यूरोपीय वाणिज्यिक कंपनी पुर्तगाली

अन्य संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य-
मध्यकाल में भारत और यूरोप के व्यापारिक संबंध थे, ये व्यापार मुख्यतः भारत के पश्चिमी समुद्र तट से लाल सागर और पश्चिमी एशिया के माध्यम से होता था।
यह व्यापार मसालों और विलास की वस्तुओं से जुङा था, मसालों की आवश्यकता यूरोप में ठंडी के दिनों में मांस को सुरक्षित रखने और उसकी उपयोगिता को बढाने के लिए पङती थी।
पुर्तगीज राजकुमार हेनरी द नेविगेटर ने लंबी समुद्री यात्राओं को संभव बनाने के लिए दिक् सूचक यंत्र तथा नक्षत्र यंत्र के द्वारा गणनाएं करने वाली तालिकाएं और सारणियों का निर्माण कराया, जिससे समुद्र की लंबी यात्राएं संभव हुई।
1486ई.में पुर्तगाली नाविक बार्थोलोम्यो ने उत्तमाशा अंतरीप तथा वास्कोडिगामा ने भारत की खोज (1498) की।
पुर्तगाली-
प्रथम पुर्तगीज तथा प्रथम यूरोपीय यात्री वास्कोडिगामा 90 दिन की समुद्री यात्रा के बाद अब्दुल मनीक नामक पथ-प्रदर्शक की सहायता से 1498ई. को कालीकट(भारत) के समुद्र तट पर उतरा।
कालीकट के शासक जमोरिन ने वास्कोडिगामा का स्वागत किया,लेकिन कालीकट के समुद्र तटों पर पहले से ही व्यापार कर रहे अरबों ने इसका विरोध किया।
वास्कोडिगामा ने भारत में कालीमिर्च के व्यापार से 60 गुना अधिक मुनाफा कमाया, जिससे अन्य पुर्तगीज व्यापारियों को भी प्रोत्साहन मिला।पुर्तगालियों के दो प्रमुख उद्देश्य थे- अरबों और वेनिश के व्यापारियों का भारत से प्रभाव समाप्त करना तथा ईसाई धर्म का प्रचार करना।
पुर्तगाली शासकों द्वारा पूर्वी व्यापार को विशेष प्रोत्साहन तथा शाही एकाधिकार प्रदान किया गया।
पुर्तगाली सामुद्रिक साम्राज्य को एस्तादो द इंडिया नाम दिया गया।
वास्कोडिगामा के बाद भारत आने वाला दूसरा पुर्तगाली यात्री पेड्रो अल्ब्रेज कैब्राल ( 1500 ई.) था।
वास्कोडिगामा दूसरी बार भारत 1502 ई. में आया था।
पूर्वी जगत के कालीमिर्च और मसालों के व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त करने के उद्देश्य से पुर्तगालियों ने 1503ई. में कोचीन (भारत) में अपने पहले दुर्ग की स्थापना की।
भारत में प्रथम पुर्तगाली वायसराय के रूप में फांसिस्को-डी-अल्मेङा(1505-1509) का आगमन हुआ।
1503ई. में अल्मेडा ने टर्की,गुजरात,मिस्र की संयुक्त सेना को पराजित कर दीव पर अधिकार कर लिया,दीव पर कब्जे के बाद पुर्तगाली हिन्दमहासागर में सबसे अधिक शक्तिशाली हो गये।
अल्फांसो डी अल्बुकर्क 1503ई. में भारत स्क्वैड्रन कमाण्डर के रूप में आया अल्फांसो डी अल्बुकर्क को भारत में पुर्तगाली साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
अल्बुकर्क ने 1510ई. में बीजापुर के शासक आदिलशाह युसुफ से गोआ को छीन लिया जो कालांतर में भारत में पुर्तगीज व्यापारिक केन्द्रों की राजधानी बनायी गई।
अल्बुकर्क ने 1511ई. में दक्षिण-पूर्वी एशिया की व्यापारिक मंडी मलक्का और हुरमुज पर अधिकार कर लिया।इसके समय में पुर्तगाली भारत में शक्तिशाली नौसैनिक शक्ति के रूप में स्थापित हुए।
अल्फांसों डी अल्बुकर्क ने भारत में पुर्तगालियों की संख्या में वृद्धि करने एवं उनकी स्थायी बस्तियां बसाने के उद्देश्य से निम्नवर्गीय पुर्तगालियों को भारतीय महिलाओं के साथ विवाह करने के लिए प्रोत्साहित किया।
अल्बुकर्क ने अपनी सेना में भारतीयों की भी भर्ती की।
भारत आये पुर्तगाली वायसराय नीनू डी कुन्हा (1529-38 ई.) ने 1530ई. में कोचीन की जगह गोवा को राजधानी बनाया।
