का निर्माण नहीं कर पाये। मराठों और अँग्रेजों के साथ राजपूत राज्यों के संबंधों का वर्णन एकपक्षीय ही कहा जा सकता है।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास
Online References
wikipedia : श्यामलदास

Related Articles

error: Content is protected !!