मोहनजोदङो -(MOHEN JODARO) मोहनजोदङो का सिन्धी भाषा में अर्थ मृतकों का टीला है।इसकी खोज 1922 ई. में राखलदास बनर्जी ने की थी। यह नगर सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के तट पर स्थित है। 1922 से 1930 तक सर जॉन मार्शल के निर्देशन में उत्खनन का कार्य किया गया। हङप्पा के समान मोहनजोदङो में भी नगर के पश्चिमी भाग में एक दुर्ग का निर्माण किया गया है। मोहनजोदङो के अवशेष हङप्पा की बजाय ज्यादा सुरक्षित हैं ।मोहनजोदङो सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे प्रसिद्ध प्राचीन स्थल है। मोहनजोदङो सिंधु सभ्यता का नियोजित व विकसित शहर था।मोहनजोदङो की प्रमुख विशेषता उसकी सङकें थी । पिग्गटमहोदय ने “हङप्पा और मोहनजोदङो को सिंधु सभ्यता की जुङवा राजधानी” बताया है।
मोहनजोदङो से मिले साक्ष्य –
वृहदस्नानागार – यह स्मारक मोहनजोदङो का सर्वाधिक उल्लेखनीय स्थल है। स्नानागार का जलासय(जलकुण्ड) दुर्ग के टीले में स्थित है। यह 11.90 मीटर लंबा, 7 मीटर चौङा, तथा 2.45 मीटर गहरा है। इसमें जाने के लिए सीढियां बनी हुई हैं। इसमें कई कमरे तथा गलियां बनी हुई थी , इन कमरों में से एक कमरे में कुँआ भी बना हुआ था। यह विशाल स्नानागार सामान्य जनता के लिए था , जो धर्मानुष्ठान संबंधी स्नान के लिए उपयाग में लिया जाता था। इससे हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि हङप्पाई लोग सफाई का तथा धार्मिक कार्यों का विशेष ध्यान रखते थे । इस जलाशय को मार्शलने तत्कालीन विश्व का “आश्चर्यजनक निर्माण” बताया है।
अन्नागार –यह इमारत मोहनजोदङो के साथ-साथ हङप्पा सभ्यता की सबसे बङी इमारत थी । यह स्नानागार के पश्चिम दिशा में एक चबूतरे पर मिला है। अन्नागार में हवा जाने के लिए छोटे – छोटे स्थान छोङे गए थे। इस अन्नागार के उत्तर में चबूतरा है जो अन्न निकालने आदि के काम लिया जाता होगा। यह अन्नागार व्यवस्थित ढंग से बनाया गया था । हङप्पा सभ्यता के समकालीन अन्य सभ्यताओं से भी इस प्रकार के अन्नागार के साक्ष्य मिले हैं।
मोहनजोदङोकी शासन व्यवस्था राजतंत्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक थी। यह नगर सुनियोजित ढंग से बनाया गया था। मोहनजोदङो के पश्चिमी भाग में स्थित दुर्ग टीले को स्तूपटीला भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ पर कुषाण शासकों ने एक स्तूप का निर्माण कहवाया था।
पुरोहित आवास तथा सभाभवन-वृहदस्नानागार के उत्तर-पूर्व में एक विशाल भवन था जिसका फर्श पक्की ईंटों का था। यहाँ पुरोहित अपने सहयोगियों के साथ निवास करता था। दुर्ग के दक्षिण में एक वर्गाकार भवन बना हुआ है जो सभा भवन कहा गया है। यह भवन स्तंभों से बना हुआ है , स्तंभों वाले भवन कम ही मिले हैं। इसमें अंदर की ओर चौकियाँ भी मिली हैं, अनुमान लगाया गया है कि यहां पर सार्वजनिक सभाएं होती थी।
सङके तथा नालियां –सङकों की प्रमुख विशेषता सीधी दिशा में एक दूसरे को समकोण पर काटना है। मोहनजोदङो की प्रमुख सङक 9.14 मीटर चौङी थी इसे विद्वानों ने राजपथ कहा है। वैसे तो सङकें कच्ची ईंटों से बनी हैं लेकिन अपवादस्वरूप मोहनजोदङो की सङकें पक्की ईंटों की बनी हैं। छोटी-छोटी सङकें समानान्तर सङके – ग्रिड पद्दती, अॉक्सफॉर्ड सकर्स नामों से भी जानी थी। मकानों की खिङकियां तथा दरवाजे सङकों की ओर नहीं खुलकर उल्टी दिशा में खुलते थे। सङक व घर के बीच नाली होती थी जो बङी नाली में मिलती थी । कच्ची ईंटों से नालियां ढकी हुई थी। मुख्य नालों पर जगह-जगह पर गड्डे बने हुए हैं। जिन्हें मैन होल कहा गया है।
अन्य महत्वपूर्ण बातें –
ईंटें चतुर्भुजाकार होती थी। मोहनजोदङो से प्राप्त सबसे बङी ईंट 51.43सेमी. : 26.27सेमी. : 6.35सेमी. के आकार की मिली है।
यहाँ से आट्टा चक्कियां भी मिली हैं ।
मोहनजोदङो से स्वास्तिक चिन्ह मिला है। कांसे की बनी नर्तकी की मूर्ती मिली है।
मोहनजोदङो से पांच बेलनाकार मुद्राएं मिली हैं।यहाँ से सूती कपङे का टुकङा भी प्राप्त हुआ है।
महाविद्यालय भवन, योगी की मूर्ती, घोङे के दाँत तथा मुद्रा पर अंकित पशुपति की मूर्ती , हाथी का कपाल खंड , नर कंकाल , गले हुए तांबे के ढेर , आदि भी मोहनजोदङो से मिले हैं।