इतिहासप्राचीन भारत

वृहत्तर भारत किसे कहते हैं

वृहत्तर भारत किसे कहते हैं

वृहत्तर भारत से तात्पर्य भारत से बाहर उस विस्तृत भूखंड से है, जहाँ भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार हुआ तथा जिसमें प्राचीन भारतीयों ने अपने उपनिवेशों की स्थापना की। पाश्चात्य विश्व के साथ भारत का संपर्क मुख्यतः व्यापार-परक था, किन्तु उत्तर-पूर्व तथा दक्षिण-पूर्व के देशों में न केवल भारतीय सभ्यता का पूर्ण प्रचार हुआ, अपितु उनमें से अनेक में प्राचीन भारतीयों ने अपने राज्य भी स्थापित कर लिये थे। इस प्रकार वृहत्तर भारत का जन्म हुआ।

वृहत्तर भारत के देशों का विभाजन हम दो भागों मध्य एशिया, तिब्बत तथा चीन को रखा जा सकता है, जबकि द्वितीय भाग के अंदर हिन्द-चीन तथा पूर्व द्वीप – समूहों की गणना की जा सकती है। हिन्द – चीन में कम्बुज (कंबोडिया),चंपा (वियतनाम), बर्मा, स्याम (थाईलैण्ड) तथा मलाया(मलेशिया) आदि सम्मिलित हैं। इसी प्रकार पूर्वी-द्वीप समूह के अंदर सुमात्रा (श्रीविजय),जावा, बोर्नियो, बाली आदि की गणना की जाती है।

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वृहत्तर भारत से संबंधित अन्य महत्त्वपूर्ण जानकारी

भारत एवं मध्य एशिया के मध्य संबंध

चीन, भारत तथा ईरान के बीच स्थित प्रदेश को मध्य एशिया अथवा चीनी तुर्किस्तान कहा जाता है, जो पहले काशगर से लेकर चीन की सीमा तक फैला हुआ था। इसके अंतर्गत काशगर (शैलदेश), यारकंद (कोक्कुक), खोतान (खोतुम्न), शानशान, तुर्फान (भरुक), कुची (कूचा), करसहर (अग्निदेश) आदि राज्यों की गणना की जाती है…अधिक जानकारी

भारत तथा तिब्बत

पामीर के पठार से आच्छादित तिब्बत एक दुर्गम एवं हिम मंडित पहाङी प्रदेश है। यह तीन बङे क्षेत्रों में विभक्त हैं, जिन्हें छोलखा कहा जाता है। महाभारत एवं कालिदास के रघुवंश महाकाव्य में तिब्बत का उल्लेख त्रिविष्टप नाम से मिलता है, लेकिन इसके साथ भारत का संपर्क वस्तुतः बौद्ध धर्म के माध्यम से ही हुआ…अधिक जानकारी

भारत तथा चीन

अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारतीयों को चीन के विषय में ज्ञान था। महाभारत तथा मनुस्मृति में चीनी का उल्लेख मिलता है। कौटिल्य अर्थशास्त्र में चीनी सिल्क का विवरण प्राप्त होता है। सामान्यतः ऐसा माना जाता है, कि चीन देश का नामकरण वहाँ चिन वंश (121 ईसा पूर्व से 220 ईस्वी तक) की स्थापना के बाद हुआ, अतः भारत-चीन संपर्क तृतीय शताब्दी के लगभग प्रारंभ हुआ…अधिक जानकारी

दक्षिण-पूर्वी एशिया में भारतीय संस्कृति

दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय उपनिवेशों की स्थापना के परिणामस्वरूप वहाँ के शासन, समाज, भाषा-साहित्य, धर्म एवं कला आदि पर भारतीय तत्वों का प्रभाव पङा…अधिक जानकारी

भारत का पाश्चात्य विश्व के साथ व्यापारिक संबंध

व्यापार तथा वाणिज्य भारत के आर्थिक जीवन का प्रमुख तत्व रहा है। वस्तुतः यह वहाँ के निवासियों की समृद्धि का प्रधान कारण था। अत्यन्त प्राचीन काल से ही यहां निवासियों ने व्यापार-वाणिज्य के क्षेत्र में गहरी दिलचस्पी दिखाई। राज्य की ओर से भी व्यापारियों को पर्याप्त प्रोत्साहन एवं संरक्षण प्रदान किया गया। परिणामस्वरूप यहां का आंतरिक एवं बाह्य दोनों ही व्यापार विकसित हुआ। जहाँ विश्व के अन्य देशों के साथ भारत का संबंध सांस्कृतिक एवं राजनीतिक था, वहाँ पश्चिमी विश्व के साथ यह प्रधानतः व्यापार-परक था…अधिक जानकारी

भारत तथा रोम के संबंध

भारत तथा पाश्चात्य विश्व के बीच संपर्क के प्राचीनतम संदर्भ मिलते हैं, तथापि इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं, कि भारत का पाश्चात्य जगत विशेषकर रोम के साथ घनिष्ठ वाणिज्यिक संबंध ईस्वी सन् के प्रारंभ के लगभग आरंभ हुआ। पाम्पेई नगर की खुदाई में भारतीय शैली में निर्मित हाथीदाँत की बनी यक्षिणी की एक मूर्ति मिली है, जिसका काल ईसा पूर्व दूसरी शती माना जाता है। उपलब्ध साहित्यिक एवं पुरातात्विक प्रमाणों से पता चलता है, कि आगस्टन काल (ई.पू.27-14) में उत्तर-पश्चिम तथा भारतीय उपमहाद्वीप के प्रायद्वीपय क्षेत्रों, दोनों के साथ रोम का व्यापारिक संबंध विकसित हो गया था।

ये आर्थिक गतिविधियाँ ईसा की प्रथम दो शताब्दियों तक तेज हो गयी तथा आगामी सदियों में भी कुछ कम मात्रा में चलती रही, जबकि शक, पह्लव, कुषाणों के अधीन उत्तर भारत का व्यापार स्थल मार्ग से होता था तथा वाणिज्य मुख्यतः परिवहन व्यापार जैसा था। भारत के दक्षिणी क्षेत्रों तथा रोम के बीच व्यापार सीमान्त प्रकृति का था। इस व्यापार में रोमन प्रजा तथा भारतीय व्यापारियों दोनों ने गहरी अभिरुचि ली तथा उन्हें अपने शासकों से भी सहायता प्राप्त हुयी, क्योंकि उन्हें भी इससे प्रभूत लाभ मिलता था…अधिक जानकारी

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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