डी कुन्हा ने सैनथोमा (मद्रास), हुगली (बंगाल) और दीव (काठियावाङ) में पुर्तगीज बस्तियों की स्थापना की।
पुर्तगीज वायसराय जोवा-जी-कैस्ट्रो ने पश्चिमी भारत के चाऊल (1531),दीव(1532), सॉलसेट और बेसिन (1536) और बंबई पर अधिकार कर लिया।
मसुलीपट्टनम् बंदरगाह का पुर्तगाली प्रयोग करते थे।
बंगाल के शासक मसूदशाह द्वारा पुर्तगालियों ने 1534 में चटगाँव और सतगाँव में अपनी व्यापारिक फैक्ट्री खोलने की अनुमति प्राप्त की।
चटगाँव (बंगाल) के बंदरगाह को पुर्तगाली महान बंदरगाह की संज्ञा देते थे।
पुर्तगालियों ने हिन्दमहासागर से होने वाले व्यापार पर एकाधिपत्य प्राप्त कर यहाँ से गुजरने वाली अन्य जहाजों से कर की वसूली की।
कार्ट्ज- आर्मेडा काफिला पद्धति-
- पुर्तगालियों ने कार्ट्ज- आर्मेडा काफिला पद्धति के द्वारा भारतीय तथा अरबी जहांजों को कार्ट्ज या परमिट के बिना अरब सागर में प्रवेश वर्जित कर दिया।
अरबी और भारतीय जहांजों को जिन्हें कार्ट्ज प्राप्त होता था,को कालीमिर्च और गोला बारूद ले जाने की अनुमति नहीं थी।
पुर्तगालियों ने काफिला प्रणाली के अंतर्गत छोटे स्थानीय व्यापारियों के जहांजों को समुद्री यात्रा के समय संरक्षण प्रदान किया। इसके लिए जहांजों को चुंगी देनी होती थी।
पुर्तगाली अधिकार वाले क्षेत्रों से व्यापार करने के लिए मुगल सम्राट अकबर को भी पुर्तगालियों से कार्ट्ज या परमिट लेना पङा।
1632ई. में शाहजहाँ ने पुर्तगालियों के अधिकार से हुगली को छीन लिया था,औरंगजेब ने चटगांव के समुद्री लुटेरों का सफाया कर दिया था।
पुर्तगालियों ने भारत या पूर्व के साथ व्यापार में वस्तु विनिमय का सहारा नहीं लिया, यहां से वस्तुओं की खरीद में पुर्तगीज सोना,चांदी तथा अन्य अनेक बहुमूल्य रत्नों का प्रयोग करते थे।
पुर्तगाली मालाबार और कोंकण तट से सर्वाधिक कालीमिर्च का निर्यात करते थे।मालाबार तट से अदरख, दालचीनी, चंदन,हल्दी,नील आदि का निर्यात होता था।
उत्तर-पश्चिचम भारत से पुर्तगाली राफ्टा (वस्र), जिंस आदि ले जाते थे।जटामांसी- बंगाल से, लाख– दक्षिण – पूर्वी एशिया से तथा अन्य स्थानों से लौंग, कस्तूरी आदि का क्रय करते थे।
भारत से केवल कालीमिर्च की खरीद के लिए पुर्तगाली प्रतिवर्ष 1,70,000 क्रूजेडो भारत लाते थे।
पुर्तगाली गवर्नर अल्फांसो डिसूजा (1542-45ई.) के साथ प्रसिद्ध जेसुइट संत फ्रांसिस्को जेवियर भारत आया।
पुर्तगाली गोवा,दमन और दीव पर 1961ई. तक शासन करते रहे।
पुर्तगालियों के भारतीय व्यापार के पतन के निम्नलिखित कारण थे-
- भारतीय जनता के प्रति धार्मिक असहिष्णुता की भावना,
- गुप्त रूप से व्यापार करना तथा डकैती और लूटमार को अपनी नीति का हिस्सा बनाना,
- नये उपनिवेश ब्राजील की खोज,
- अन्य यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों से प्रतिस्पर्धा,
- अपर्याप्त व्यापारिक तकनीक,
- पुर्तगीज वायसरायों पर पुर्तगाली राजा का अधिक नियंत्रण।
पुर्तगालियों के भारत आगमन से भारत में तंबाकू की खेती,जहांज निर्माण (गुजरात और कालीकट) तथा प्रिटिंग प्रेस की शुरुआत हुई।
1556ई. में गोआ में पुर्तगालियों ने भारत का प्रथम प्रिटिंग प्रेस स्थापित किया। भारतीय जङी-बूटियों और औषधीय वनस्पतियों पर यूरोपीय लेखक द्वारा लिखित पहले वैज्ञानिक ग्रंथ का 1563 में गोआ से प्रकाशन हुआ।
मुगल शासक अकबर के दरबार में ईसाई धर्म का प्रवेश फादर एकाबिवा और माँसरेत के नेतृत्व में हुआ।
पुर्तगालियों के साथ भारत में गोथिक स्थापत्यकला का आगमन हुआ।
Reference : https://www.indiaolddays.com/