वर्धन वंश के शासक हर्षवर्धन का साम्राज्य विस्तार
हर्ष की विजयों के बारे में हम पूरी तरह से पता नहीं लगा सकते। उसके द्वारा की गयी विजये संदिग्ध हैं। तथा हर्ष के साम्राज्य विस्तार को निश्चित करना भी मुश्किल है।
कुछ विद्वान हर्ष का साम्राज्य विस्तार उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में विन्ध्यपर्वत तक तथा पूर्व में कामरूप से लेकर पश्चिम में सुराष्ट्र तक का विशाल भू-भाग को मानते हैं।

मजूमदार हर्ष के साम्राज्य में उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल तथा उङीसा के बाहर का कोई भी भाग नहीं रखते हैं।
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हर्ष के पैतृक राज्य थानेश्वर में दक्षिण पंजाब और पूर्वी राजपूताना सम्मिलित थे। ग्रहवर्मा की मृत्यु के बाद उसने कन्नौज के मौखरि राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लिया, जिसमें समस्त उत्तर प्रदेश का कुछ भाग शामिल था।
मौखरि शासक ग्रहवर्मा का इतिहास।
बंसखेङा और मधुबन के लेखों के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है, कि अहिच्छ और श्रावस्ती के प्रदेश हर्ष के अधीन थे। प्रयाग में उसने महामोक्षपरिषद का आयोजन करवाया था, जो वहाँ उसके अधिकार की सूचना देता है। हुएनसांग उत्तर के कई राज्यों के राजाओं के न तो नाम बताता है, तथा न ही उनकी राजनैतिक स्थिति का उल्लेख करता है– ऐसे नाम निम्नलिखित हैं-
कुलतो, शतदु, थानेश्वर, श्रुघ्न, ब्रह्मपुर, सुवर्णगोत्र, अहिच्छत्र, कपिथ, अयोध्या, हयमुख, प्रयाग, कौशांबी, विशोक, श्रावस्ती, कपिलवस्तु, रामगाम, कुशीनारा, वाराणसी, वैशाली, वृज्जि, मगध, हिरण्यपर्वत, चंपा, काजंगल, पुण्ड्रवर्धन, समतट, ताम्रलिप्ति, कर्ण-सुवर्ण, ओड्र तथा कोंगोद।
अन्तः इन्हें हर्ष के अधीन माना जा सकता है। पुनः वह मथुरा, मतिपुर, सुवर्णगोत्र, कपिशा, कश्मीर, वैराट, कपिलवस्तु, नेपाल, कामरूप, महाराष्ट्र, वलभी, भङौंच, उज्जैन, माहेश्वरपुर, सिंध आदि को स्वतंत्र राज्य कहता है। मगध पर उसके अधिकार की पुष्टि चीनी स्रोतों से हो जाती है, जहाँ उसे मगधराज कहा गया है। शशांक की मृत्यु के बाद हर्ष ने बंगाल और उङीसा पर अधिकार कर लिया था। इस प्रकार पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी तक का भाग हर्ष के अधीन था।
पश्चिमोत्तर में सिंध का राज्य उसके प्रभाव क्षेत्र में था। हुएनसांग के विवरण के आधार पर हम कह सकते हैं, कि जालंधर, कुलूट, शतद्रु आदि भी हर्ष के अधीन था। यमुना के पश्चिम में सोनपत से प्राप्त मुहर में उसके नाम का उल्लेख मिलता है, जो वहाँ हर्ष का अधिकार सूचित करता है।
ऐसा प्रतीत होता है, कि पश्चिम में पश्चिमी मालवा, उज्जैन, जैजाकभुक्ति, माहेश्वरपुर, बैराट आदि के राज्य भी हर्ष के साम्राज्य में सम्मिलित थे। पूर्वी मालवा तथा बलभी के राज्य भी उसकी अधीनता स्वीकार करते थे। इस प्रकार पश्चिम में यमुना तथा नर्मदा के बीच का सभी भाग हर्ष के साम्राज्य में शामिल हो चुका था। उत्तर में हर्ष का साम्राज्य नेपाल की सीमा तक फैला हुआ था।
निष्कर्षः
इस प्रकार हम कह सकते हैं, कि हर्ष के साम्राज्य में संपूर्ण उत्तर भारत सम्मिलित था। यह उत्तर में हिमालय से दक्षिण में नर्मदा नदी तथा विन्ध्य पर्वत तक और पूर्व में ब्रह्मपुत्र से पश्चिम में सुराष्ट्र एवं काठियावाङ तक विस्तृत था। चालुक्य लेखों में उसे सकलोत्तरपथनाथ कहा गया है।
हर्ष के साम्राज्य में तीन प्रकार के राज्य थे-
- प्रत्यक्ष शासित राज्य – इस श्रेणी में वे राज्य थे, जिनका उल्लेख हुएनसांग नहीं करता।
- अर्द्धस्वतंत्र राज्य – इस श्रेणी में वे राज्य थे, बलभी, पश्चिमी मालवा, सिंध ।
- मित्र राज्य – इस श्रेणी में कश्मीर तथा कामरूप के राज्य शामिल थे।
इन सबके अलावा हर्ष ने बाह्य देशों के साथ भी मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किये थे – जो इस प्रकार हैं 641 ईस्वी में चीन नरेश ताईसुंग के दरबार में हर्ष ने एक ब्राह्मण दूत भेजा। इसके उत्तर में चीनी नरेश ने लियांग – होई – किंग नामक राजदूत भेजा।इसके साथ वंग हुएनत्से नामक एक चीनी अधिकारी भी था। उन्होंने बौद्ध स्थलों की यात्रा की तथा 647 ईस्वी में स्वदेश लौट गये।
हर्ष ने 647 ईस्वी तक राज्य किया। हर्ष का कोई उत्तराधिकारी नहीं था, अतः उसकी मृत्यु के बाद उत्तर भारत में पुनः अराजकता फैल गयी तथा कन्नौज पर अर्जुन नामक किसी स्थानीय शासक ने अधिकार कर लिया।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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