इतिहासराजस्थान का इतिहास

अँग्रेजों द्वारा संधियाँ करने के कारण क्या थे

अँग्रेजों द्वारा संधियाँ करने के कारण – राजपूत राज्यों से संधियाँ करने में लार्ड हेस्टिंग्ज ने अपना उद्देश्य, लुटेरी पद्धति के पुनरुत्थान के विरुद्ध अवरोध स्थापित करना तथा मराठों की शक्ति के विस्तार को रोकना बताया। जॉन माल्कम ने कहा था कि, सैनिक कार्यवाहियों तथा रसद सामग्री दोनों के लिये इन राज्यों के प्रदेशों पर हमारा पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए अन्यथा ये राज्य हमारे शत्रुओं को हम पर आक्रमण करने योग्य साधन उपलब्ध करा देंगे। जॉन माल्कम का मत है कि पिण्डारियों को नष्ट करने तथा मराठा शक्ति के विस्तार को रोकने के लिये कंपनी, राजपूत राज्यों से संधियाँ करना चाहती थी। किन्तु तत्कालीन परिस्थितियाँ इन कथनों की पुष्टि नहीं करती। द्वितीय मराठा युद्ध (1803-1805 ई.) से पूर्व पेशवा ने बसीन की संधि तथा युद्ध में पराजित होकर सिन्धिया ने सुर्जीअर्जुनगाँव की तथा भोंसले ने देवगढ की संधि कर ली थी, जिसके फलस्वरूप उनके सैनिक और आर्थिक साधन काफी सीमित हो चुके थे। वेलेजली ने होल्कर की शक्ति पर प्रहार करके उसकी शक्ति को भी काफी कमजोर कर दिया था। फिर स्वयं राजपूत राज्य भी इतने निर्बल हो चुके थे कि उनमें मराठों व पिण्डारियों के विरुद्ध अवरोध उत्पन्न करने की क्षमता ही नहीं रह गयी थी। अतः अँग्रेजों को मराठों व पिण्डारियों के विरुद्ध राजपूत राज्यों के सहयोग की न तो आवश्यकता थी और न ऐसी किसी धारा का उल्लेख इन संधियों में किया गया था। संधियों में बाह्य आक्रमण से सुरक्षा एक सामान्य धारा थी, जिसका समावेश तो पेशवा व अन्य मराठा सरदारों के साथ की गयी संधियों में भी किया गया था। इस धारा का समावेश तो पेशवा व अन्य मराठों व पिण्डारियों के विरुद्ध नहीं हो सकती। इस धारा का उल्लेख तो कंपनी सरकार की सर्वोच्चता की अभिव्यक्ति का प्रतीक मात्र था। राजपूत राज्यों से संधियाँ होने से पूर्व मराठों व पिण्डारियों ने इन राज्यों के अनेक प्रदेश हस्तगत कर लिये थे, लेकिन संधियों में राजपूत राज्यों को उन प्रदेशों को वापिस दिलाने का भी उल्लेख नहीं मिलता। यद्यपि कुछ राज्यों ने मेटकॉफ से इसके लिये प्रार्थना भी की थी, किन्तु मेटकॉफ ने इस संबंध में कोई निश्चित वादा करने से इन्कार कर दिया था। अतः राजपूत राज्यों से संधियाँ करने में अँग्रेजों का उद्देश्य मराठा अथवा पिण्डारी विरोधी नहीं हो सकता।

लार्ड हेस्टिंग्ज भारत में ब्रिटिश सीमाओं का विस्तार कर कंपनी को भारत की सर्वोच्च सत्ता बनाना चाहता था। इसके लिये भारत के समस्त देशी राज्यों को कंपनी के संरक्षण में लाना आवश्यक था। इसलिए 1817-18 ई. में राजपूत राज्यों से की गयी संधियाँ उसकी नीति का अंग मात्र थी। लार्ड हेस्टिंग्ज का एक अन्य उद्देश्य कंपनी के वित्तीय साधनों में वृद्धि करना भी था और संधियों द्वारा विभिन्न राज्यों से प्राप्त होने वाला खिराज, कंपनी के लिये एक वित्तीय लाभ ही था। इसके अतिरिक्त बीकानेर और बाँसवाङा, दोनों राज्य महत्त्वपूर्ण व्यापारिक मार्गों का नियंत्रण करते थे, अतः ब्रिटिश व्यापार-वाणिज्य की वृद्धि के लिये इन राज्यों पर ब्रिटिश नियंत्रण आवश्यक था।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास

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