जीन-जेकस रूसो (1712ई. – 1778ई.) की गणना पश्चिम के युगप्रवर्तक विचारकों में की गई है। अपनी प्रारंभिक रचनाओं में रूसो ने यह विचार प्रस्तुत किया कि आदि मानव एक भला, न्यायशील तथा सुखी प्राणी था, किन्तु सभ्यता ने उसे भ्रष्ट और पतित कर दिया था। इसलिये सभ्यता की जङों को उखाङ फेंकना चाहिये और एक आदर्श समाज का निर्माण करना चाहिये।
रूसो ने अपने उपर्युक्त क्रांतिकारी विचारों का अपनी सुप्रसिद्ध पुस्तक सामाजिक संविदा (Social Contract)में विस्तार से उल्लेख किया है। पुस्तक का पहला वाक्य मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुआ था, किन्तु वह सर्वत्र बंधनों से जकङा हुआ है।
रूसो के अनुसार सभी शासन सत्ताओं की उत्पत्ति एक संविदा के द्वारा हुई है, जिसे लोगों ने प्राकृतिक दशा में रहते समय किया था और जिसे वे इच्छानुसार बदल भी सकते हैं। प्रभुत्व समस्त जनता में निवास करता है, न कि किसी व्यक्ति अथवा वर्ग में। सभी व्यक्ति स्वतंत्र और समान हैं, सरकार का कर्त्तव्य है, प्रत्येक व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करना।
यदि शासन और शासित में से कोई इसके विरुद्ध कार्य करें, तो दूसरे को इस बात का अधिकार होगा कि वह उसे उचित दंड दे। रूसो के विचारों ने यूरोप के निरंकुश राज्यों की जङें खोदने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।
नेपोलियन ने तो यहां तक कहा कि यदि रूसो का जन्म न होता तो फ्रांस में राज्य क्रांति का होना असंभव था।
रूसो की प्रमुख रचनायें
1. डिस्कोर्स ऑन दि आरिजिन ऑव इनईक्वैलिटी;
2. इकानामी पालिटिक;
3. दि सोशल कंट्रैक्ट ;
4. ईमिली

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा