इतिहासजैन धर्मप्राचीन भारत
जैन धर्म के दो समुदायः दिगंबर एवं श्वेतांबर

जैन धर्म मानने को तो सभी लोग मान सकते हैं । लेकिन जैन धर्म में दो समुदाय (शाखाएं) हैं ।
जैन धर्म की दो शाखाएं-
- दिगंबर (समैया)
- श्वेतांबर(तेरापंथी)
दिगंबर – भद्रबाहु एवं उनके अनुयायियों को दिगंबर कहा गया, ये दक्षिणी जैनी कहे जाते थे। दिगंबर वर्ग के तीर्थंकर नग्न रहते हैं। इस शाखा के लोग मूलतः अपरिग्रह और त्याग पर आधारित अपनी चरम अवस्था में वस्र का त्याग कर वनवास और तपस्या पर बल देते हैं। इस वर्ग के लोग चारों दिशाओं को ही अपने वस्र मानते हैं।
इतने कठिन नियमों को सामाजिक व्यक्ति अपनी रोजमर्रा के जीवन में नहीं अपना सकता।
श्वेतांबर– स्थलबाहु एवं उनके अनुयायियों को श्वेताबंर कहा गया। इस वर्ग के लोग सफेद कपङे पहनते हैं तथा मुँह पर कपङा बाँधके रखते हैं । सूर्यास्त से पहले ही खाना खा लेते हैं।
श्वेतांबर तथा दिगंबर में मतभेद-
- दिगंबर में मोक्ष के लिए नगनावस्था जरुरी है, लेकिन श्वेतांबर वर्ग में ऐसा कुछ नहीं हैं।
- दिगंबर सम्प्रदाय में सर्वज्ञ भगवान केवल ज्ञानी हो जाने पर ही कैवल्य प्राप्त कर पाता है।
- दिगंबर सम्प्रदाय में स्री मुक्ति का निषेध करते हैं। जबकि श्वेतांबर वर्ग में स्री मुक्ति को स्वीकारा गया है।
- दिगंबर में तीर्थंकर मल्लिनाथ को पुरुष बताया गया है। जबकि श्वेतांबर में मल्लिनाथ को मल्लिकुमारी के रूप में स्वीकार किया गया है।
Reference : https://www.indiaolddays.com/